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गछपक्कू आम का स्वाद

मिथिलेश कु. राय युवा रचनाकार आम अब स्वाभाविक ढंग से पकने लगे हैं. जब भी कभी तनिक जोर से हवा बहती है, पके हुए आम भरभरा के गिरने लगते हैं. परसों काकी कह रही थीं कि अब सारे आम को तुड़वाकर घर में रख लेना चाहिए. वे बारी-बारी से पकते रहेंगे और लोग खाते रहेंगे. […]

मिथिलेश कु. राय
युवा रचनाकार
आम अब स्वाभाविक ढंग से पकने लगे हैं. जब भी कभी तनिक जोर से हवा बहती है, पके हुए आम भरभरा के गिरने लगते हैं. परसों काकी कह रही थीं कि अब सारे आम को तुड़वाकर घर में रख लेना चाहिए. वे बारी-बारी से पकते रहेंगे और लोग खाते रहेंगे.
उनका मत था कि आम तोड़ेंगे, तो थोड़े से आम बेटी के यहां भी भिजवा देंगे. हालांकि, उसके ससुर का खुद का एक बगीचा है, लेकिन यह आम बेटी को बड़ा ही पसंद है.
कक्का इससे साफ इनकार कर रहे थे. वे कह रहे थे कि छुटकी को कुछ दिन के लिए यहीं बुलवा लेते हैं. मलमास भी तो अब बीत गया है. आम को तोड़ेंगे नहीं, वह वृक्ष में ही पकेंगे.
पके आम वृक्ष अपने पास नहीं रखते. हवा की शह मिलती है और वह सारे फल को नीचे गिरा देते हैं. कि लो, खाओ और तृप्त होओ. इसी क्रम में कक्का को बेटी की वह आदत भी याद आ गयी. कहने लगे कि शायद तू यह भूल रही है कि छोटी गछपक्कू आम को चुनती थी और हमेशा उसका ही भोग लगाती थी.
कक्का का कहना था कि असल में सबको गछपक्कू आम ही पसंद होते हैं. लेकिन अब दुनिया इस तरह बदल गयी है कि लोगों को यह सुख नहीं मिल पा रहा है. मजबूरी में लोग विभिन्न तरीकों से पकाये गये आम को खाने को विवश हैं.
कक्का यह मानते हैं प्राकृतिक चीजों का कोई उपमा-उदाहरण नहीं हुआ करता. उन्होंने काकी को समझाया कि जब वृक्ष में आम पकता है, समय से पकता है. कक्का के अनुसार, वृक्ष में पके आम और रासायनिक तरीके से पकाये आम के स्वाद के अंतर को महसूस किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ मीठापन ही पके फलों की पहचान नहीं हुआ करती.
स्वतः और जबरदस्ती पकाये गये फलों में एक दिव्य स्वाद का अंतर हो जाता है. कक्का ने कहा कि जब हम वृक्ष में आम को पकने के लिए छोड़ देते हैं, तब चिड़िया भी उसका रसास्वादन करती हैं. कुछ आम सड़क पर गिर जाते हैं, जिसे बटोही उठा लेते हैं. इस तरह से एक पुण्य भी हो जाता है.
कक्का कह रहे थे कि ज्यादातर वृक्ष एक साल छोड़कर फल देने लगे हैं. उन्होंने कहा कि इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन एक कारण यह भी हो सकता है कि वृक्षों से समय से पहले ही फलों को तोड़ लिया जाता है, ताकि उसे बाजार में पहले उतारा जा सके और इस तरह ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके.
कक्का ने कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति अच्छी नहीं है. लेकिन लोग वृक्षों की स्वतंत्रता उससे इस तरह भी छीन रहे हैं और मौसम को अपने लिए प्रतिकूल बनाते जा रहे हैं.
कक्का कह रहे थे कि वृक्ष के लिए न सही, हम अपने स्वाद और संतुष्टि के लिए फलों को पकने के लिए वृक्ष में ही छोड़ सकते हैं, क्योंकि जिस स्वाद, संतुष्टि और पौष्टिकता के लिए हम फलों का सेवन करते हैं, वह तो पूर्ण समय लेकर पकने के उपरांत ही वे प्रकृति से ग्रहण कर पाते हैं.

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