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प्रतिकूल स्थितियों में बेटों को बनाया बैंक अधिकारी, इंजीनियर

आसनसोल : कवि दुष्यंत की पंक्तियां है- ‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों..’ और सचमुच तबियत से उछाले गये धदका (रेलपार) की गलियों के इस पत्थर ने सुविधाओं के विस्तृत आसमान को छेद कर अपना लक्ष्य पा ही लिया. यह पत्थर था दृढ़ आत्मविश्वास का, […]

आसनसोल : कवि दुष्यंत की पंक्तियां है- ‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों..’ और सचमुच तबियत से उछाले गये धदका (रेलपार) की गलियों के इस पत्थर ने सुविधाओं के विस्तृत आसमान को छेद कर अपना लक्ष्य पा ही लिया. यह पत्थर था दृढ़ आत्मविश्वास का, कड़े परिश्रम का और सतत लगन का. विश्वास न हो तो कभी मिल लें अखबार बिक्रेता कमला प्रसाद राय से.

श्री राय के पिता स्व. रामजी राय दक्षिण धादका डाक घर में पोस्टमास्टर थे. मूलत: अर्जुनपुर, बक्सर (बिहार) के मूल निवासी थे. दो बेटे थे- परमेश्वर प्रसाद राय तथा कमला प्रसाद राय. सब कुछ ठीक चल रहा था. बच्चों की पढ़ाई भी पटरी थी. छोटे बेटे कमला की माध्यमिक परीक्षा तीन मार्च, 1983 को शुरू हो रही थी. अचानक कार्यस्थल पर ही दिल का दौरा पड़ा तथा रामजी राय की मौत हो गई. परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा. कोहराम मचा था. लेकिन पितृहीन होने पर भी कमला ने हिम्मत नहीं हारी.
आंखों के सामने पिता की तस्वीर रखे उन्होंने माध्यमिक की परीक्षा दी. श्राद्ध कर्म के लिए सभी परिजन गांव गये लेकिन उन्होंने परीक्षा पूरी की और गांव गये. द्वितीय श्रेणी में बेहतर अंकों से परीक्षा पास की. लेकिन अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने में देर हुई. दोनों भाईयों ने ट्यूशन पढ़ा कर अपनी शिक्षा जारी रखी. कमला ने उच्च माध्यमिक के बाद बीसी कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास की. उस समय प्रतियोगी परीक्षाओं का कोई माहौल नहीं था. इस कारण नौकरी नहीं मिल सकी. बड़े भाई को अनुकंपा पर डाकघर में नौकरी मिली. वर्ष 1992 में वे अखबार हॉकरी के क्षेत्र में आ गये. अगले वर्ष ममता राय से उनकी शादी भी हो गई.
उनके दो बेटे हैं. अंशु राय तथा दीपक राय. उन्होंने संकल्प लिया कि एक बेटे को सैन्य अधिकारी तथा दूसरे को इंजीनियर बनायेंगे. विकट परिस्थितियों में उन्होंने हार नहीं मानी. दोनों बच्चों ने भी पिता के सपनों को साकार करने की जिद ठान ली. अंशु ने एनडीए की परीक्षा क्रेक की. इंटरव्यू भी निकाला लेकिन कलर फॉल्ट के कारण नौकरी नहीं मिली. काफी हताशा हुई. लेकिन बेटे ने हार नहीं मानी.
स्नातक कर एसबीआई में बैंक अधिकारी है. एक माह पहले उसकी शादी हुई है. दूसरा बेटा दीपक भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन कर कोलकाता में सेवारत हैं. उन्होंने अपनी पत्नी को स्वनिर्भर बनाने के लिए ब्यूटीफिकेशन का कोर्स कराया तथा दुकान खुलवा दी. वह भी
आत्मनिर्भर हैं.
श्री राय कहते हैं कि अखबार हॉकरी ने वह सबकुछ दिया, जिसकी कामना की. अपने बेटों का भविष्य सुधारा. अपने लिए पक्का मकान बनाया. इस पेशे में रहने के कारण जन संपर्क काफी बेहतर रहा और जीने के अंदाज में हमेशा ताजगी बनी रही. 55 वर्ष की उम्र पूरा कर चुके श्री राय इसी पेशे से मेहनतकश जीवन को अलविदा कहना चाहते हैं ताकि परिजनों के साथ आनंद से जिंदगी अपने मुकाम को पहुंचे.

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