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राष्ट्रीय टाइप का चरित्र

आलोक पुराणिक व्यंग्यकार खिचड़ी को ब्रांड इंडिया फूड के तौर पर पेश करने की बात सामने आयी. इस मुल्क में वैसे कुछ भी राष्ट्रीय होना मुश्किल है. राष्ट्रीय तो या तो विराट कोहली हैं या वह नागिन, जो लगभग सभी टीवी चैनलों के लिए टीआरपी बटोरती है. कुछ समय के लिए बीच में राष्ट्रीय होने […]

आलोक पुराणिक
व्यंग्यकार
खिचड़ी को ब्रांड इंडिया फूड के तौर पर पेश करने की बात सामने आयी. इस मुल्क में वैसे कुछ भी राष्ट्रीय होना मुश्किल है. राष्ट्रीय तो या तो विराट कोहली हैं या वह नागिन, जो लगभग सभी टीवी चैनलों के लिए टीआरपी बटोरती है. कुछ समय के लिए बीच में राष्ट्रीय होने का दायित्व हनीप्रीत ने संभाला था.
फिर कुछ समय के लिए राहुलजी का डौगी-पीडी या पिद्दी भी राष्ट्रीय हो लिया था. पर इनकी राष्ट्रीयता ज्यादा लंबी नहीं चली.टीवी पर कोई राष्ट्रीय तब तक ही रह पाता है, जब तक उससे टीआरपी आती रहती है. टीआरपी देना बंद कर दे, तो कोई लोकल चैनलवाला भी उस कथित राष्ट्रीय को ना पूछता. भारतीय राष्ट्रीयता का गहरा आकर्षण है, सन्नी लियोनीजी कनाडा छोड़कर भारत में सैटल हो गयीं, सन्नी लियोनीजी अत्यधिक पढ़े-लिखे केरल से लेकर थोड़े कम पढ़े-लिखे यूपी-दोनों जगह परम पाॅपुलर हैं. सन्नीजी के मामले में राष्ट्र एकदम एक सा दिखायी पड़ता है.
वैसे राष्ट्रीय होना बहुत मुश्किल काम है. अभी कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम में जाना हुआ, गुजराती नये साल की शुरुआत का कार्यक्रम था. गुजराती नया साल दीवाली के करीब शुरू होता है. मराठी नया साल अप्रैल के आसपास गुड़ी पड़वा नामक पर्व पर शुरू होता है.
नौजवान महाराष्ट्र के हों या गुजरात के, एक जनवरी को नाच-गाकर नया साल मनाते हैं. नये साल की शुरुआत को लेकर ही दो राज्यों में सहमति नहीं है, ऐसे में पूरे राष्ट्र में किसी मसले को लेकर सहमति हो जाये, तो सवाल उठता है ऐसा हो कैसे गया.
वैसे राष्ट्रीय तो कोल्ड ड्रिंक्स ही हैं, जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आसानी से मिल जाते हैं. बाकी कुछ भी राष्ट्रीय होना आसान नहीं है. राष्ट्रीय एकता कपूर हैं, जिनकी सास बहू आधारित खबरों को हिंदी का हर राष्ट्रीय टीवी चैनल दिखाता है. बाकी कुछ और राष्ट्रीय होना मुश्किल है.
पर, एक आइटम बिल्कुल राष्ट्रीय है- वह है रिश्वत. मध्य प्रदेश में तहसीलदार रिश्वत लेते गिरफ्तार, जम्मू में पुलिस वाले ने खायी बीस हजार की रिश्वत, तमिलनाडु में मंत्री पर छह लाख का आरोप, ऐसे आरोप पुष्ट करते हैं कि खाने के मामले में पूरा राष्ट्र एक ही है.
नोट लेन-देन के मामले में भाषाई बंधन नहीं है, भारत की हर महत्वपूर्ण भाषा में नोटों पर नोट की वैल्यू क्यों लिखी जाती है, इसलिए कि उसे लेते वक्त किसी भी भाषा-भाषी को कोई दिक्कत ना हो. अपनी भाषा में चेक करके लो. हालांकि, ईमानदारों को ही चेक करना पड़ता है, क्योंकि बेईमानी रिश्वत के धंधों में नहीं होती, वहां काम पूरी नैतिकता से होता है.
खैर, अभी खिचड़ी कुछ राष्ट्रीय टाइप चरित्र हासिल कर रही है, पर कब तक राष्ट्रीय रह पायेगी, यह सवाल महत्वपूर्ण है. असली राष्ट्रीयता के लिए रिश्वत की ओर ही देखना पड़ेगा, जो कश्मीर से कन्याकुमारी समान भाव से खायी जाती है!

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