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औरंगाबाद के सोडहीह में हिंदुओं ने भी मनाया मुहर्रम

औरंगाबाद : औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के सोनडीह गांव में हिंदू परिवारों ने मुहर्रम मनाया. आश्चर्य की बात यह है कि इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. यहां की जनसंख्या एक हजार के करीब है. इसमें सुनील साव का परिवार आगे रहता है. मुहर्रम का पर्व यहां कई दशकों से मनाया […]

औरंगाबाद : औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के सोनडीह गांव में हिंदू परिवारों ने मुहर्रम मनाया. आश्चर्य की बात यह है कि इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. यहां की जनसंख्या एक हजार के करीब है. इसमें सुनील साव का परिवार आगे रहता है. मुहर्रम का पर्व यहां कई दशकों से मनाया जा रहा है़ इसकी शुरुआत तुका साव नामक व्यक्ति ने की थी.

तुका साव के मरने के बाद भीखर साव और फिर अब सुनील साव ने इसकी जिम्मेदारी उठायी. सुनील के दादा परदादा ने मुहर्रम पर्व को मनाने की एक परंपरा चलायी थी, जो अब भी कायम है. गांव के हरेंद्र सिंह, यशपाल यादव, उमेश यादव, मधुसूदन साव, पूरण साव ने बताया कि मुहर्रम मनाते कई पीढ़ियां गुजर गयीं, पर परंपरा वही है. मुहर्रम के समय यदि हिंदुओं का कोई त्योहार आ जाता है, तो उससे पहले मुहर्रम मनाते हैं.

मुहर्रम में महिलाएं नहीं लगाती हैं सिंदूर : सुनील सोनी ने बताया कि इस परंपरा को पूर्वजों ने शुरू किया था. उस वक्त पूर्वजों को बाल बच्चे नहीं होते थे, तभी किसी ने बताया कि मुहर्रम के समय ताजिया लगेगा, तो संतान सुख की प्राप्ति होगी. तभी से मुहर्रम मनाया जाने लगा.

मुहर्रम के दौरान यहां की महिलाएं मांग में सिंदूर भी नहीं लगाती हैं. मुहर्रम समाप्त होने के बाद ही शृंगार करती हैं. मुस्लिम विधान के अनुसार मुहर्रम की पहली से पांचवी के बीच मिट्टी का मुठरा बनाकर उसे फूलमाला में लपेटकर रखा जाता है, जो ताजिया के साथ उठता है.

सीवान जिले के सिसवन के भीखपुर में मुहर्रम के मौके पर अंजुमन-ए-अब्बासिया व अंजुमन-ए-रिजविया के तत्वावधान में 84-84 फुट ऊंचे दो ताजिया बनाया गया, जो जुलूस में शामिल हुआ.

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