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‘कभी कोटा केवल शहर हुआ करता था आज ‘कोटा फैक्ट्री’ है’

<p><strong><em>”शर्मा जी पूछेंगे तो बताएंगे आईआईटी</em></strong><strong><em>, </em></strong><strong><em>नीट की तैयारी कर रहा है कोटा से, कूल लगता है”</em></strong></p><p><strong><em>”बच्चे दो साल में कोटा से निकल जाते हैं, कोटा सालों तक बच्चों से नहीं निकलता.” </em></strong></p><p>ऊपर लिखी गई पंक्तियां टीवीएफ पर शुरू हुई नई वेबसीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ की हैं. ये ऐसी पहली सीरीज़ है जो ब्लैक एंड व्हाइट […]

<p><strong><em>”शर्मा जी पूछेंगे तो बताएंगे आईआईटी</em></strong><strong><em>, </em></strong><strong><em>नीट की तैयारी कर रहा है कोटा से, कूल लगता है”</em></strong></p><p><strong><em>”बच्चे दो साल में कोटा से निकल जाते हैं, कोटा सालों तक बच्चों से नहीं निकलता.” </em></strong></p><p>ऊपर लिखी गई पंक्तियां टीवीएफ पर शुरू हुई नई वेबसीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ की हैं. ये ऐसी पहली सीरीज़ है जो ब्लैक एंड व्हाइट है और जो लॉन्च होने के कुछ ही दिनों में काफी लोकप्रिय बन गई. </p><p>इसके डायलॉग्स को लेकर कई तरह के मीम्स बन रहे हैं जो सोशल मीडिया पर काफी साझा किए जा रहे हैं. </p><p>राजस्थान का मशहूर शहर कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए अनजाना नहीं है. घर से दूरी, पढ़ाई का बोझ, अच्छे नंबरों के दबाव के साथ, स्टूडेंट्स राजस्थान के कोटा शहर में क़िस्मत आज़माने जाते हैं. </p><p>यहां पूरे भारत से स्टूडेंट्स आईआईटी और नीट की तैयारी करने जाते हैं. इन्हीं स्टूडेंट्स के हालात और समस्याओं की कहानी को द वायरल फीवर (टीवीएफ) ने ‘कोटा फैक्ट्री’ के माध्यम से दिखाया है. </p><p>वेब सीरीज़ वहां के स्टूंडेंट्स की कई समस्याओं बात करती है. इसमें इन्हीं स्टूडेंट्स की कहानी को दिखाया गया है.</p> <ul> <li><strong>ये भी पढ़ें- </strong><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2016/05/160519_kota_suicide_coaching_institutes_sr?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कोटा, करियर और ख़ुदकुशी</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46693636?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कोटा: कोचिंग सेंटरों में छात्र क्यों कर रहे आत्महत्या</a></li> </ul><h1>’कोटा फैक्ट्री’ की ख़ासियत</h1><p>वे सभी छात्र जो पहले हॉस्टल की ज़िंदगी जी चुके हैं, जो हॉस्टल मे रह रहे हैं या फिर भविष्य में रहने वाले हैं, वे सभी अपनी ज़िंदगी को इस सीरीज़ की कहानी से जुड़ा पाते हैं. </p><p>इस कहानी में एक किरदार हैं जीतू भैया और दूसरा किरदार है वैभव पांडे. वैभव दसवीं पास करने के बाद आईआईटी की तैयारी करने आया है. कहानी में शिक्षा की व्यवसायिक समस्याओं समेत, खाने की और पढ़ाई की समस्याओं पर रौशनी डाली गई है. </p><p>इसके डायलॉग और भावनात्मक अपील लोगों को बहुत पसंद आ रही है. </p><p><strong><em>”हम यहां तब से हैं जब कोटा फैक्ट्री नहीं शहर हुआ करता था”</em></strong></p><p><strong><em>”दोस्ती कोई रिवीज़न थोड़ी है जो की ही जाए…” </em></strong></p><p>ये कुछ ऐसे डायलॉग हैं जो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहे हैं. </p><p>’कोटा फैक्ट्री’ देखने वाले कई लोगों को ये सीरीज़ बहुत पसंद आई लेकिन कुछ ने इसे एवरेज सीरीज़ भी बताया है. </p><p>दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ चुके राघवेंद्र शर्मा बताते हैं, ”इसकी सबसे अच्छी बात ये लगी कि ये हमें पुराने दिनों में ले जाकर खड़ा कर देती है. इसकी सबसे ज़्यादा पसंद आने वाली बात इसकी बेहतरीन कहानी है जो अपने साथ जोड़े रखती है.”