- हाथ-पैर से दिव्यांग किशन स्कूल जाने में हो गया है असमर्थ
- दिहाड़ी मजदूरी कर किसी तरह रोटी की जुगाड़ करते हैं पिता
- स्वंयसेवी संगठनों व सरकार से है मदद की उम्मीद
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शारीरिक लाचारी से परेशान किशन ने छोड़ा विद्यालय
हाथ-पैर से दिव्यांग किशन स्कूल जाने में हो गया है असमर्थ दिहाड़ी मजदूरी कर किसी तरह रोटी की जुगाड़ करते हैं पिता स्वंयसेवी संगठनों व सरकार से है मदद की उम्मीद नागराकाटा : पढ़ लिखकर आगे बढ़ने की चाहत है. परंतु शरीर का कुछ अंग बिल्कुल काम नहीं करता. किसी तरह विद्यालय पहुंच जाता है. […]
नागराकाटा : पढ़ लिखकर आगे बढ़ने की चाहत है. परंतु शरीर का कुछ अंग बिल्कुल काम नहीं करता. किसी तरह विद्यालय पहुंच जाता है. हाथ और पैर बिल्कुल काम नहीं करता. लेकिन अब जिस तरह शरीर का वजन बढ़ रहा है.उसके मुताबिक चलना मुश्किल हो रहा है. कुछ दिनों से वह विद्यालय चाह कर भी नहीं जा पा रहा है. हम बात कर रहे हैं नागराकांटा ब्लॉक स्थिति टीआरए चाय बागान के एक गरीब आदिवासी श्रमिक परिवार के विकलांग किशन मुंडा (14) का. किशन मुंडा का घर टीआरए चादर लाइन में है. वह नागराकाटा हिंदी उच्च विद्यालय में कक्षा छह में अध्ययन करता है.
किशन के पिता टार्जन मुंडा दैनिक मजदूरी कर परिवार का लालन-पालन करते हैं. गरीबी का आलम परिवार में इस तरह है कि दो वक्त का भोजन जुटाना परिवार के लिए भारी पड़ जाता है. इस अवस्था में किशन को स्कूल जाने के लिए ट्राई साइकिल व अन्य कुछ सामग्री खरीदने के लिए परिवार सक्षम नहीं है.
परिवार में किशन के पिता टार्जन और उसकी बूढ़ी दादी है. परिवार को कभी-कभी जंगल से भोजन जुटाने की नौबत आ जाती है. बूढ़ी दादी जंगल से साग पात, कंदमूल, मछली लेकर आती है. जिससे दिन गुजरा करना पड़ता है. टार्जन दिन भर काम की खोज में इधर-उधर भटकने के बाद कभी काम मिलता है कभी बगैर काम के खाली हाथ लौटना पड़ता है.
टार्जन ने बताया कि सुना है सरकार की ओर से गरीबों को राशन में चावल, आटा, तेल मुहैया कराया जाता है. लेकिन हमलोगों को कुछ नहीं मिलता है. आज तक हमलोगों का न ही राशन कार्ड है और न ही आधार कार्ड. कई बार सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाने के बाद भी आज तक कुछ फायदा नहीं हुआ.
हमें एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में घुमाया जाता है. उन्होंने बताया कि बचपन से ही किशन का हाथ-पैर काम नहीं करता. जिसके कारण वह अन्य बच्चों की तरह चल फिर नहीं सकता. हाथ-पैर काम नहीं करने के कारण उसे स्कूल जाने के लिए भी काफी तकलीफ उठाना पड़ता है.
मुझे रोजाना मजदूरी करना पड़ता है. यदि एक दिन काम नहीं करूंगा घर में खाना के लिए लाले पड़ जाते हैं. इस अवस्था में मैं उसको चाहकर भी विद्यालय नहीं पहुंचा सकता. इसलिए वह कुछ दिनों से लाचार विद्यालय जाना बंद कर दिया. मैं भी चाहता हूं कि वह पढ़कर आगे बढ़े. लेकिन विवश हूं.
यदि कहीं से कुछ उसकी पढ़ाई लिखाई के लिए सरकारी सहयोग मिले तो अच्छा होता. नागराकाटा हिंदी उच्च विद्यालय के भारप्राप्त शिक्षक संजय साहा ने बताया कि किशन विद्यालय के छठी कक्षा में अध्ययन करता है. मैं भी काफी दिनों से उसको विद्यालय में नहीं देख रहा हूं. किशन का शारीरिक अंग दुर्बल होने के कारण चलने में काफी कष्ट होता है. सरकार से मिलने वाली सहूलियत के लिए सभी प्रक्रिया हमलोगों ने कर दिया है.
हमारी ओर से होने वाली सारी सहयोग हम उसे प्रधान करने की प्रयास करेंगे अध्ययन जारी रखने के लिए सहयोग करेंगे. यदि सरकार और स्वयंसेवी संगठनों से भी कुछ सहयोग मिलें तो आगे का अध्ययन जारी रख पाता. नागराकाटा प्रखंड अधिकारी स्मृता सुब्बा को उस बच्चे के बारे जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि परिवार और बच्चे को सरकार से मिलने वाली सारी सुविधा उपलब्ध कराया जाएगा.
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