ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान स्टीव वॉ ने का मानना है कि भारतीय उपमहाद्वीप में संन्यास को लेकर क्रिकेटरों को बहुत आज़ादी है.
वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में न्यूज़ीलैंड से हारने के बाद भारत के टूर्नामेंट से बाहर हो जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी के भविष्य पर चल रही बहस के बारे में सवाल पूछा गया था.
वॉ से न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने ये सवाल पूछा.
जब उनसे ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की रिटायरमेंट पॉलिसी और 2004 में क्रिकेट से उनके संन्यास के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "यह दिलचस्प है. ऑस्ट्रेलिया निश्चित रूप से ऐसा करता है क्योंकि वहां इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, आपको जाना ही पड़ता है."
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान स्टीव वॉ
हालांकि वॉ ने यह भी कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया में खिलाड़ियों की स्थिति को एक ही नज़रिए देखा जाना सही नहीं है.
उन्होंने कहा, "शायद भारतीय उपमहाद्वीप में आपको कुछ आज़ादी मिलती है क्योंकि यहां 140 करोड़ लोग आपको फॉलो कर रहे होते हैं. यहां एक क्रिकेटर आम खिलाड़ी नहीं रह जाता, वो महान बन जाता है, भगवान. इसके बाद संन्यास लेने का फ़ैसला आसान नहीं होता."
वॉ ने कहा, "यह निश्चित उम्र तक पहुंचने के बाद यह बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाता है. महेंद्र सिंह धोनी, जिनकी आप बात कर रहे हैं वो आज भी एक महान खिलाड़ी हैं."
अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े क्रिकेटरों को संन्यास को लेकर बहुत आज़ादी है? और क्या महेंद्र सिंह धोनी के संन्यास का सही वक्त आ गया है?
बात सबसे पहले धोनी की, क्योंकि वर्ल्ड कप में उनकी धीमी बल्लेबाज़ी पर लोग सवाल उठा रहे हैं और यह तक कह रहे हैं कि उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए.
7 जुलाई को 38 साल के हो चुके महेंद्र सिंह धोनी पांच साल पहले 2014 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं लेकिन वनडे और टी20 अब भी खेल रहे हैं.
वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल में हार के बाद विराट कोहली ने भी कहा कि अपने रिटायरमेंट के बारे में धोनी ने कुछ नहीं कहा है.
टी20 में धोनी ने 98 मैच में 1617 रन बनाये हैं. उनका औसत 37.60 रन और स्ट्राइक रेट 126.13 है.
जबकि वनडे में 10,773 रन बना चुके धोनी का औसत 50.58 रनों और स्ट्राइक रेट 87.56 है.
वर्ल्ड कप 2019 में धोनी रन बनाने के मामले में 27वें नंबर पर रहे. 272 रनों के साथ भारतीय बल्लेबाज़ों में वे रोहित शर्मा (648), विराट कोहली (443) और लोकेश राहुल (361) के बाद चौथे नंबर पर रहे.
वहीं बात अगर स्ट्राइक रेट की करें तो धोनी का वर्ल्ड कप में स्ट्राइक रेट 87.78 का रहा तो कप्तान कोहली इस टूर्नामेंट में 94.06 के स्ट्राइक रेट से खेले.
यहां यह बताना ज़रूरी है कि धोनी का ओवरऑल स्ट्राइक रेट भी 87.56 का ही है.
अगर बीते कुछ समय से धोनी के बल्लेबाज़ी के प्रदर्शन की बात करें तो 2016 में उन्होंने 13 वनडे में 27.80 की औसत से रन बनाये तो वहीं 2018 में भी उनका बल्लेबाज़ी औसत 25.00 का रहा.
लेकिन इसी दौरान 2017 में धोनी 60.62 की औसत से खेले तो 2019 में अब तक उनका बल्लेबाज़ी औसत 60.00 का है.
निश्चित ही धोनी के रिकॉर्ड यह बयां नहीं करते कि वो औसत से ख़राब प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन सवाल है कि क्या संन्यास के लिए उनको अपने प्रदर्शन के और गिरने का इंतज़ार करना चाहिए?
सचिन तेंदुलकर के नाम
पहला बड़ा उदाहरणः सचिन तेंदुलकर
धोनी के सामने सबसे बढ़िया उदाहरण तो खुद मास्टर ब्लास्टर के नाम से मशहूर दिग्गज पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर हैं जो उनसे 2019 वर्ल्ड कप के बाद संन्यास नहीं लेने की गुजारिश कर रहे हैं.
अपने क्रिकेट करियर के दौरान सचिन तेंदुलकर ने छह वर्ल्ड कप खेले हैं और इस दौरान उन्होंने कई रिकॉर्ड अपने नाम किये. अपने रिटायरमेंट के बाद सचिन ने खुद बताया है कि 2007 वर्ल्ड कप में प्रदर्शन के बाद वो संन्यास लेने का मन बना चुके थे लेकिन विवियन रिचर्ड्स की सलाह के बाद उन्होंने अपना मन बदला.