</p><h1>’शहर नहीं हॉस्टल है'</h1><p>बनारस से आईआईटी की तैयारी करने वाले तन्मय पाठक बताते हैं, ”ये सीरीज़ काफी रीयल है. जो लोग कोटा में नहीं रहते हैं वो भी इससे जुड़ पाते हैं और प्यार वाला एंगल तो बहुत ही अच्छा था.”</p><p>कोटा से आईआईटी की तैयारी कर चुके दिव्यम ने बताया, ”कहानी अच्छी थी लेकिन इस सीरीज़ में जो बच्चों का घूमना दिखाया गया है उतना असल में नहीं होता. मैं इसे एक एवरेज सीरीज कहूंगा.”</p><p> मीडिया के अलग अलग चैनल और अख़बार इसे अलग अलग नज़र से देखते हैं.</p><p>अंग्रेज़ी वेबसाइट द वायर ने लिखा है, ”ये कोटा शहर के चित्रात्मक दृश्यों को सामने लाता है. कहानी के शुरू होते ही हम सुनते हैं कि एक ऑटो रिक्शा वाला कहता है- ‘ये एक शहर नहीं बल्कि हॉस्टल है’. इसके बाद वो शहर के इतिहास के बारे में बताता है. जिससे कहानी का संदर्भ और क़िरदार उभर कर आता है.”</p><p><strong>असल </strong><strong>ज़िंदगी </strong><strong>में जीतू भैया</strong></p><p>हिंदी वेबसाइट ‘अमर उजाला’ ने लिखा है, ”वेब सीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ को ब्लैक एंड व्हाइट में रिलीज करने का टीवीएफ का आइडिया भी कमाल का है. मनोरंजन जगत जब स्पेशल इफेक्ट्स के एवेंजर्स दौर में पहुंच चुका है. एक ज़मीन से जुड़ी कहानी को ब्लैक एंड व्हाइट में पेश करना इस सीरीज़ का पहला हुकर प्वाइंट है.”</p><p>अंग्रेज़ी वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने लिखा है, ”बहुत समय बाद शिक्षा की दुनिया में ऐसा व्यंग्य देखने को मिला है जो बेहतरीन प्रदर्शन के साथ एक मज़बूत कहानी कहता है”.</p><p>कोटा फैक्ट्री में मुख्य किरदार हैं जीतू भैया. वे एक ऐसे फिज़िक्स टीचर हैं जो स्टूडेंट्स की समस्याओं और वास्तविकता को समझता है. उनका असली नाम जितेंद्र कुमार है. ये खुद आईआईटी से पढ़े हुए हैं और कोटा से कोचिंग कर चुके हैं. </p><p>आईआईटी से पढ़ाई करने के बाद जितेंद्र ने एक्टिंग की राह चुनी. कॉलेज में थिएटर कर चुके हैं. सीनियर्स के साथ मिलकर टीवीएफ़ से ही अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत की.</p> <ul> <li><strong>ये भी पढ़ें-</strong><a href="http://www.bbc.com/hindi/india/2015/06/150620_2nd_part_coaching_centre_rajasthan_rns?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कैसे बन गया कोटा कोचिंग का अड्डा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48318333?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मौत का रहस्य जानना था, जेएनयू छात्र ने दी जान</a></li> </ul><h1>बदल रहा है कोटा</h1><p>बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ”ये क़िरदार मेरी असल ज़िंदगी से ज़्यादा प्रभावित नहीं हैं. हां, मैंने भी बच्चों को फिज़िक्स पढ़ाया है. लेकिन मैं कहीं से भी इस तरह का टीचर नहीं था. हमारे पुराने टीचर्स और राइटर्स के अनुभव को एक साथ जोड़ कर ये क़िरदार बुना गया है.”</p><p>जितेंद्र कहते हैं, ”मैंने भी कोटा से कोचिंग ली है लेकिन अभी का कोटा काफी बदल गया है. हमें आज का कोटा दिखाना था तो इस पर काफी रिसर्च की गई. अब माहौल काफी बदल गया है. हमारे समय पर हॉस्टल कल्चर कम था. हम फैमली के साथ रहते थे. लेकिन शूटिंग करते समय पुराने दिनों को खूब याद किया.” </p><p>उन्होंने बताया कि ‘ये कहानी एक स्टूडेंट की समस्याओं और उसे अपने टीचर से मिली मदद के ऊपर है. हमारा मकसद है उस बदलाव को दिखाना है जो पढ़ने के लिए बाहर जाने वाले बच्चों की ज़िंदगी में आते हैं.'</p><p>द वायरल फीवर (टीवीएफ) ने ये वेबसीरीज़ 16 अप्रैल 2019 को लॉन्च की थी. सीरीज़ के 5 एपिसोड हैं जो 30 मिनट से लेकर 46 मिनट तक के हैं. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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