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मीरा के घनश्याम

कविता विकास लेखिका kavitavikas28@gmail.com हर काल में एक ऐसा युगपुरुष हुआ है, जो नरोत्तम होने के साथ दैवी शक्तियों से लैस रहा, जिसे ईश्वर माना गया. ऐसे ही प्रेरक पुरुष के रूप में सबसे मनमोहक रूप कृष्ण का है, जो संपूर्ण पुरुष हैं. कृष्ण के बाल रूप में उन्हें एक नटखट बच्चा और माखन चोर […]

कविता विकास
लेखिका
kavitavikas28@gmail.com
हर काल में एक ऐसा युगपुरुष हुआ है, जो नरोत्तम होने के साथ दैवी शक्तियों से लैस रहा, जिसे ईश्वर माना गया. ऐसे ही प्रेरक पुरुष के रूप में सबसे मनमोहक रूप कृष्ण का है, जो संपूर्ण पुरुष हैं.
कृष्ण के बाल रूप में उन्हें एक नटखट बच्चा और माखन चोर का प्यारा संबोधन मिलता है, जो किसी आम बच्चे-सा ही है. किशोरवय का गोपाल कहीं मटकी फोड़ता है, तो कहीं बांसुरी की धुन से पशु-पक्षी, जीव-जंतु सबको मंत्रमुग्ध कर देता है. वह गोपाल एक उत्कट प्रेमी भी है, जो गोपियों संग यमुना तट पर आंख-मिचौली खेलता है और राधा के सान्निध्य में प्यार का सोपान चढ़ता है.
कृष्ण एक योद्धा, दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे. अर्जुन के जरिये कर्म की प्रधानता का ज्ञान देना संपूर्ण विश्व के लिए गीता का मुख्य पाठ बन गया. युद्ध की पटकथा लिखकर शांति का महत्व समझाया. विनाश की रासलीला के बाद निर्माण का बीज भी बोया. अनेक व्यक्तित्व का एक व्यक्तित्व में समा जाना ही कृष्ण होना है. इसलिए ऐसे युगधर्मी का जन्म भाद्र पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि में धूमधाम से मनाया जाता है.
कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी थीं. राधा उनकी बाल-सखा थीं, जिनके साथ उनका प्रेम एक निश्छल और निस्वार्थ प्रेम की मिसाल बन गया. पर उसी काल में कृष्ण के लिए मीरा का अशरीरी प्रेम तमाम रिश्तों से परे रूहानी प्रेम का उदात्त रूप प्रस्तुत करता है. मीरा राजस्थान के मेड़तिया राठौर वंश की राजकुमारी थीं, जिन्हें उनकी मां ने बचपन में ही कृष्ण की एक मूर्ति देते हुए मजाक किया कि वही उनके पति हैं.
मीरा को तब पति का अर्थ भी नहीं पता था और जब पता चला, तो वास्तविक पति भोजराज से कहा, ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों ना कोई/ जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई…’
मीरा कृष्ण की रागिनी थीं. कृष्ण की इस दासी को उनमें दिन-रात मगन रहने के लिए घोर यातना झेलनी पड़ी, घर-समाज, पति-ससुराल सबकी. दुख में लिखा काव्य भावनाओं की चरम अभिव्यक्ति का साक्ष्य होता है और जब दुख भी प्रेम से उपजा हो, तब तो वह रचना कालजयी हो जाती है.
मध्यकाल में रहीम, रसखान या सूरदास की रचनाओं में कृष्ण एक आराध्य के रूप में परिलक्षित होते रहे हैं, लेकिन मीरा उनके बीच बिल्कुल अलग हैं, क्योंकि उन्होंने अपने आराध्य को जीया है, पति से लेकर ईश्वरत्व की अनुभूति प्राप्त की और उनके ध्यान में खुद को डुबो दिया- ‘मेरे पिया मेरे हीये बसंत है/ ना कहुं आती-जाती, मैं गिरधर केरंग राती…’
मीरा सदेह कृष्ण में समाकर परलोक चली गयीं. कृष्ण मोह और वैराग्य साथ-साथ पैदा करते थे. भक्ति-प्रार्थना से परे जा रही नयी पीढ़ी को भगवान कृष्ण के व्यक्तित्व से परिचित होना चाहिए.
उन्हें जानना होगा कि जो यशोदा का नंदकिशोर है वही गिरधारी है, जो गोपाल है वही गोविंद है, जो राधा का मोहन है वही मीरा का घनश्याम है, जो जगत का कल्याण करनेवाला जगन्नाथ है वही द्वारिकाधीश है. एक बहुआयामी व्यक्तित्व, जो अपने हर संबोधन के साथ न्याय करता है.
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