2011 के वर्ल्ड कप में भारत अपनी ही धरती पर चैंपियन बना और यह सचिन के पास संन्यास लेना का बहुत अच्छा मौका था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
2011 के वर्ल्ड कप जीतने के बाद खेले गये वनडे और टेस्ट मैचों में सचिन तेंदुलकर का प्रदर्शन गिरता गया.
इस दौरान उन्होंने 21 वनडे मैचों में 39.43 की औसत से रन बनाये तो वहीं 15 टेस्ट मैचों में महज 633 रन ही बना सके.
संन्यास के समय कपिल देव के नाम वनडे और टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज था
दूसरा उदाहरणः कपिल देव
भारत को पहला वर्ल्ड कप दिलाने वाले पूर्व कप्तान कपिल देव को क्रिकेट के सबसे बेहतरीन ऑलराउंडरों में से एक माना जाता है. लेकिन महज़ एक रिकॉर्ड की खातिर वो भी लंबे वक्त तक टीम में बने रहे जबकि उस दौरान उनका प्रदर्शन बहुत औसत रहा.
कपिल देव 1988 में ही एकदिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाले क्रिकेटर बन चुके थे. लेकिन टेस्ट मैचों में उस वक्त न्यूज़ीलैंड के रिचर्ड हेडली भी खेल रहे थे. इन दोनों के बीच इयान बॉथम के सर्वाधिक टेस्ट विकेटों के रिकॉर्ड को तोड़ने की होड़ लगी थी.
1988 में ही हेडली ने यह रिकॉर्ड तोड़ दिया और साल के अंत तक उनके विकेटों की संख्या 391 पर पहुंच गयी थी. हेडली अगले दो साल और खेले. 1990 में संन्यास लेने तक हेडली के विकेटों का पहाड़ 431 की संख्या तक पहुंच गया. तब कपिल देव के विकेटों की संख्या 365 थी. यानी वो रिर्चड हेडली के टेस्ट रिकॉर्ड से महज 66 विकेटों की दूरी पर थे.
हेडली का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए कपिल अगले चार साल और खेले. और इसके लिए उन्होंने 23 टेस्ट लिये.
इस दौरान उनका प्रदर्शन कैसा था इसका अंदाज़ा इसी से लग जाता है कि अपने अंतिम 14 टेस्ट मैचों में कपिल महज़ 27 विकेट ही ले सके थे.
कपिल देव की आलोचना इस बात को लेकर भी होती रही कि उनके टीम में लगातार होने की वजह से युवा गेंदबाज़ जवागल श्रीनाथ को टीम में अपनी जगह पक्की करने के लिए इंतज़ार करना पड़ा.
वसीम अकरम के साथ जावेद मिंयादाद
एक उदाहरण मिंयादाद का भी...
जब पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर जावेद मियांदाद ने क्रिकेट को अलविदा किया था तब उन्होंने कहा था कि उन पर संन्यास लेने के लिए मीडिया का बहुत दबाव था.
मिंयादाद ने 1996 के वर्ल्ड कप में भारत के ख़िलाफ़ क्वार्टर फ़ाइनल में हुई पाकिस्तान की हार के बाद संन्यास ले लिया था.
1992 में जब मियांदाद अपना छठा वर्ल्ड कप खेल रहे थे तब पाकिस्तान चैंपियन बना था और इसमें एक हीरो मिंयादाद भी थे. फ़ाइनल मुक़ाबले में पाकिस्तान अपने शुरुआती विकेट गंवा चुका था. फिर कप्तान इमरान ख़ान और जावेद मिंयादाद ने ही अपनी-अपनी अर्धशतकीय पारी से पाकिस्तान की पारी को संभाला था.
बहुत बाद में उन्होंने यह भी माना था कि अपने करियर को खींच कर उन्होंने ग़लती की थी. उन्होंने माना कि 1992 उनके लिए संन्यास लेने का सबसे बेहतरीन मौका था क्योंकि उन्होंने तब 437 रन बनाये थे और टीम चैंपियन बनी थी.
लेकिन इसके बाद भी वो टेस्ट मैच खेलते रहे और बिना कोई शतक अगले 11 टेस्ट मैचों में 32.11 की औसत से महज 578 रन बनाये.
1992 के बाद उन्होंने कोई वनडे नहीं खेला फिर भी 1996 की वर्ल्ड कप टीम में शामिल किये गये और टूर्नामेंट में उन्होंने कुल 54 रन ही बनाये.
अब यह धोनी पर है कि वो क्रिकेट के उपरोक्त दिग्गजों की तरह संन्यास लेना चाहते हैं या भारत के दिग्गज क्रिकेटर लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर या इंग्लैंड के इयान बॉथम और वेस्टइंडीज के सर गारफील्ड सोबर्स की तरह संन्यास लेना पसंद करेंगे क्योंकि जब इन दिग्गजों ने क्रिकेट छोड़ी थी तब यह कहा जा रहा था कि अभी उनमें कुछ साल क्रिकेट खेलने का दमखम बाकी है.
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