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अरब देशों में अब सेक्स पर बात करना हराम नहीं

<figure> <img alt="अरब देश, सेक्सुअल एजुकेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/11701/production/_107952417_e992a79b-c49e-4716-bc36-e67dadd5057f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>बीते एक साल में मैंने बीबीसी के लिए पूरी अरब दुनिया को अच्छे से देखा. एक छोर से दूसरे छोर तक ताकि मैं शॉर्ट मूवीज़ की एक ऐसी सीरीज़ बना सकूं जो उन औरत-मर्दों पर आधारित हो जो अंतरंग संबंधों को अब एक नए […]

<figure> <img alt="अरब देश, सेक्सुअल एजुकेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/11701/production/_107952417_e992a79b-c49e-4716-bc36-e67dadd5057f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>बीते एक साल में मैंने बीबीसी के लिए पूरी अरब दुनिया को अच्छे से देखा. एक छोर से दूसरे छोर तक ताकि मैं शॉर्ट मूवीज़ की एक ऐसी सीरीज़ बना सकूं जो उन औरत-मर्दों पर आधारित हो जो अंतरंग संबंधों को अब एक नए तरीक़े से देखते हैं, जो कमरे के अंदर और बाहर के रिश्ते को नए तरीक़े से जी रहे हैं.</p><p>मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में सेक्स को लेकर उदासीनता और निराशावाद पहली नज़र में दिख जाता है. महिलाओं के कौमार्य को लेकर परिवारों की चिंता, एलजीबीटीक्यू समुदाय पर सख़्ती से लेकर ऑनलाइन पोर्न के कारण मीडिया पर लगाई जाने वाली सेंसरशिप तक से यह बात स्पष्ट दिखाई देती है.</p><p>इस तरह की बातें और रवैया जनमत संग्रह के दौरान भी देखने को मिलती हैं. बीबीसी अरबी सेवा के लिए अरब जगत के दस देशों और फ़लीस्तीनी इलाक़ों में किये गए सर्वे में भी यह बात नज़र आई थी. </p><p>लेकिन अरब बैरोमीटर रिसर्च नेटवर्क के एक सर्वे में कई ऐसी बातें सामने आई हैं जो चौंकाने वाली हैं.</p><p>इसके मुताबिक़ कई लोगों ने देश का नेतृत्व करने के एक महिला के अधिकार को स्वीकार किया है. लेकिन, सेक्स और जेंडर को लेकर सोच रुढ़िवादी और संकीर्ण ही बनी हुई है. </p><p>अधिकतर लोग अब भी सोचते हैं कि पारिवारिक मामलों में अंतिम फ़ैसला पति का ही होना चाहिए. सात में से छह जगहों पर समलैंगिकता के मुक़ाबले ऑनर किलिंग को ज़्यादा स्वीकार्यता दी गई है. इन सात जगहों पर ये सवाल पूछा गया था. </p><p>लेकिन, कई लोग हैं जो निरंतर बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-48990445?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सेक्स को लेकर ऐसे बदलने लगी है सोच</a></li> </ul><figure> <img alt="अरब देश" src="https://c.files.bbci.co.uk/7AC1/production/_107952413_0dad6cb8-88b5-4171-b1a0-234ee6abf8c0.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>उम्मीद बाक़ी है </h1><p>हालांकि, इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी बातें सामने आई हैं जिनसे पता चलता है कि खुलापन और उदार सोच इन संकीर्ण रास्तों के बीच भी अपनी जगह बना रहे हैं. </p><p>एक ग़ैर-सरकारी संस्थान मुनतदा अल-जेनसेनिया की सहसंस्थापक साफ़ा तमीश की ही बात करें तो वो फ़लस्तीनी समाज में सेक्सुअल अधिकारों की पैरोकार हैं और यौन शिक्षा पर फिर से विचार करने की बात कहती हैं. उनके मुताबिक़ ऐसी शिक्षा जो सिर्फ़ प्रजनन की जानकारी देने पर ही आधारित न हो बल्कि उसमें प्यार और अंतरंगता भी शामिल हो. </p><p>इसराइल में रहने वाले अरब समुदाय से शुरुआत करने के बाद मुनतदा इसराइली क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में काम करती हैं. </p><p>यहां अरबी भाषा में सेक्स के लिए ज़्यादातर एक ही स्थानीय शब्द इस्तेमाल किया जाता है. ये एक स्लैंग (एक तरह का अपशब्द) की तरह है जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए है और शर्मिंदगी महसूस कराता है. </p><p>इसके