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Thursday, March 28, 2024

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घोटाले होते ही नहीं!

अंशुमाली रस्तोगी टिप्पणीकार इस बात का यकीन तो मुझे बचपन से था कि घोटाले नहीं होते! 2जी पर आये फैसले ने मेरे यकीन को और अधिक पुख्ता कर दिया कि वाकई, घोटाले जैसा कुछ होता ही नहीं. यह तो हमारा मतिभ्रम है, जो एंवई घोटाले के अस्तित्व पर यकीन कर लेते हैं! अब तक देश […]

अंशुमाली रस्तोगी

टिप्पणीकार

इस बात का यकीन तो मुझे बचपन से था कि घोटाले नहीं होते! 2जी पर आये फैसले ने मेरे यकीन को और अधिक पुख्ता कर दिया कि वाकई, घोटाले जैसा कुछ होता ही नहीं. यह तो हमारा मतिभ्रम है, जो एंवई घोटाले के अस्तित्व पर यकीन कर लेते हैं!

अब तक देश में जितने भी कथित घोटाले प्रकाश में आये हैं, सब के सब हमारे खाली दिमागों की उपज थे.विपक्ष ने अपना चुनावी माइलेज लेने के लिए उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर हाइलाइट किया था. न कोई नेता, न मंत्री, न अफसर किसी भी घोटाले में शामिल नहीं था. वो तो उनकी कुछ दुष्ट-आत्माएं उनके शरीर में प्रवेश कर गयी थीं, जिन्होंने- उन्हें बदनाम करने की खातिर- ये कांड कर डाले थे. वरना, देश का नेता तो छोड़िए, आम आदमी तक घोटाले का ‘घ’ नहीं जानता!

देश की अर्थव्यवस्था को रत्तीभर चूना किसी घोटाले से नहीं लगा है! न ही देश के नागरिक का टैक्स का पैसा जाया हुआ है! वो तो कुछ मायावी टाइप की भ्रष्ट ताकतें थीं, जिन्होंने अदालत के साथ-साथ मीडिया का भी टाइम खोटा किया. तमाम चुनाव भ्रष्टाचार और कथित घोटालों के नाम पर लड़े-जीते गये. मुझ जैसे कितने ही लेखकों ने घोटालों पर न जाने क्या-क्या लिख डाला. आज जब सोचता हूं, तो मुझे भयंकर गुस्सा आता है कि हाय! ये सब मैंने क्यों लिखा?

क्या मैं यकीन कर लूं कि हमें ‘2जी’ बनाम ‘अच्छे दिन’ का झांसा दिया गया था? ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का भावनात्मक जुमला गढ़ा गया था? हर खाते में लाख रुपये भी क्या चुनावी स्टंट ही था? अगर 2जी घोटाला हुआ ही नहीं था, तो इसका मतलब है कि यूपीए सरकार ‘सच्ची’ और ‘पवित्र’ थी! थी न…!

बड़ा ही विकट कंफ्यूजन है पियारे! जो दिख रहा है, वह है नहीं. जो है, वह हम देख नहीं पा रहे हैं. दिमाग लोड ले-ले के ट्रक बना पड़ा है. राजनीति के खेल निराले हैं. यहां कौन-सा ऊंट कब किस करवट बैठ जाये, कोई नहीं जानता. फिलहाल तो शाश्वत सत्य यही है कि 2जी घोटाला हुआ ही नहीं था!

मैंने तय कर लिया है कि अब कभी किसी नेता-मंत्री को घोटाले में नाम आने पर बुरा-भला कहूंगा ही नहीं! यह मानकर चलूंगा कि उसके खिलाफ ‘पॉलिटिकल साजिश’ रची जा रही है! भ्रष्टाचार देश से कब का विदा ले चुका है. यह सतयुग है. यहां हर कोई सिर्फ सच बोलता है.

यह बात मैं पूरे होश में लिख रहा हूं कि मैं ‘वाटरगेट’ से लेकर ‘व्यापम’ तक हर घोटाले को भूल चुका हूं. अपने दिमाग की डिक्शनरी में से ‘घोटाले’ और ‘भ्रष्टाचार’ जैसे शब्दों को निकाल बाहर फेंक चुका हूं. न होगा सांप, न लाठी टूटेगी.

सब भले हैं! न कोई भ्रष्टाचारी है, न घोटालेबाज! घोटाले की परिभाषा बदलकर इसे ‘घोटाले जैसा कुछ होता ही नहीं’ कर देना चाहिए. ऐसा करने और मान लेने से देश की अदालतों और जजों पर से एक बड़ा बोझ उतर जायेगा. नेता, मंत्री, राजनीति के प्रति लोगों का सम्मान भी बढ़ेगा.

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