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Friday, March 29, 2024

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बीजेपी और शिव सेना, किसको किसकी कितनी ज़रूरत?

<figure> <img alt="उद्धव ठाकरे, देवेंद्र फ़ड़नवीस और नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/D13E/production/_108866535_bef19b83-3afb-4298-a666-40786e75ea9c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>मुंबई का एक मध्यम वर्गीय इलाक़ा परेल शिव सेना का गढ़ है. यहाँ मौजूद पार्टी की शाखा के प्रमुख सुनील गौकर के अनुसार 1966 में स्थापित हुई पार्टी की पहली शाखा है. </p><p>गौकर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक […]

<figure> <img alt="उद्धव ठाकरे, देवेंद्र फ़ड़नवीस और नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/D13E/production/_108866535_bef19b83-3afb-4298-a666-40786e75ea9c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>मुंबई का एक मध्यम वर्गीय इलाक़ा परेल शिव सेना का गढ़ है. यहाँ मौजूद पार्टी की शाखा के प्रमुख सुनील गौकर के अनुसार 1966 में स्थापित हुई पार्टी की पहली शाखा है. </p><p>गौकर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. वहां मौजूद सभी फरियादी हैं. गौकर कहते हैं, &quot;यहाँ लोग स्कूल में एडमिशन से लेकर अस्पताल में मरीज़ों को खून देने तक, सभी तरह की ज़रुरत वाले लोग आते हैं. हमसे जहाँ तक संभव होता है हम उनकी मदद करते हैं&quot;</p><p>शिवसेना केवल एक राजनितिक पार्टी ही नहीं है. इसकी जड़ें समाज में गहरी हैं क्योंकि इसकी शाखाओं में आम लोगों की मदद करने की कोशिश की जाती है. ये मुंबई और महाराष्ट्र की अपनी पार्टी है. </p><p>कभी हिंदुत्व विचारधारा पर आधारित शिव सेना समान विचारधारा वाली भारतीय जनता पार्टी से बड़ी पार्टी मानी जाती थी लेकिन अब बीजेपी हर तरह से शिव सेना का बड़ा भाई बन चुका है </p><figure> <img alt="शिवसेना" src="https://c.files.bbci.co.uk/60DA/production/_108849742_img_2867.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>क्या बीजेपी को आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना से साझीदारी की ज़रुरत है? पार्टी के बुलंद आत्मविश्वास के परिपेक्ष में ये सवाल ख़ुद पार्टी के अंदर कुछ लोग उठा रहे हैं लेकिन फ़िलहाल दबे शब्दों में. ये सवाल खास तौर से एक ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन को लेकर तनातनी कई दिनों से चल रही है. </p><p>बीजेपी के नेता माधव भंडारी के अनुसार पार्टी में &quot;युति&quot; (गठबंधन) को लेकर हमेशा से दो राय रही है लेकिन शिवसेना से उनका दार्शनिक और वैचारिक रिश्ता रहा है. &quot;शिवसेना हमारी सब से पुरानी भागीदार पार्टी है. सीट शेयरिंग से बढ़ कर हमारा संबंध दार्शनिक और वैचारिक है&quot;  इस में कोई संदेह नहीं कि महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में आज कहीं ज़्यादा है. कम से कम इस साल हुए आम चुनाव के नतीजों से ऐसा ही लगता है. बीजेपी को महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 25 सीटें मिलीं. </p><p>पार्टी में कुछ ऐसे लोग हैं जो समझते हैं कि चुनाव जीतने के लिए बीजेपी को किसी गठबंधन की ज़रुरत नहीं, पार्टी के सूत्रों का दावा है कि इस बार चुनाव में इसे 160 से अधिक सीटें हासिल हो सकती हैं. सूत्रों के अनुसार अगर पार्टी शिवसेना से गठबंधन करती है तो इसका फायदा ये होगा कि एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन 30-35 सीटों पर सिकुड़ कर रह जाएगा.    </p><figure> <img alt="शिवसेना" src="https://c.files.bbci.co.uk/14B3A/production/_108849748_img_2883.