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अल्ज़ाइमर की नई दवा को कंपनी ने क्यों छिपाए रखा?

<figure> <img alt="फाइज़र" src="https://c.files.bbci.co.uk/89F4/production/_107261353_fabffcc9-1b3b-4383-856d-1785169747ce.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जब पिछले साल जनवरी में जब दवाइयां बनाने वाली अमरीकी कंपनी फाइज़र ने अल्ज़ाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों के लिए नई दवा न बनाने का ऐलान किया तो मरीज़ों और शोधकर्ताओं के बीच एक निराशा छा गई थी.</p><p>इससे पहले यह कंपनी अल्ज़ाइमर के लिए वैकल्पिक दवा […]

<figure> <img alt="फाइज़र" src="https://c.files.bbci.co.uk/89F4/production/_107261353_fabffcc9-1b3b-4383-856d-1785169747ce.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जब पिछले साल जनवरी में जब दवाइयां बनाने वाली अमरीकी कंपनी फाइज़र ने अल्ज़ाइमर और पर्किंसन जैसी बीमारियों के लिए नई दवा न बनाने का ऐलान किया तो मरीज़ों और शोधकर्ताओं के बीच एक निराशा छा गई थी.</p><p>इससे पहले यह कंपनी अल्ज़ाइमर के लिए वैकल्पिक दवा तलाशने में लाखों डॉलर ख़र्च कर चुकी थी. लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि ये पैसा कहीं और दूसरे काम में ख़र्च किया जाएगा.</p><p>फाइज़र ने इसे सही ठहराते हुए कहा था कि हमें इस ख़र्च को वहां लगाना चाहिए जहां हमारे वैज्ञानिकों की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.</p><p>लेकिन अमरीकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट की एक ख़बर के अनुसार कंपनी ने इस शोध के परिणामों को छिपाकर रखा, जबकि ये नतीजे अल्ज़ाइमर के ख़िलाफ़ लड़ाई में बेहद अहम थे.</p><figure> <img alt="फाइज़र" src="https://c.files.bbci.co.uk/D814/production/_107261355_d437087a-5d42-4424-990c-36c9d2f1bf48.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>ऐसा क्यों किया गया, यह समझना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि मानसिक सेहत को अब चिकित्सा जगत के लिए बड़ी चुनौती समझा जा रहा है.</p><p>यह अध्ययन सैकड़ों बीमा दावों के आधार पर की गई थी, जिससे पता चला है इनफ्लेशन (सूजन) को कम करने वाली फाइज़र की एक दवा- ‘एन्ब्रेल’ जो रयूमेटॉइड अर्थराइटिस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है, वह अल्ज़ाइमर के ख़तरे को 64 फीसदी तक कम कर सकती थी. </p><p>2018 में फ़ाइज़र की एक अंदरूनी समिति के एक प्रेजेंटेशन में बताया गया था कि &quot;एन्ब्रेल अल्ज़ाइमर को रोक सकती थी, उसके इलाज और उसके बढ़ने की गति को कम कर सकती थी.&quot;</p><p>कंपनी ने वाशिंगटन पोस्ट से बातचीत में ये नतीजे सार्वजनिक न किए जाने की पुष्टि की.</p><p>अख़बार के अनुसार, &quot;कंपनी ने कहा कि तीन साल में अंदरूनी समीक्षा के दौरान ये पाया गया कि एन्ब्रेल अल्ज़ाइमर के इलाज में कारगर नहीं है क्योंकि यह दवा सीधे ब्रेन टिशू तक नहीं पहुंचती.&quot;</p><p>फाइज़र का कहना था कि अल्ज़ाइमर के ख़िलाफ़ इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल की कामयाबी के आसार कम थे.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international/2015/08/150819_female_viagra_us_ps?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’महिलाओं के लिए वायग्रा’ को मंज़ूरी</a></li> </ul> <ul> <li><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/business/2010/01/100124_pfizer_india_alk?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">फ़ाइजर की नज़र भारतीय कंपनी पर</a></li> </ul><figure> <img alt="दवाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/12634/production/_107261357_9bac8e6d-13e5-4f09-8805-13854c73a7f1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><h1>&quot;गलत रास्ता&quot;</h1><p>वाशिंगटन पोस्ट की ख़बर के मुताबिक, &quot;फाइज़र ने कहा कि उन्होंने इसलिए अपने शोध के नतीजे सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि यह अल्ज़ाइमर की दूसरी दवा खोजने के लिए काम कर रहे दूसरे वैज्ञानिकों को भटका सकता था.&quot; </p><p>इस ख़बर में कुछ प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों का भी हवाला दिया गया है. अल्ज़ाइमर पर शोध कर रहे हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में प्रोफेसर रुडोल्फ़ ई. तंज़ी कहते हैं, &quot;बिल्कुल उन्हें ये करना ही चाहिए था.&quot;</p><p>अल्ज़ाइमर के एक अन्य शोधकर्ता जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में प्रोफेसर कीनन वॉकर ने कहा, &quot;वैज्ञानिकों के लिए ये जानकारी काफ़ी उपयोगी होती. जानकारी चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, हमें बेहतर फैसला लेने में मदद करते हैं.&quot;</p><p>फ़ाइज़र निश्चित रूप से यह जानती है कि कई बार एक बीमारी के लिए बनाई गई दवा दूसरी बीमारी के इलाज में ज़्यादा कारगर निकलती है. वायग्रा के संबंध में यही हुआ है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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