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नमस्ते का बोझ!

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार मैंने दूर से देखा कि सामने से मोनू चला आ रहा था. पास आने पर अचानक वह दूसरी तरफ देखने लगा और निकल गया. आजकल अक्सर ही ऐसा होता है. जिनसे रोज का वास्ता है, मिलना-जुलना है, अड़ोसी-पड़ोसी हैं, वे भी अचानक बेपहचान हो जाते हैं. बहुत से लोग देखते ही […]

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

मैंने दूर से देखा कि सामने से मोनू चला आ रहा था. पास आने पर अचानक वह दूसरी तरफ देखने लगा और निकल गया. आजकल अक्सर ही ऐसा होता है. जिनसे रोज का वास्ता है, मिलना-जुलना है, अड़ोसी-पड़ोसी हैं, वे भी अचानक बेपहचान हो जाते हैं. बहुत से लोग देखते ही मोबाइल पर बात करने लगते हैं, या उसकी स्क्रीन पर आंख गड़ाकर निकल जाते हैं.

जो नमस्ते करते हैं, वे भी मात्र सिर हिलाकर. कई बार ऐसा भी महसूस होता है कि जैसे अपने जाननेवालों को नमस्ते करने पर नमस्ते करनेवाले को भारी बोझ पड़ रहा हो. आपस में प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार, दुआ-सलाम आदि एक-दूसरे के प्रति केयर और आत्मीयता के प्रतीक हैं. पर, इन दिनों बढ़े हुए अहंकार ने सोच-समझ को बदल दिया है. ऐसा लगता है, मानों अगर कोई किसी से पहले नमस्ते कर लेगा, तो वह सामने वाले से छोटा हो जायेगा. समाज में उसकी ताकत कम हो जायेगी. सिर्फ युवा पीढ़ी ही नहीं, बड़े भी ऐसा करते हैं. महसूस होता है कि यदि किसी ने पहले नमस्ते कर ली, तो जिससे नमस्ते की है, कहीं वह उससे चिपक न जाये, पकड़ न ले. और बेकार में समय खराब हो.

न केवल दुआ-सलाम, बल्कि पैर छूने में भी यही भावना दिखाई देती है. पहले पैर बाकायदा झुककर, पैरों को हाथ लगाकर छुये जाते थे. आजकल अगर किसी को पैर छूने भी पड़ें, फिर वे चाहे उम्र दराज हों या युवा, वे बिना झुके आपके घुटनों को हाथ लगा देते हैं.

पैर छूने का अर्थ जहां तक मुझे मालूम है, वह यह था कि आप किसी के सामने झुकते हैं और बदले में उसका आशीर्वाद और शुभकामनाएं पाते हैं. इसका यह अर्थ भी था कि आदमी चाहे पद-पैसे से जितना भी प्रतिष्ठावान हो, बड़ा हो, उसे किसी न किसी को अपने से बड़ा और आदरणीय मानना पड़ता है और उसके सामने झुकना पड़ता है. लेकिन आजकल इस प्रकार से पैर छूने का तरीका शायद हिंदी फिल्मों और रात-दिन चलते धारावाहिकों ने सिखाया है.

आजकल हर एक का स्टाइल स्टेटमेंट, एटीट्यूड इस बात से तय होता है कि देखो वह कितना अकड़कर चलता है, किसी के सामने नहीं झुकता. घमंड को बढ़ाकर यह बताया जाता है कि मनुष्य कितना स्वाभिमानी और आत्मसम्मान वाला है. जबकि इसी समाज में तो यह कहावत चलती है कि घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है कि घमंडी का सिर हमेशा नीचा होता है.

यह भी कहा जाता है कि जो पेड़ तनकर खड़ा होता है, उसी पर कुल्हाड़ी पहले चलती है, उसे ही पहले काटा जाता है. लेकिन, इसे पुरानी पीढ़ी की बात मानकर एक तरफ खिसका दिया जाता है. यह भी गाहे-बगाहे कह ही दिया जाता है कि पुरानी पीढ़ी का जमाना पुराने लोगों के साथ ही चला गया. पर कुछ बातें चाहे नयी हों या पुरानी, वे कभी नहीं बदलतीं, जैसे कि हमारी विनम्रता, दूसरों के प्रति हमारा अच्छा व्यवहार. जीवन में सफलता का यह प्रथम गुण माना जाता है, जिसे आज नहीं तो कल सीखना ही पड़ता है.

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