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सब्जियों के स्वाद की हत्या

मिथिलेश कु. राय युवा रचनाकार गोभी की सब्जी देखकर कक्का पिनक जाते हैं. कहते हैं कि साग-भात परोस दो, लेकिन गोभी की सब्जी मत दो. पूछने पर बताते हैं कि पता नहीं किस तरह से उपजायी गयी गोभी अभी बाजार में बिक रही है. स्वाद नाम की कोई चीज ही महसूस नहीं होती. पता नहीं […]

मिथिलेश कु. राय

युवा रचनाकार

गोभी की सब्जी देखकर कक्का पिनक जाते हैं. कहते हैं कि साग-भात परोस दो, लेकिन गोभी की सब्जी मत दो. पूछने पर बताते हैं कि पता नहीं किस तरह से उपजायी गयी गोभी अभी बाजार में बिक रही है. स्वाद नाम की कोई चीज ही महसूस नहीं होती. पता नहीं कैसा तो लगता है खाने में. नयी सब्जी है, सो लोग टूट पड़ते हैं और थोड़ी महंगी भी है, तो बढ़िया से बनाने के चक्कर में मसाला झोंक देते हैं. लेकिन कहो, मसाला झोंकने से क्या होता है. खाओ तो सिर्फ मसाले का स्वाद आता है, जबकि मिलना चाहिए गोभी का स्वाद.

बकौल कक्का हर एक सब्जी का अपना एक विशेष स्वाद होता है. यही कारण है कि किसी को यह तो किसी को वह सब्जी पसंद होती है. लेकिन, स्वाद महसूसने की तीक्ष्ण क्षमता रखनेवाले ही जानते हैं कि अब सारी सब्जियां अपना वह गुण त्याग रही हैं. अब सब्जियां ढेर सारे मसाले की मोहताज होती जा रही हैं.

कक्का यह भी कहते हैं कि सब्जियों की दुनिया पर गौर करोगे, तो पता चलेगा कि असल में यह मौसमी चीज है. लेकिन, बाजार ऐसा सिर चढ़कर नाच कर रहा है कि उसे समय से पहले ही हमारी थालियों में उतार दिया जाता है. बेचारी अपना स्वाद कहां से लायेगी. स्वाद तो उसे मौसम से मिलता है. जैसे गोभी को ही ले लो. यह असल में सर्दी की सब्जी है. लेकिन, इसे बाजार में जाड़ा आने के शोर से पहले ही उतार दिया जाता है. मतलब कि भरी गर्मी में उसे तैयार करने की साजिश शुरू हो जाती है.

कक्का कहते हैं कि इस मुनाफा कमाऊ दौर में बहुतों का बहुत कुछ छूट रहा है. इसी क्रम में सब्जी का स्वाद भी खोता जा रहा है.

कक्का कि मानें, तो अब कम मसाले का प्रयोग करने से काम नहीं चल पा रहा है. थोड़ी सी हल्दी डाल देने से न रंग पीला पड़ता है और न ही थोड़ी सी मिर्ची डालने से तीखेपन का स्वाद ही आ पाता है. सब्जी बनाने वाले उन्हें चख-चख के देखते रहते हैं और फिर-फिर मसाले डालते रहते हैं.

इस प्रक्रिया के कारण के तह में जाते हुए कक्का बहुत दुखी हो जाते हैं. वे कहते हैं कि थाली में पड़ी हुई रोटी से लेकर सब्जी तक अब कुछ भी ऐसा नहीं रहा, जिसे हम शुद्ध कह सकें और चाव से खा सकें. चूंकि खाना हमारी मजबूरियों में शामिल है, सो हमें जो भी मिल रहा है, खाये जा रहे हैं. लेकिन खाने का पोषक तत्व और वह जो एक विशिष्ट स्वाद होता है, उसे हम कीटनाशक और उर्वरक की भेंट चढ़ा चुके हैं.

कक्का कहते हैं कि आजकल सब्जियां को जल्दी-से-जल्दी उपजा करके बाजार पहुंचाने के लिए इतने तरह के कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जा रहा है कि सब्जियां तो भारी मात्रा में समय से पहले बाजार में पहुंचकर अपनी धाक जमा लेती हैं, लेकिन इस क्रम में बेचारी के स्वाद की हत्या हो जाती है!

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