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चंद्रयान 2 सफल रहा तो भारत को क्या मिलेगा

<p>आज यानी सोमवार को दोपहर बाद 2.43 बजे चंद्रयान की यात्रा शुरू होगी. इस मिशन में एक हफ़्ते की देरी GSLV-MkIII रॉकेट के इंजन में लीक होने के कारण हुई थी. यही रॉकेट चंद्रयान को अतरिक्ष में लेकर जाएगा. </p><p>जब बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप से एक रॉकेट आज चंद्रयान-2 को लेकर अपनी यात्रा […]

<p>आज यानी सोमवार को दोपहर बाद 2.43 बजे चंद्रयान की यात्रा शुरू होगी. इस मिशन में एक हफ़्ते की देरी GSLV-MkIII रॉकेट के इंजन में लीक होने के कारण हुई थी. यही रॉकेट चंद्रयान को अतरिक्ष में लेकर जाएगा. </p><p>जब बंगाल की खाड़ी में एक द्वीप से एक रॉकेट आज चंद्रयान-2 को लेकर अपनी यात्रा शुरू करेगा तो यह भारत के अंतरिक्ष में बढ़ती महत्वाकांक्षा को भी चांद के पार ले जाएगा. </p><p>भारत का चाँद पर यह दूसरा मिशन है. भारत चाँद पर तब अपना मिशन भेज रहा है जब अपोलो 11 के चाँद मिशन की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. </p><p>भारत का चंद्रयान-2 चाँद के अपरिचित दक्षिणी ध्रुव पर सितंबर के पहले हफ़्ते में लैंड करेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि चाँद का यह इलाक़ा काफ़ी जटिल है. वैज्ञानिकों के अनुसार यहां पानी और जीवाश्म मिल सकते हैं. </p><p>मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाउस में ‘स्पेस एंड ओशन स्टडीज’ प्रोग्राम के एक रिसर्चर चैतन्य गिरी ने वॉशिगंटन पोस्ट से कहा है, ”चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर कोई अंतरिक्षयान पहली बार उतरेगा. इस मिशन में लैंडर का नाम विक्रम दिया गया है और रोवर का नाम प्रज्ञान है. विक्रम भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम के पहले प्रमुख के नाम पर रखा गया है. </p><figure> <img alt="चंद्रयान 2" src="https://c.files.bbci.co.uk/13552/production/_107968197_gettyimages-525541064.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>लैंडर वो है जिसके ज़रिए चंद्रयान पहुंचेगा और और रोवर का मतलब उस वाहन से है जो चाँद पर पहुंचने के बाद वहां की चीज़ों को समझेगा. मतलब लैंडर रोवर को लेकर पहुंचेगा. </p><p>इसरो का कहना है कि अगर यह मिशन सफल होता है तो चंद्रमा के बारे में समझ बढ़ेगी और यह भारत के साथ पूरी मानवता के हक़ में होगा. </p><p>इसरो प्रमुख के सिवन ने एनडीटीवी से कहा है कि विक्रम के लिए लैंड करते वक़्त 15 मिनट का वो वक़्त काफ़ी जटिल है और इतने जटिल मिशन को कभी अंजाम तक इसरो ने नहीं पहुंचाया है. </p><p>भारत ने इससे पहले चंद्रयान-1 2008 में लॉन्च किया था. यह भी चाँद पर पानी की खोज में निकला था. भारत ने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया था और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में यह काफ़ी ऊपर है. </p><p>2022 तक भारत चाँद पर किसी अंतरिक्ष यात्री को भेजने की योजना पर काम कर रहा है. अंतरिक्ष विज्ञान पर किताब लिखने वाले मार्क विटिंगटन ने सीएनएन से कहा है, ”भारत ने फ़ैसले लेने शुरू कर दिए हैं और इससे वो अंतरिक्ष में एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभरेगा. भारत को यह अहसास है कि अंतरिक्ष में कई कार्यक्रमों को अब बढ़ाने का वक़्त आ गया है.” </p><p>भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आलोचना भी होती है कि क्या एक विकासशील देश को देश के संसाधनों को अंतरिक्ष कार्यक्रम पर खर्च करना चाहिए जहां लाखों लोग भूख और ग़रीबी से जूझ रहे हैं. </p><p>विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक कहा जाता है और उन्होंने इन आलोचनाओं के जवाब में कहा था, ”अंतरिक्ष प्रोग्राम का देश और लोगों की बेहतरी में सार्थक योगदान है. भारत को चाहिए कि समाज और लोगों की समस्या को सुलझाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करे.” </p><p>भारत के पहले मार्स सैटलाइट की लागत स्पेस विज्ञान पर बनी