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p><strong>महाराष्ट्र की सब से बड़ी पार्टी </strong></p><p>साधारण गणित के अनुसार 288 सीटों वाले महाराष्ट्र विधानसभा में 145 सीटें जीतने वाली पार्टी सरकार बनाने का दावा कर सकती है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ते हुए 122 सीटें जीतीं थीं, जो बहुमत के निशान से थोड़ा ही कम थी. इससे काफ़ी फ़ासले पर दूसरे नंबर पर खड़ी शिव सेना को 63 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. दूसरे शब्दों में, विजय चोरमरे के अनुसार, बीजेपी का स्ट्राइक रेट शिव सेना से काफ़ी बेहतर था. </p><p>बीजेपी ने 260 सीटों पर उमीदवार खड़ा कर के 122 सीटें जीतीं जबकि शिव सेना ने 282 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद केवल 63 सीटें हासिल कीं. </p><p>बहुमत से कुछ कम सीटें हासिल करने के बावजूद 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहले अल्पसंख्यक सरकार गठित की जिसे एनसीपी ने बाहर से समर्थन दिया था. बाद में शिवसेना सरकार में शामिल हो गई. </p><p>शिव सेना बीजेपी से सौदेबाजी करने में जुटी ज़रूर है लेकिन उसे अपनी बेबसी का एहसास ज़रूर हो रहा होगा. परेल शाखा में मौजूद शिवसेना के सदस्यों का मानना था कि पार्टी के पास अब विकल्प कम हैं. गौकर कहते हैं, &quot;हम बीजेपी के साथ सहज नहीं हैं, लेकिन हमारी मजबूरी है कि हमें उनके साथ चुनाव लड़ना पड़ेगा.&quot;</p><p>बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता और चुनावी कामयाबी से शिवसेना के सदस्यों में नाराज़गी भी है और जलन भी. लेकिन साथ ही उन्हें इस बात का एहसास भी कि इस समय बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना ही अकलमंदी है . बीजेपी के सूत्र कहते हैं कि &quot;शिवसेना की मानसिकता सत्ता में रह कर भी विपक्ष की है. इसकी ये सब से बड़ी कमी है लेकिन शिवसेना को अब हमारी ताक़त का अंदाज़ा हो गया है.&quot;   </p><p>पिछले पांच सालों में गठबंधन की सरकार में शामिल होने के बावजूद शिव सेना ने बीजेपी की कई बार आलोचना की है. कभी तो ऐसा भी लगा कि राज्य में सब से बड़ा विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी नहीं, बल्कि शिव सेना है. इनके बीच तनाव बढ़ाने का काम विपक्षी दलों ने भी किया है. </p><p>राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता विद्या चौहान कहती हैं कि उनकी पार्टी ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की ताक़त को कमज़ोर करने के लिए ये सुनिश्चित किया है कि शिवसेना-बीजेपी में फासले बढ़ते जाएँ, वे कहती हैं, &quot;भाजपा-शिव सेना में झगड़ा लगाने का काम हमने किया, हमारी कोशिश थी ये एक दूसरे के साथ नहीं रह सकें और ऐसा ही होता नज़र आता है.&quot;    </p><p>कुछ विश्लेषकों के मुताबिक़ शिवसेना ने चुनावों के दौरान अपने गढ़ पर बीजेपी का कब्जा होते देखा है जो पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए बहुत निराशाजनक है. इसका इज़हार पिछले कुछ सालों में शिव सेना द्वारा बीजेपी पर करारी आलोचना के दौरान हुआ </p><p><strong>बदलती क़िस्मत </strong></p><p>साल 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में शिव सेना-बीजेपी गठबंधन में शिव सेना बड़ा भाई था. इसने मैदान में 169 उमीदवार उतारे थे और इसने 73 सीटें जीती थीं. बीजेपी को शिव सेना ने केवल 116 सीटें दी थीं जिनमे से इसने 65 पर जीत हासिल की. </p><p>परेल शाखा में मौजूद पार्टी के एक सदस्य ने कहा, &quot;हमारा दल आज बीजेपी का एक छोटा भाई बनकर रह गया है&quot;. पिछले चुनावों में जो क्षेत्र कभी शिव सेना का गढ़ होते थे आज वहां बीजेपी छा गई है. वो नगर पालिकाएं और पंचायतें जहाँ कभी शिव सेना के उम्मीदवार जीतते थे आज वहां बीजेपी के लोग चुन कर आए हैं.