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santoshutsuk@gmail.com
हर परिवार का मुखिया अपने तरीके से परिवार का नाम चमकाने के लिए कितनी तरह के जुगाड़ करता है. अमेरिका के राष्ट्रपति, अमेरिकी जीवन में अनेक चांद और मंगल लगाने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे हैं.
उधर अमेरिकी और बेल्जियम के विश्वविद्यालय मिल कर कैसे-कैसे शोध करवाते रहते हैं. अमेरिकियों ने मूल शोध पर दोबारा चार साल तक शोध करवाया और पिछले दिनों पता नहीं क्यों उसे जग जाहिर कर दिया. हमारे यहां तो ऐसे शोध पर बैन लगा देते, जारी करने का तो सवाल भी नहीं उठता.
विदेश में स्थायी रूप से बसने को चौबीस घंटे लालायित, वहां दशकों रहने के बाद भी हम कहते रहते हैं कि अपना मुल्क तो अपना ही होता है जी, क्योंकि परदेस में हम दूसरे दर्जे के नागरिक जो होते हैं. अमेरिकी भी मानते हैं कि नागरिक के तौर पर उनकी सशक्त राष्ट्रीय पहचान नहीं है. उस अध्ययन के अनुसार, अमेरिकी भी हमारी तरह अपने देश में रहकर खुश नहीं हैं. वैसे यह बोलना अच्छी बात तो नहीं है.
दुनियाभर के लोग अमेरिका में बसने के लिए महा-उत्सुक रहते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय माइग्रेशन रिव्यू के मुताबिक, हर तीन में से एक अमेरिकी नागरिक अवसर मिलते ही किसी और देश में बसना चाहता है. ऐसी तमन्ना है, लेकिन मानना नहीं चाहिए.
हमारे यहां ऐसा अध्ययन या शोध या सर्वे करने की कोई जरूरत नहीं है. सिर्फ राजनेताओं और उनकी पूंछों एवं सींगों को छोड़कर हमारा तो पूरा देश ही विदेश में बसने को तैयार है. बस इनकी और उनकी विदेश यात्राएं जारी रहनी चाहिए.
हम अमेरिका जाने के लिए जरूरी सामान बांधे तैयार बैठे हैं, बस एक बार कोई बुला ले या फेंकवा दे, अवसर मिलने पर पैदल भी जा सकते हैं. एक बार घुस जाएं, तो फिर बाद में किसी न किसी तरह के जुगाड़ का आविष्कार हो ही जायेगा. दुनिया घूम लेना चाहते हैं हम सरकारी या कंपनी के खर्चे पर.
उधर सतासी प्रतिशत अमेरिकियों की भी दुनिया घूमने की इच्छा है. विदेशियों द्वारा अपना सब कुछ बेच कर दुनियाभर में घुमक्कड़ी करने के बारे में तो खबरें आती ही रहती हैं, लेकिन हम तो अपने मकान और सामान को बेहद प्यार करते हैं. यहां घर में पड़े, सेहत को नुकसान पहुंचाउ सालों पुराने प्लास्टिक बर्तनों को भी छोड़ा नहीं जा सकता.
आधे अमेरिकी सेवानिवृत्ति के बाद अमेरिका से बाहर बसना चाहते हैं, लेकिन हमारे यहां सेवानिवृत्ति का मतलब पूरी निवृत्ति ही मान ली जाती है. वहां के आधे निवासियों ने माना कि देश में बुरे हालात हैं, लेकिन हमारे यहां ऐसा सोचना ही गलत है, मान तो सकते ही नहीं और ऐसा कहना तो दूर की बात है.
क्या अमेरिका वाले किसी नये कोलंबस की खोज में हैं, जो उनके लिए नया अमेरिका खोज लाये? नया कोलंबस कुछ नया करे न करे, लेकिन इस शोध से यह ज्ञान जरूर प्राप्त होता है कि इसमें किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए. ऐसा किया जाता है, तो सच्चाई जैसी चीज, जो धीरे-धीरे गायब की जा रही है, हमारे देश से भी बहुत जल्दी गायब हो सकती है!

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