फ़िल्म ग्रैविटी से भी कम थी. चंद्रयान-2 की लागत 14.1 करोड़ डॉलर है जो कि अमरीका के अपोलो प्रोग्राम की लागत 25 अरब डॉलर से कम है. </p><p>चंद्रयान-2 भारत की चाँद की सतह पर उतरने की पहली कोशिश है. इससे पहले यह काम रूस, अमरीका और चीन कर चुका है. चार टन के इस अंतरिक्षयान में एक लूनर ऑर्बिटर है. इसके साथ ही एक लैंडर और एक रोवर है. </p><p>चाँद को लेकर दुनिया भर में खोज जारी है. चंद्रयान-1 जब 2008 में लॉन्च किया गया था तो उसने इस बात की पुष्टि की थी कि चाँद पर पानी है लेकिन चाँद की सतह पर नहीं उतर पाया था. चंद्रयान-2 के बाद भारत 2022 में चांद पर किसी अंतरिक्ष यात्री को भेजने की योजना पर काम कर रहा है. </p><p>इसरो ने चंद्रयान-2 पर कहा है, ”हम वहां की चट्टानों को देख कर उनमें मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज तत्वों को खोजने का प्रयास करेगें. इसके साथ ही वहां पानी होने के संकेतो की भी तलाश करेगें और चांद की बाहरी परत की भी जांच करेंगे.”</p><p>चंद्रयान-2 के हिस्से ऑर्बिटर और लैंडर पृथ्वी से सीधे संपर्क करेंगे लेकिन रोवर सीधे संवाद नहीं कर पाएगा. ये 10 साल में चांद पर जाने वाला भारत का दूसरा मिशन है.</p><figure> <img alt="चंद्रयान 2" src="https://c.files.bbci.co.uk/E732/production/_107968195_gettyimages-1080654512.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>इसरो प्रमुख के सिवन</figcaption> </figure><p>चंद्रयान-1 चंद्रमा पर जाने वाला भारत का पहला मिशन था. ये मिशन लगभग एक साल (अक्टूबर 2008 से सितंबर 2009 तक) था. चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में भेजा गया था.</p><p>ये आठ नवंबर 2008 को चंद्रमा पर पहुंच गया था. इस चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन बिताए थे. तत्कालीन इसरो के चेयरमैन जी माधवन नायर ने चंद्रयान मिशन पर संतोष जताया था.</p><p>उन्होंने बताया था कि चंद्रयान को चंद्रमा के कक्ष में जाना था, कुछ मशीनरी स्थापित करनी थी. भारत का झंडा लगाना था और आंकड़े भेजने थे और चंद्रयान ने इसमें से सारे काम लगभग पूरे कर लिए हैं.</p><p>चंद्रयान 1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा जा रहा है. चंद्रयान-1 के खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्यों के बाद आगे चांद की सतह पर, सतह के नीचे और बाहरी वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण की सीमा का अध्ययन करने की ज़रूरत है.</p><figure> <img alt="इसरो" src="https://c.files.bbci.co.uk/8DC8/production/_107969263_1ce55663-a1bd-4d81-8639-cc683acb0655.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><h3>दक्षिणी धुव्र पर ही लैंडिंग क्यों?</h3><p>कोई यह पूछ सकता है कि जोखिम होने पर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ही चंद्रयान क्यों उतरा जा रहा है और चांद में खोज के लिए जाने वाले मिशन के लिए ये ध्रुव महत्वपूर्ण क्यों बन गए हैं.</p><p>दरअसल, चंद्रमा का दक्षिणी धुव्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी अभी तक जांच नहीं की गई. यहां कुछ नया मिलने की संभावना हैं. इस इलाके का अधिकतर हिस्सा छाया में रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने से यहां बहुत ज़्यादा ठंड रहती है.</p><p>वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि हमेशा छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी और खनिज होने की संभावना हो सकती है. हाल में किए गए कुछ ऑर्बिट मिशन में भी इसकी पुष्टि हुई है.</p><p>पानी की मौजूदगी चांद के दक्षिणी धुव्र पर भविष्य में इंसान की उपस्थिति के लिए फायदेमंद हो सकती है. यहां की सतह की जांच ग्रह के निर्माण को और गहराई से समझने में भी मदद कर सकती है. साथ ही भविष्य के मिशनों के लिए संसाधन के रूप में इसके इस्तेमाल की क्षमता का पता चल सकता है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के 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