चलते इलाक़े में कई लोग अंग्रेज़ी और फ्ऱेंच भाषा में सेक्स पर बात करने में ज़्याद सहज महसूस करते हैं. </p><p>मुनतदा फ़लस्तीनियों को अरबी भाषा में ही अपने शरीर और यौन संबंधों पर बात करने में सहज महसूस कराने की कोशिश कर रही हैं. </p><p>साफ़ा और उनके साथियों के मुताबिक़ अपनी मातृभाषा में इस विषय पर बात करने के बहुत गहरे प्रभाव होते हैं. वह कहते हैं कि जो लोग स्लैंग का इस्तेमाल करते हैं उनके लिए इसका विकल्प हिब्रू भाषा (इसराइल में रहने वाले लोगों की औपचारिक, शैक्षणिक भाषा) होगी. लेकिन, यहां भाषा भी राजनीतिक पहचान का एक हिस्सा है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-48953942?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सेक्स लाइफ़ किसी ख़ास चीज़ को खाने से बेहतर हो सकती है? </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-49031385?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">फ़ीमेल वायाग्रा पर क्यों मचा है हंगामा</a></li> </ul><figure> <img alt="सैंड्रीन अताल्लाह" src="https://c.files.bbci.co.uk/13618/production/_107948397_d3dae6cf-c839-42de-99e0-9b01c89650ee.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>सेक्सोलॉजिस्ट, सैंड्रीन अताल्लाह का कहना है कि अरब समाज को अंतरंग मुद्दों पर और अधिक बात करनी चाहिए</figcaption> </figure><h1>पहचान का सवाल</h1><p>जॉर्डन में भाषा और पहचान के सवाल पर ख़ालिद अब्देल-हादी के साथ बात करना उत्साहजनक था. </p><p>वो मध्यपूर्व की कुछ उन समलैंगिक मीडिया पर्सनैलिटीज में से एक हैं जिन्होंने अपनी लैंगिक पहचान नहीं छुपाई है. वो एक मैगज़ीन भी निकालते हैं जो लिंग परिवर्तन सर्जरी और ऑनर किलिंग जैसे मुद्दों पर बात करती है. </p><p>साफ़ा ने ख़ालिद से व्यक्तिगत पहचान के मुद्दे पर बात की. ख़ालिद ने बताया कि जब उन्होंने दशकों पहले किशोरावस्था में इस मैगज़ीन को शुरु किया था तो ये एक समुदायिक संस्कृति में अपने व्यक्तित्व को पहचान देने की कोशिश थी.</p><p>वह कहते हैं, ”अरब में हम लोग अपने आपको समुदाय के तहत देखते हैं इसलिए इस समूह के बीच में अपनी आवाज़ सुनाना मुश्किल हो जाता है. व्यक्ति पर समूह हावी होता है और आप उसके नियम-क़ानूनों के अनुसार ही चलते हैं.” </p><figure> <img alt="अरब देश" src="https://c.files.bbci.co.uk/2CA1/production/_107952411_85647cd8-da37-410e-acc3-7c243ebe5ca5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>ख़ालिद की तरह ही लेबनान में सैंड्रीन अतल्लाह यौन संबंधों को लेकर मौजूद टैबू को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. वो एक जानीमानी सेक्स थेरेपिस्ट हैं. </p><p>सैंड्रीन का बैरूत में सिर्फ़ क्लिनिक ही नहीं है बल्कि वो क़ाहिरा में एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अल-हब तक़ाफ़ा (प्यार संस्कृति है) पर बेहद मशहूर हैं. </p><p>सैंड्रीन और उनके साथियों का मानना है कि अरब संस्कृति में यौन संबंधों को लेकर ऐसी असहिष्णुता और संकीर्णता कभी नहीं रही. बल्कि ये संस्कृति इस विषय को आज के उलट नज़रिए से देखती थी. </p><p>वह बताते हैं कि बग़दाद में 10वीं-11वीं सदी में एनसाइक्लोपीडियो ऑफ़ प्लेजर लिखा गया था. इसके 43 अध्याय लगभग सभी सैक्सुअल प्रैक्टिस और प्राथमिकताओं पर बात करते हैं. उसमें ये स्पष्ट है कि सेक्स भगवान का दिया हुआ एक तोहफ़ा है. </p><p>साफ़ा, ख़ालिद और सैनड्रिन जैसे लोग अतिवादी नहीं बल्कि सुधारक हैं. वो यौन संबंधों से जुड़े रुढ़ियों पर बात करते हैं और बदलाव लाना चाहते हैं. </p><p>उनके सामने चुनौती है कि लोगों को दशकों से बनी हुई इस सोच से बाहर निकालना है जो समाज की गहराइयों में समा चुकी है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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