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Friday, March 29, 2024

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World Radio Day 2020: रेडियो धूम 104.8 यानी बोले तो…टेंशन नहीं लेने का

रांची : World Radio Day 2020 ‘रेडियो’ शब्द सुनते ही कान में क्रिकेट की कमेंट्री और समूह में ध्यान मगन लोगों का नजारा जेहन में आता है. एंड्रॉयड जमाने में जहां लोग अब सिंगल और सेल्फ हैंडल्ड मोबाइल फोन के साथ मगन रहते हैं, वहीं रेडियो एकता और एकजुटता का प्रतीक आज भी माना जाता […]

रांची : World Radio Day 2020 ‘रेडियो’ शब्द सुनते ही कान में क्रिकेट की कमेंट्री और समूह में ध्यान मगन लोगों का नजारा जेहन में आता है. एंड्रॉयड जमाने में जहां लोग अब सिंगल और सेल्फ हैंडल्ड मोबाइल फोन के साथ मगन रहते हैं, वहीं रेडियो एकता और एकजुटता का प्रतीक आज भी माना जाता है. बस हो या कार म्यूजिक सिस्टम ऑन होते ही लोगों को रेडियो चैनल ही सुनायी देते हैं. यह श्रोता का ध्यान भटकाये बिना मनोरंजन का माध्यम बना हुआ है. 1906 के दशक में इसकी शुरुआत के साथ ही बीच इसका प्रचलन बढ़ गया. भारत में रेडियो 1923 के दशक में पहुंचा, जिसे लोग हाथों-हाथ स्वीकारने लगे. 1936 के दौर का ‘इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ ही आजादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो में बदल गया. वहीं समय के साथ कई निजी रेडियो स्टेशन भी तैयार हो गये. गुरुवार को ‘रेडियो’ 119 साल का हो गया. इसे लोग विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनायेंगे. रांची में भी आठ से लेकर 91 वर्ष आयु के श्रोता रेडियो के क्रेजी हैं. पेश है रिपोर्ट….

रांचीवासियों के बीच धूम मचा रहा रेडियो धूम
रेडियो धूम 104.8 यानी बोले तो… टेंशन नहीं लेने का. रेडियो धूम ने अपना 11 साल पूरा कर लिया है. इसकी लोकप्रियता बनी हुई है. यही वजह से है कि रेडियो धूम ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी आवाज फैला रहा है़ इसका बड़ा कारण रेडियो धूम की ओर से श्रोताओं की भावनाओं को समझते हुए उनके बीच के मुद्दों पर आधारित कार्यक्रम की प्रस्तुति देना है.
आरजे से कनेक्ट हो रहे श्रोता
रेडियो से चिट्ठी के जरिये अपनी फरमाइश करने का ट्रेंड अब लगभग खत्म हो चुका है. सोशल मीडिया के जमाने में श्रोता अब सोशल मीडिया जैसे वाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक और युट्यूब पेश का इस्तेमाल कर रेडियो से जुड़ चुके हैं. लाखों श्राेता अब रेडियो के सब्सक्राइबर भी बन चुके हैं. इससे न केवल उन्हें अपने पसंदीदा आरजे के चेहरे का पता चल रहा है, साथ ही उनसे रेडियो के इतर भी बात करने मौका मिल रहा है.
शो के संचालन में बड़ी टीम कारगर
रेडियो धूम के प्रोग्राम हेड आदेश कुमार ने बताया कि रेडियो चैनल के संचालन में बड़ी टीम इसका हिस्सा बनती है. श्रोताओं की संख्या न घटे इसके लिए हर उम्र के श्रोता टारगेट बनते हैं. रेडियो धूम में बच्चों, युवा व युवती, कामकाजी महिला व हाउस वाइफ, बुजुर्ग के लिए कई शो हैं. रेडियो के माध्यम से समस्या का भी निदान किया जाता है. बताया कि रेडियो धूम के टेक्निकल टीम में पवन महाता, अजीत कुमार, संजय उरांव, नीरज कुमार, सुजीत श्रीवास्तव, गोविंद उरांव और राजीव कुमार शामिल हैं. इसके अलावा स्टेशन हेड संजय मौर्य, सेल्स टीम के सतीश कुमार, अंशुल गुप्ता, संदीप कुमार भी टीम के सदस्य हैं.
रेडियो धूम के आरजे राजधानीवासियों को हर समय करते हैं जागरूक
रेडियो धूम के माध्यम से आरजे और उनके शो समाज के ज्वलंत मुद्दों पर फोकस करते हैं. साथ ही जरूरत पढ़ने पर संबंधित पदाधिकारियों से बात कर समस्या के निदान का भी काम किया जाता है. हाल ही में रेडियो धूम ने शहर में रहनेवाले ट्रांसजेंडर के लिए मुहिम चलाया था. इस मुहिम को ‘आजादी अपनी पहचान’ का नाम दिया गया था. वहीं दीपावली के समय श्रोताओं के बीच दीया दिखाओ कैंपेन भी चलाया गया था.
इवेंट से जोड़ने का प्रयास
रेडियो धूम समय-समय पर अपने श्रोताओं के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित करता है़ अक्सर शो के बीच क्विज के सवाल भी पूछे जाते हैं. उत्तर देने पर मूवी टिकट दिया जाता है. सालाना कार्यक्रम में बैटल ऑफ बैंड भी शामिल है, जो फरवरी व मार्च माह में होता है़ इसके अलावा महिलाओं के लिए कुकिंग कंपीटिशन भी होता है.
30 वर्षों से रेडियो सुन रहे हैं सुरेंद्र पाठक
ये हैं हरमू निवासी सुरेंद्र पाठक. उम्र करीब 91 वर्ष. लगातार 30 वर्षों से रेडियो पर कार्यक्रम सुनते आ रहे हैं. वह कहते हैं कि रेडियो सुनने का शौक स्कूल के दिनों से शुरू हुआ़ बचपन में पिताजी के साथ रेडियो सुनता था़ आज भी इनकी सुबह रेडियो पर शुरू होनेवाले भजन से होती है़ वह कहते हैं कि चौपाल जैसे कार्यक्रम आने के बाद रेडियो के प्रति लगाव काफी बढ़ गया. एजुकेशन डिपार्टमेंट में होने के कारण कई बार रेडियो शिक्षा से संबंधित टॉक शो में जाने का मौका भी मिला. 1989 में डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर के पद से रिटायर होने के बाद से रेडियो जीवन का एक पार्ट बन गया. नमस्कार झारखंड, जीवन धारा, संस्कृत वार्ता, स्वास्थ्य चर्चा जैसे कार्यक्रम सुनना काफी पसंद है.
रेडियो के नियमित श्रोता हैं बाबूलाल ठाकुर
बड़कागांव के चेपा कला गांव के 65 वर्षीय बाबूलाल ठाकुर आकाशवाणी के नियमित श्रोता हैं. दिन की शुरुआत रेडियो से ही होती है. 1975 से रेडियो सुन रहे हैं, जब इनकी उम्र 22 वर्ष थी़ रेलवे में नौकरी करते थे. 2011 में रिटायर हुए. इनके पास पांच तरह के रेडियो हैं. एक प्रिंस, दो सूरज किरण और दो फिलिप्स बहादुर. बाबूलाल आकाशवाणी का सभी कार्यक्रम सुनते हैं. आकाशवाणी को लगातार पत्र भी लिखते हैं. भेंट वार्ता कार्यक्रम के तहत आकाशवाणी से सम्मानित हो चुके हैं. वह कहते हैं : घर के सभी बच्चे उपहार में रेडियो देते हैं. सभी जानते हैं कि मैं रेडियो प्रेमी हूं.

