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ऑड ही अब ईवन है

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshkant@gmail.com ‘ऑड’ पहले ‘ऑड’ ही हुआ करता था- ‘ऑड’ उसे कहते ही इसलिए थे कि वह ‘ईवन’ नहीं, बल्कि ‘ऑड’ होता था. तब ‘ऑड मैन’ को भी ‘आउट’ इसीलिए कर दिया जाता था कि वह ‘ऑड’ है, ‘ईवन’ नहीं. पर अब समय बदल गया है और ‘ऑड’ अब उतना ‘ऑड’ नहीं […]

सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
drsureshkant@gmail.com
‘ऑड’ पहले ‘ऑड’ ही हुआ करता था- ‘ऑड’ उसे कहते ही इसलिए थे कि वह ‘ईवन’ नहीं, बल्कि ‘ऑड’ होता था. तब ‘ऑड मैन’ को भी ‘आउट’ इसीलिए कर दिया जाता था कि वह ‘ऑड’ है, ‘ईवन’ नहीं.
पर अब समय बदल गया है और ‘ऑड’ अब उतना ‘ऑड’ नहीं रहा, काफी हद तक ‘ईवन’ हो गया है. बल्कि अगर यह कहा जाये कि ‘ऑड’ ही अब ‘ईवन’ है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. यह प्रदूषण का योगदान है हम मनुष्यों को और प्रदूषण योगदान है हम मनुष्यों का पर्यावरण को. पहले हमने पानी को प्रदूषित किया, ताकि वाटर-प्यूरीफायर इस्तेमाल कर सकें. तब से समझ नहीं आ रहा था कि माहौल बिगाड़ने के लिए और क्या किया जा सकता है.
कोशिशों में लगे थे, पर सफल नहीं हो पा रहे थे. ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ पर से भी भरोसा उठने लगा था. घरों-दफ्तरों में लगा वाटर-प्यूरीफायर अलग अकेला बोर हो रहा था. अब कहीं जाकर हमारी मेहनत रंग लायी है, जब हमने वायु को भी इतना प्रदूषित कर लिया है कि बिना मास्क पहने घर से निकलना मुश्किल हो गया है और बिना एयर-प्यूरीफायर लगाये घर में रहना.
हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि प्रदूषण से किसी की जान नहीं जाती. इससे लोगों की जान में जान आयी है और उन्होंने अपनी जान जाने की स्थिति में प्रदूषण को उसका कारण समझना छोड़ दिया है और ‘वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है, इलजाम किसी और के सर जाये तो अच्छा’ गाने लगे हैं. हमारे नेता, नेता अच्छे हों या न हों, पर पर्यावरणविद बहुत अच्छे हैं.
एक नेता ने रहस्योद्घाटन किया है कि प्रदूषण असल में ईश्वरीय प्रकोप है, जिसे दूर करने के लिए हमें यज्ञ कर इंद्रदेव को प्रसन्न करना चाहिए. कुछ नेता दूसरे प्रदेशों के किसानों पर पराली जलाकर प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाते हैं. कुछ उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ देखते हैं. वे यह मानकर चलते हैं कि हिंदुस्तान की हर समस्या के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. यह कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि इसी का हल्ला मचाकर ऐसे नेता सत्ता में आये हैं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ट्रैफिक में ऑड-ईवन लागू कर इन दोनों को अलग बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, पर विपक्ष के नेता खुद उसका उल्लंघन कर उसे गलत साबित किये दे रहे हैं. उनकी नजर में ऑड-ईवन सही है, अगर उसे वे खुद लागू करें, और गलत है अगर उसे कोई दूसरी पार्टी लागू करे.
वैसे मैं ऑड-ईवन को एक बढ़िया सिद्धांत की तरह देखता हूं, जिसे जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है. महाराष्ट्र में जहां शिवसेना-बीजेपी के हठयोग की वजह से इतने दिनों से सरकार का गठन नहीं हो पा रहा और राष्ट्रपति-शासन की संभावना आ गयी है. ऑड-ईवन उसका भी समाधान हो सकता है.
सप्ताह के सात दिनों में से ऑड दिनों में शिवसेना सरकार में रहे, ईवन दिनों में बीजेपी और सातवें दिन राष्ट्रपति शासन लागू हो. इस तरह सबकी सत्ता की भूख शांत हो सकती है. अन्य क्षेत्रों में ऑड-ईवन के प्रयोग के बारे में फिर कभी.

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