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क्या डूब जाएगा कोलकाता का तैरता बाज़ार?

धूमधाम से उद्घाटन के महज चार महीने के भीतर ही कोलकाता स्थित पूर्वी भारत के पहले फ्लोटिंग मार्केट के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने थाईलैंड की तर्ज पर नौ करोड़ की लागत से इस बाजार को बसाया था. शुरुआती दौर में लोग उत्सुक होकर इसे देखने-घूमने आते थे और लगे […]

धूमधाम से उद्घाटन के महज चार महीने के भीतर ही कोलकाता स्थित पूर्वी भारत के पहले फ्लोटिंग मार्केट के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने थाईलैंड की तर्ज पर नौ करोड़ की लागत से इस बाजार को बसाया था. शुरुआती दौर में लोग उत्सुक होकर इसे देखने-घूमने आते थे और लगे हाथों खरीददारी भी कर लेते थे.

लेकिन अब इस बाजार की दुकानों पर ग्राहकों का भारी टोटा है. अब भी शनिवार और रविवार की शाम को यहां काफ़ी भीड़ जुटती है. लेकिन वह महज घूमने और सेल्फी लेने वालों की भीड़ होती है.

कोलकाता के पूर्वी छोर पर एक झील में बसे इस बाजार में 140 नावों पर 280 दुकानें लगनी थीं. लेकिन कई नावें अब तक खाली पड़ी हैं.

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दरअसल, यह बाजार हॉकरों के पुनर्वास की राज्य सरकार की योजना का हिस्सा है. इस इलाके में पहले दो सौ से ज्यादा हॉकर सड़क के किनारे वीआईपी बाजार में अपनी दुकानें लगाते थे.

लेकिन सड़क को चौड़ा करने की वजह से उनकी दुकानें उजड़ गई थीं. उन हॉकरों के पुनर्वास के लिए ही सरकार ने इस झील में बैंकाक की तर्ज पर बाजार बसाने का फैसला किया था.

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पूर्वी भारत का पहला बाज़ार

कोलकाता की पाटुली झील पर बना यह बाजार पूर्वी भारत का पहला तैरता बाजार है.

कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण की ओर से नौ करोड़ की लागत से बनाए गए इस बाजार में फल-सब्जी, मछली और फूलों समेत तक सबकुछ नावों पर ही बिकता है.

झील में डेढ़ सौ से भी ज्यादा नावों में तरह-तरह के सामान बिकते हैं. पांच सौ मीटर लंबे और 60 मीटर चौड़े इस बाजार में खरीददारों के लिए लकड़ी की पुलिया पर रास्ते बने हैं जिनको वॉकवे कहा जा रहा है.

यह महानगर को उत्तर से दक्षिण तक जोड़ने वाली मुख्य सड़क ईस्टर्न बाईपास के ठीक किनारे स्थित है.

झील में फिलहाल 114 नावें हैं. हर नाव पर दो-दो दुकानें लगी हैं.

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सरकारी सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने बैंकाक दौरे के दौरान झील पर बाजार बसाने का ख्याल आया था वहां से लौटने के बाद उन्होंने अधिकारियों से इस बारे में बात की और इस योजना को मूर्त रूप दिया गया.

पश्चिम बंगाल के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम कहते हैं, ‘ सरकार तो कोलकाता को लंदन बनाने का प्रयास कर रही है.’

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क्या हैं इस बाज़ार से जुड़ी समस्याएं

इस साल जनवरी के आखिरी सप्ताह में जब इस बाजार का उद्घाटन किया गया तब यहां रोजाना भारी भीड़ जुटती थी.

दरअसल, इस बाजार की पुरानी जगह के ग्राहकों और तैरता हुआ बाजार देखने के उत्सुक लोगों की भीड़ थी.

शुरूआती एकाध महीनों के बाद खासकर अब गर्मी बढ़ने के बाद बाजार से भीड़ छंटने लगी है. इससे इस बाजार औऱ यहां दुकान लगाने वाले दुकानदारों के भविष्य पर संकट के गहरे बादल मंडराने लगे हैं.

दरअसल, यहां दुकानदार तो छांव में बैठते हैं, लेकिन ग्राहकों के लिए ऐसी कोई सहूलियत नहीं है. नतीजतन ज्यादातर लोगों ने अपने मोहल्ले के बाजारों का रुख कर लिया है.

गर्मी और उसके बाद होने वाली बरसात में ग्राहकों की तादाद और घटने का अंदेशा है.

यहां खरीददारी कर रहे कल्याण रायचौधरी कहते हैं, ‘बंगाली लोग किसी भी वस्तु को हाथों में लेकर परखने के बाद ही उसे खरीदते हैं. लेकिन यहां आप रेलिंग की वजह से किसी चीज को छू कर नहीं देख सकते.’

सब्जी बेचने वाले खोकन साहा कहते हैं, ‘रेलिंग में ऐसी जगह बनाना मुश्किल है जहां से लोग नाव में उतर सकें या उसके करीब आ सकें. झील का पानी 10-12 फीट गहरा है. वैसी स्थिति में लोगों खासकर छोटे बच्चों के झील में गिरने का खतरा बना रहेगा.’

एक सब्जी विक्रेता गीता बताती हैं, ‘बीते तीन महीने में छह हजार रुपये का घाटा होने के बाद मैंने अब दुकान में सब्जी की बजाय गोलगप्पे बेचने का फैसला किया है.

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वह कहती है कि दूर-दराज से शनिवार और रविवार की शाम को यहां घूमने वाले लोग खरीददारी नहीं करते. लेकिन शायद उनको गोलगप्पे पसंद आ जाएं. एक मछली विक्रेता रवि बताता है कि पुराने बाजार में उसका धंधा अच्छा था. यहां कुछ पुराने ग्राहक आते हैं. इससे किसी तरह रोजी-रोटी चल रही है.

ग्राहकों की भीड़ घटने की वजह से बाजार के दुकानदार अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं.

इस बाजार की देख-रेख करने वाले केएमडीए के अधिकारियों ने दुकानदारों की समस्या पर विचार करने का भरोसा दिया है.

शहरी विकास मंत्री, जो केएमडीए के अध्यक्ष भी हैं, फिरहाद हकीम कहते हैं, सरकार इस बाजार को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस पहल करेगी. इसके लिए विशेषज्ञों से भी सलाह ली जा रही है.

यहां ख़रीददारी कर रहे एक ग्राहक सुरजीत घोषाल कहते हैं, ‘पुनर्वास की यह योजना तो बहुत अच्छी थी. लेकिन इसमें बेसिक चीजों का ख्याल नहीं रखा गया. अब अगर दुकानदारों की दिक्कतों को दूर करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हई तो इस फ्लोटिंग मार्केट पर डूबने का गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा.’

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