1942 से यूनियन क्लब की शोभा बढ़ा रहा यह रेडियो
रांची के यूनियन क्लब में आज भी एक एंटीक रेडियो सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है. इस रेडियो को 1942 को 25 रुपये में खरीदा गया था. भारत जब स्वाधीन हुआ तो दिल्ली से इस सूचना का प्रसारण सुनने के लिए काफी लोग जुटे थे. इसी रेडियाे से लोग नेताजी सुभाषचंद्र बोस का भाषण सुना करते थे. महालया का प्रसारण होता था. लगभग 20 वर्षों से यह रेडियो खराब पड़ा है.
रिटायरमेंट के बाद साथी बना रेडियो
अशोक नगर निवासी प्रभात कुमार, पत्नी डॉ आशा कुमार की सेवा में लगे हैं. प्रभात कुमार कोल इंडिया से चीफ जनरल पद से और डॉ आशा कुमार रांची विवि से प्रोफेसर के पद से 2005 में एक साथ रिटायर हुए है़ं दोनों के जीवन में रेडियो का साथ 1971 में मिला. जब दोनों की शादी में रेडियो तोहफे के रूप में घर आया़ डॉ आशा बताती है कि शादी में बॉल्व वाला रेडियो मिला था जो काफी बड़ा हुआ करता था. पटना से रांची जब आयी, तो रेडियो ही साथी बना.
बिना पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी रेडियो काफी उपयोगी
मैं आकाशवाणी से 1989 से जुड़ा हूं. उस वक्त आकाशवाणी का बाल कलाकार था. पटना में कार्यरत था. तब पांच रुपये मिलते थे. मैंने 2003 में पहला रेडियो कार्यक्रम बाल प्रसारण दिवस पर किया़ आकाशवाणी का उद्घोषक होने के कारण राजभवन में तत्कालीन राज्यपाल वेद मारवाह की भेंट वार्ता लेने का अवसर मिला. यह मेरे लिए सबसे रोमांचक क्षण था. 12 सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का लाइव कमेंट्री करने का मौका मिला़ बचपन में तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक सुमन गुप्ता से भेंटवार्ता लेने का भी मौका मिल चुका है़ नाटकों की शृंखला में भाग लेकर आनंद आया. आज एफएम प्रसारण शुरू होने से रेडियो की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. रेडियो ऐसे लोगों के लिए भी उपयोगी है जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते.
कुमार विनोद, सीनियर एनाउंसर
बचपन में पिताजी के कारण रेडियो से लगाव हुआ
पिताजी के कारण मेरा रेडियो से लगाव हुआ़ उस समय इंदू वाही न्यूज रीडर थीं, जिससे मैं काफी प्रेरित थी. ग्रेजुएशन के बाद आकाशवाणी रांची में पार्ट टाइम जॉब के तौर पर न्यूज पढ़ने लगी. उस समय तब सुबह 8:30 आठ बजे बुलेटिन होता था. एक बार न्यूज पढ़ना होता था. उसके बाद दिल्ली चली गयी. 1997 में दिल्ली आकाशवाणी में परमानेंट न्यूज रीडर बनीं. 2002 में रांची लौट आयी. वाइल्ड लाइफ पर दो डॉक्यूमेंट्री बनायी. वर्षों से आकाशवाणी में लगातार न्यूज पढ़ रही हूं. सुबह 8:30 बजे की प्राइम टाइम के बाद एफएम विविध भारती पर तीन बार न्यूज पढ़ना होता है. शाम सात बजे भी न्यूज रीडिंग करनी होती है. युवाओं के लिए यह करियर का अच्छा विकल्प हो सकता है. अब तो वेबसाइट पर विदेश में रह रहे लोग भी रेडियो सुन रहे हैं.
पूनम केरकेट्टा, न्यूज रीडर
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