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कैसे तुमको पिलाऊं अमृत, जब मैं ही पॉलीथिन में ढूंढ़ रही आहार

निरंजन कुमार बांका : कृषि प्रधान अपने देश में पशुपालन का महत्व सदियों से चला आ रहा है. कृषि और पशुपालन एक दूसरे के पूरक भी हैं. लेकिन वर्तमान में कृषि और पशुपालन दोनों नजरअंदाज हो रहे है. तभी तो गायें आज चारा की जगह अपना भोजन पॉलीथिन में ढूंढने लगी हैं. जबकि हाल के […]

निरंजन कुमार
बांका : कृषि प्रधान अपने देश में पशुपालन का महत्व सदियों से चला आ रहा है. कृषि और पशुपालन एक दूसरे के पूरक भी हैं. लेकिन वर्तमान में कृषि और पशुपालन दोनों नजरअंदाज हो रहे है.
तभी तो गायें आज चारा की जगह अपना भोजन पॉलीथिन में ढूंढने लगी हैं. जबकि हाल के दिनों में देश की राजनीति की धूरी गाय बनी हुई है. राजनीति जितनी भी हो जाये असलियत यह है कि पशुपालन की ओर न तो सरकार का ध्यान है और न ही पशुपालकों का. गाय का दूध अमृत है. जिसकी मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है.
लेकिन पशुपालक गाय को चारा देने के बजाय दूध लेने के बाद सड़क पर छोड़ दे रहे हैं. जिसके कारण शहर में अधिकतर गायें यत्र तत्र घूमते देखी जाती है. जहां अक्सर ये गायें सड़क किनारे की जूठी पत्तल व प्लास्टिक को अपना आहार समझ बेधड़क खा रही है. गाय के द्वारा प्लास्टिक चबाने का माजरा अन्य जिलों की तरह बांका में भी सरेआम देखी जा रही है. जिससे गाय की सेहत के साथ साथ उनका दूध भी प्रभावित हो रहा है. बावजूद पशुपालक और विभाग ऐसे मामले में उदासीन बने हुए हैं.
पॉलीथिन खाने से गायें हो रहीं बीमार
घरों में बचे अवशेष खानों को लोग पॉलीथिन में डाल कूड़ा कचरा में फेंक रहे हैं. जहां खुली गायें उसे खाने के लिए पॉलीथिन भी खा जा रही है, और इससे गायें बीमार हो रही है. जिसकी वजह से गायें की मौतें भी हो रही है. वहीं पॉलीथिन खाने वाली गायों के दूध भी दूषित हो रहे हैं.
इस संबंध में केवीके के पशु वैज्ञानिक डाॅ धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि पॉलीथिन खाने वाली गायों को कई तरह के घातक बीमारी हो जाती है. पॉलीथिन खा लेने वालों गायों का खाना कम हो जाता है, और धीरे धीरे यह पॉलीथिन गाय के आंत में चला जाता है. साथ ही उस गाय का दूध भी दूषित हो जाता है. इसके लिए लोगों को चाहिए कि अवशेष खाना को पॉलीथिन से निकालकर ही फेंके ताकि गायें खानों के साथ पॉलीथिन नहीं खा सके.
पर्यावरण के लिए भी है घातक
साईंस फोर सोसाइटी के राज्य उपाध्यक्ष डाॅ एसकेपी सिन्हा ने बताया कि आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने सबसे अधिक पर्यावरण को ही चोट पहुंचायी है. लोगों की सुविधा के लिए ईजाद किया गया पॉलिथिन आज मानव जाति के अलावे पशुओं के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है.
नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा क्षमता को खत्म कर रहा है और भूजल स्तर को घटा रहा है. इसका प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों के साथ ही कैंसर का खतरा भी बढ़ा रहा है. यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोक सकता है. पॉलिथिन को जलाने से निकले धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है. जो ग्लोबल वार्मिग का बड़ा कारण है.
प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है. इससे गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास रुक जाता है. और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है. पॉलिथिन का कचरा जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड एवं डाइऑक्सींस जैसी विषैली गैस उत्सर्जित होती हैं. इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है.

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