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हार के स्पांसर क्यों नहीं

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com क्रिकेट के विश्व कप में सेमीफाइनल में भारतीय टीम क्या हारी, शोक छा गया है. सिर्फ दर्शकों में नहीं, स्पांसरों में भी जिन्होंने वर्ल्ड कप में पैसा लगाया है. भारत बाहर हो जाये, तो टूर्नामेंट को भारतीय दर्शक न मिलते. भारतीय दर्शक मैच न देखें, तो मैच का हाल राजनीतिक […]

आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
क्रिकेट के विश्व कप में सेमीफाइनल में भारतीय टीम क्या हारी, शोक छा गया है. सिर्फ दर्शकों में नहीं, स्पांसरों में भी जिन्होंने वर्ल्ड कप में पैसा लगाया है. भारत बाहर हो जाये, तो टूर्नामेंट को भारतीय दर्शक न मिलते. भारतीय दर्शक मैच न देखें, तो मैच का हाल राजनीतिक दलों के संसदीय दल की बैठक जैसा हो जाता है. बैठक है, पर रौनक नहीं है.
दर्शक है तो रौनक है, रौनक है तो स्पांसर हैं. इंडियन क्रिकेट टीम हार कर भी चर्चा में है. लेकिन कई लड़कियों ने हाॅकी समेत तमाम खेलों में शानदार प्रदर्शन किया है, उनकी कहीं कोई चर्चा नहीं है. बच्चों, हारी हुई चर्चित क्रिकेट टीम बनना बेहतर है या जीती हुई, पर अचर्चित हाॅकी टीम. इस सवाल का जवाब बच्चे क्या दें, जवाब साफ है.
हारी हुई क्रिकेट टीम भी चर्चा में रहती है, स्पांसरों की निगाह में रहती है. हारे हुए क्रिकेट खिलाड़ी भी माॅडलिंग करते हैं. अब सेमीफाइनल में विराट कोहली एक रन पर आउट हो लिए, पर वह फिर भी तमाम विज्ञापनों में पिज्जा खाते हुए, उस शैंपू से बाल लहराते हुए, उस बाइक से जाते हुए, उस टैक्सी सर्विस से जाते हुए दिखायी देंगे. जीत का क्रेडिट उस बाइक या शैंपू को है, तो हार की जिम्मेदारी कौन लेगा?
जीत की स्पांसरशिप तमाम ब्रांडों की है, पर हार की स्पांसरशिप किसकी है, यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है. जैसे उस वाली टैक्सी सर्विस को जिम्मेदारी लेनी चहिए कि विराट कोहली एक ही रन बना पाये. हम बता देते हैं कि विराट कोहली भी एक नंबर पर अटके, हम भी एक ही नंबर पर अटके हैं, हम नंबर एक टैक्सी सर्विस हैं. विराट और हम दोनों एक ही नंबर पर अटके हैं.
उस बाइक को बताना चाहिए कि विराट भले ही एक नंबर पर आउट हुए, पर हमारी बाइक आउट न होती, कभी न आउट होनेवाली बाइक. उस वाले शैंपू को बताना चाहिए कि भले ही एक रन पर आउट होकर विराट की चमक कम हो गयी हो, पर हमारे शैंपू से जो चमक बालों में आती है, वह कभी न कम होती.
उस पिज्जा का विज्ञापन आना चाहिए, बैटिंग में भले ही विराट सबसे महत्वपूर्ण मैच में सिर्फ एक पर आउट हुए, पर हम कभी भी आउट ना होते, तीस मिनट में पिज्जा डिलीवर करते हैं. विराट को आउट होने दीजिये, हमें घर में इन कीजिए.
इस तरह के विज्ञापन भी आने चाहिए. ताकि नये बच्चों को पता लगे कि जिम्मेदारी लेनी पड़ती है. जीत की जिम्मेदारी तमाम ब्रांड ले उड़ते हैं. बेहतरीन परफाॅरमेंस का क्रेडिट ब्रांड ले उड़ते हैं, तो खराब परफाॅरमेंस की जिम्मेदारी कौन ले?
इंडिया के सेमीफाइनल मैच में बाहर होने पर एक नेताजी ने बताया कि जिस तरह से नेताओं को दो सीटों पर लड़ने की छूट होती है, उसी तरह वर्ल्ड कप में भी टीम को दो सेमीफाइनल में खेलने की छूट होनी चाहिए. इसमें हार गये, उसमें जीत गये, तो फाइनल में तो पहुंच जायें. जैसे कोई अमेठी में हार जाये, वायनाड में जीत जाये, तो संसद तो पहुंच जाये. होगा होगा, क्रिकेट में भी एक दिन यही होगा.

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