&quot; </p><figure> <img alt="शिवसेना" src="https://c.files.bbci.co.uk/901E/production/_108849863_471ddec3-437b-40ad-95bb-9a4519a9b341.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>इन दिनों शिव सेना और बीजेपी के बीच गठबंधन पर ज़ोर-शोर से बातचीत जारी है लेकिन ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि 2014 की तरह इस बार भी दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ें. सूत्रों के अनुसार शिव सेना को बीजेपी ने केवल 106 सीटें ऑफर की हैं जो इसे स्वीकार नहीं. </p><p>स्थानीय मीडिया के अनुसार इस साल हुए आम चुनाव से पहले हुई एक मीटिंग में दोनों पार्टियों के बीच सीटों की बराबर संख्या पर समझौता हुआ था और शिव सेना का ज़ोर है कि बीजेपी इस समझौते पर अमल करे. लेकिन बीजेपी के सूत्र कहते हैं कि बीजेपी एक बड़ी पार्टी है और पिछले चुनाव से भी अधिक सीटें जीतने की क्षमता रखती है. </p><p>बीजेपी के पक्ष में कई बातें हैं. पहला ये कि जो नेता कांग्रेस पार्टी और एनसीपी से बाहर हो रहे हैं उन में से अधिकतर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, जिससे पार्टी का मनोबल आसमान को छू रहा है. एनसीपी के नेता गणेश नाइक और कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री हर्षवर्धन पाटिल 11 सितंबर को भाजपा में शामिल हो गए. कुछ विशेषज्ञ ये भी जताते हैं कि बीजेपी उन्हीं नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करती है जो चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं और जो अपने साथ अपने कार्यकर्ताओं को भी ले आते हैं </p><p>लेकिन एनसीपी की प्रवक्ता विद्या चौहान कहती हैं कि राज्य में बीजेपी के मज़बूत होने के पीछे जो कारण हैं उन से बीजेपी को खुश नहीं होना चाहिए, &quot;बीजेपी मज़बूत इसलिए है क्योंकि उनके पास ईवीएम हैं; उनके पास पैसा बहुत है. दबंगों की फ़ौज उनके पास है&quot;. बीजेपी के प्रवक्ता माधव भंडारी इस इलज़ाम को ठुकराते हुए मुख्यमंत्री फडणवीस की पांच साल की साफ़ सुथरी सरकार की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार का रिकॉर्ड सब के सामने है. </p><p>लेकिन आम राय ये है कि महाराष्ट्र में बीजेपी एक बढ़ती ताक़त है जिसे रोकना आसान नहीं होगा, लेकिन पत्रकार विजय चोरमरे बीजेपी को होशियार करना चाहते हैं, &quot;बीजेपी के एक पूर्व विधायक एनसीपी में शामिल हो गया है. अगर कांग्रेस और एनसीपी के लोगों को बीजेपी में स्थान दिया जाएगा, उन्हें टिकट दिया जाएगा तो बीजेपी में सालों से इंतज़ार कर रहे लोग पार्टी का ढोल थोड़े ही बजाएंगे, वो पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टियों में जाएंगे.&quot;</p><figure> <img alt="शिवसेना" src="https://c.files.bbci.co.uk/12C5E/production/_108849867_img_2846.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>एनसीपी की प्रवक्ता विद्या चौहान</figcaption> </figure><p>यही आशा एनसीपी और कांग्रेस पार्टी को है. इन पार्टियों के कुछ नेताओं ने दावा किया है कि एक बार चुनाव की तारिख आ जाए और बीजेपी-शिवसेना अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर कर दें तो इन पार्टियों में जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा वो एनसीपी और कांग्रेस में शामिल ज़रूर होंगे. </p><p>एनसीपी के एक नेता नवाब मालिक ने कहा, हमारा ख्याल है कि जब टिकेटों का बंटवारा हो जाएगा तो बीजेपी और शिवसेना में विद्रोह होगा, वो लोग जो सालों से टिकट का इंतज़ार कर रहे हैं वो हमारे पास आएंगे. कुछ लोग तो हमारे संपर्क में भी हैं. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) </strong></p>

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