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हिमाचल विश्लेषण : हिमाचल में विकास के पैमाने पर खरा उतरने की भाजपा की जिम्मेदारी

हिमाचल के चुनाव नतीजों के जरिये कांग्रेस की वीरभद्र सरकार को हिमाचल की जनता ने बदल भाजपा को मौका दिया है. मतदाताओं ने अपना वोट डालकर तय किया कि वे हिमाचलवासियों से किये विकास के वादों को पूरा करने के लिए भाजपा को चुन रहे हैं. कुल 75.28 फीसदी का यह मतदान अब तक प्रदेश […]

हिमाचल के चुनाव नतीजों के जरिये कांग्रेस की वीरभद्र सरकार को हिमाचल की जनता ने बदल भाजपा को मौका दिया है. मतदाताओं ने अपना वोट डालकर तय किया कि वे हिमाचलवासियों से किये विकास के वादों को पूरा करने के लिए भाजपा को चुन रहे हैं. कुल 75.28 फीसदी का यह मतदान अब तक प्रदेश में हुए चुनावों में सबसे अधिक था.
चुनावों से पहले एक समय प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने लाने को लेकर पशोपेश में दिख रही भाजपा के लिए धूमल पर लगाया गया उसका दाव सफल नहीं रहा.
भाजपा जनता का मूड पहचानने में कुछ विफल रही. धूमल सुजानपुर से अपनी ही सीट जीत पाने में सफल नहीं रहे. वहीं भाजपा के कई बड़े नेता, जैसे प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती, रविंदर सिंह रवि, गुलाब सिंह भी भाजपा की जीत के बावजूद अपनी सीटें नहीं जीत पाये. भाजपा को प्रदेश में पूर्ण बहुमत मिला है, लेकिन इस जीत का विश्लेषण बहुत से सवाल समेटे हुए है.
खास तौर पर भाजपा के लिए, क्योंकि भाजपा को 50 के अंदरूनी तय लक्ष्य के अनुरूप सीटों की उम्मीद थी. ऐसे में सीटों के इस लक्ष्य को न छूना राज्य की जनता में इस सोच का भी परिणाम है कि पिछले मौकों के बावजूद भाजपा राज्य में विकास का गुजरात की तरह का कोई बड़ा मॉडल कायम नहीं कर पायी. वहीं सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर भी पिछले 20 सालों में दो बार सत्ता में रहने के बावजूद ऐसी कोई छाप नहीं छोड़ पायी, ताकि वह प्रदेश की जनता के लिए एक मात्र पसंद बन सके.
हिमाचल की जनता ने 1985 से अब तक एक बार भाजपा, तो दूसरी बार कांग्रेस को सत्ता दी है. ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि प्रदेश में भाजपा की जीत केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की नीतियों पर प्रदेश की जनता का विश्वास और उसकी स्वीकार्यता है न कि राज्य में भाजपा के पिछले कामों या फिर इस बार किये वादों पर जनता का विश्वास.
कांग्रेस के लिए भी यह सोच का विषय है कि राज्य का विकास न कर पाने की जनता की उसे दी गयी इस सजा के साथ ही, जनता का यह फैसला, पार्टी के तमाम विरोधों के बावजूद वीरभद्र के चेहरे पर ही हाइकमान ने विश्वास जताये जाने का खमियाजा भी है. चुनाव से पहले वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता पर भी सवाल उठ रहे थे. किसी युवा नेतृत्व को आगे न करना कांग्रेस की भूल थी और कांग्रेस के नेताओं का हारना स्वाभाविक. अगर कांग्रेस नये चेहरे के साथ मैदान में उतरती, तो नतीजे कुछ और हो सकते थे.
अगर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को मिले मतों के प्रतिशत पर नजर डालें, तो भी इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल नहीं कि मतों के प्रतिशत में कांग्रेस को कोई खास नुकसान नहीं हुआ है.
वहीं भाजपा को मत प्रतिशत में भारी फायदा दिखायी दे रहा है. साफ है प्रदेश की जनता ने केंद्र में मोदी सरकार के कामों के साथ-साथ उम्मीदवारों को देखकर वोट किया है, न कि प्रदेश में पार्टी के 2007 में बनी भाजपा सरकार के प्रदर्शन को याद करके.
कांग्रेस नेताओं की जनता से दूरी और विकास के नाम पर प्रदेश को आर्थिक अंधेरे में धकेलने, सेब बागवानों की बढ़ती मुश्किलों का कोई हल न करने, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, सड़कों की खस्ता हालत और बढ़ते सड़क हादसों और बेरोजगारी की समस्या के चलते जनता ने उम्मीदवारों को इन कसौटियों पर कसा है कि उन्होंने सत्ता में रहते हुए जनता के लिए क्या काम किया और क्या जनता को उनका काम पसंद आया है? इसलिए कांग्रेस के ज्यादातर मंत्री हार गये हैं.
कांग्रेस की हार के साथ ही भाजपा के प्रेम कुमार धूमल समेत उनके कई करीबी नेताओं की हार से एक बात साफ हो गयी है कि प्रदेश राजनीति में एक अध्याय का अंत होने जा रहा है.
यह अध्याय है रामपुर बुशहर के राज घराने से आनेवाले, छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, वीरभद्र सिंह का, जो पहले ही इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव बता चुके हैं. तो दूसरी ओर प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली राजनीति का, जिन पर भाजपा नेतृत्व चुनाव से पहले ही दांव लगाने में कतरा रहा था. प्रदेश में इस अध्याय के खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस में नये नेतृत्व के सत्ता में बड़ी भागीदारी की शुरुआत होनी लाजमी है.
ये प्रदेश की जनता का भी मानस है, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस की तरफ से चुनाव मैदान में उतारे गये कई युवा नेताओं को जनता ने जिताकर दोनों राजनीतिक दलों को नेतृत्व बदलाव का संकेत दिया है. कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह, जो शिमला (ग्रामीण) चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक दावेदारी को पुख्ता करते दिखते हैं.
वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुख्खु ने भी नदौंन से जीत दर्ज कर ये सिद्ध किया है कि वो प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व के प्रबल दावेदार है. वहीं कांग्रेस के अनिरुद्ध सिंह, पवन काजल, आशीष बुटेल, सतपाल सिंह रायजादा जैसे कई युवा नेता इस चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस में अहम भूमिका के लिए तैयार दिखते हैं. वहीं भाजपा में केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा, प्रदेश में मंत्री रहे जय राम ठाकुर, लोकसभा सदस्य राम स्वरूप शर्मा, लोकसभा सदस्य वीरेंद्र कश्यप और प्रेम कुमार धूमल के बेटे, हमीरपुर से लोकसभा सदस्य अनुराग ठाकुर आनेवाले दिनों में प्रदेश में अहम भूमिका में दिखायी देंगे.
भाजपा के लिए एक अच्छा मौका है कि वह अपनी सरकार के जरिये प्रदेश में भाजपा को पहली पसंद बनाये, जैसा कि वह गुजरात में करने में कामयाब रही है. इसके लिए प्रदेश की अहम समस्याओं को लेकर उसे कुछ ठोस काम करना जरूरी होगा.

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