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फॉर्मूला-वन की 1000वीं रेस: भारत इस रेस में अब तक रहा है पीछे

शंघाई : चीन के शंघाई इंटरनेशनल सर्किट पर रविवार को चाइनीज ग्रांप्री फॉर्मूला-1 रेस होगी. इसमें कुल 10 टीमों के 20 ड्राइवर हिस्सा ले रहे हैं. यह ग्रांफ्री काफी अहम होने जा रही है, क्योंकि यह फॉर्मूला-1 के इतिहास की 1000वीं रेस होगी. एफ-1 रेस के 69 साल के इतिहास में अब तक 999 रेस […]

शंघाई : चीन के शंघाई इंटरनेशनल सर्किट पर रविवार को चाइनीज ग्रांप्री फॉर्मूला-1 रेस होगी. इसमें कुल 10 टीमों के 20 ड्राइवर हिस्सा ले रहे हैं. यह ग्रांफ्री काफी अहम होने जा रही है, क्योंकि यह फॉर्मूला-1 के इतिहास की 1000वीं रेस होगी. एफ-1 रेस के 69 साल के इतिहास में अब तक 999 रेस हो चुकी हैं. 1920 में यूरोपियन ग्रांप्री से मोटरगाड़ियों की रेसिंग का कॉन्सेप्ट ईजाद हुआ था. इसके बाद घरेलू स्तर पर ही रेस का आयोजन किया जाता था.

फॉर्मूला-1 शब्द पहली बार वर्ष 1946 में सामने आया

कमीशन स्पोर्टिव इंटरनेशनल (सीएसआइ) ने प्रीमियर सिंगल सीटर रेसिंग कैटेगरी के तौर पर इसकी परिभाषा दी। इसी तरह कम क्षमता वाली कारों की रेसिंग को फॉर्मूला-2 और फॉर्मूला-3 में बांटा गया. 1950 में ब्रिटिश ग्रांप्री के साथ पहली बार फॉर्मूला-1 रेस का आयोजन किया गया.अमेरिका के जॉनी पर्संस ने रेस जीती. उस समय भी एफ-1 रेस को लेकर इतनी दिलचस्पी थी कि एक लाख से ज्यादा लोग रेस देखने के लिए जुटे थे. तब से अब तक 23 देशों के 105 ड्राइवर कभी न कभी एफ-1 रेस जीत चुके हैं. कई ड्राइवरों ने एक बार, तो कई ने एक से ज्यादा बार रेस जीती.

सफल ड्रॉइवर
91 बार रेस सबसे ज्यादा अमेरिका के माइकल शूमाकर ने जीते हैं. हालांकि एक्सीडेंट के बाद अभी कॉमा में रहने के कारण वे कई वर्षों से चुनौती पेश नहीं कर पा रहे हैं.

हेमिल्टन दूसरे स्थान पर : दूसरे नंबर पर यूके के लुइस हेमिल्टन (74) और तीसरे पर जर्मनी के सेबेस्टियन वेटल (52) हैं. इसके अलावा एलेन प्रोस्ट (51) ने भी 50+ जीत हासिल की. वहीं 31 ड्राइवर ऐसे हैं, जिन्होंने सिर्फ एक बार ग्रांप्री जीती है. 33 रेसर्स ऐसे हैं जिन्होंने 10 या उससे ज्यादा बार रेस में जीत हासिल की.

सफल टीम: फेरारी 235 बार जीती है

फेरारी एफ-1 इतिहास की सबसे सफल टीम रही है. टीम ने 235 बार रेस जीती. शूमाकर के टीम के साथ जुड़ने से टीम का प्रदर्शन शानदार रहा. 182 जीत के साथ मैक्लारेन टीम दूसरे नंबर पर और 114 जीत के साथ विलियम्स तीसरे नंबर पर है. मर्सिडीज को 89, रेडबुल को 59 जीत मिली हैं.

पहली रेस में 1500 सीसी का इंजन था, अब टर्बाइन जैसी पावरवाली कारें

सबसे पहली फॉर्मूला-1 रेस जून 1950 में ब्रिटेन के िल्वरस्टोन सर्किट पर हुई थी. तब पनडुब्बी जैसी दिखने वाली सिंगल सीटर कार रेस में दौड़ती थीं, जिनके इंजन करीब 1500 सीसी के रहते थे. अब जो कारें रेस में उतर रही हैं, उनके टर्बोचार्ज इंजन होते हैं. यानी टर्बाइन जैसी ताकत वाले इंजन की कारों का इस्तेमाल हो रहा है. 2000 मिमी का व्हीलबेस अब 3500 मिमी तक का हो चुका है. तब कारों में 12 पिस्टन और 6 सिलेंडर वाला इंजन इस्तेमाल होता था. अब वी-6 इंजन आ चुका है, जिसे सबसे कॉम्पैक्ट इंजन बताया जा रहा है. तब सिंगल प्लेट क्लच का इस्तेमाल होता था, जिसकी वजह से कार का इंजन जल्द खराब होने की संभावना रहती थी.

भारत इस रेस में अब तक रहा है पीछे सिर्फ दो ड्राइवर ही इसमें हिस्सा ले सके हैं

क्रिकेट के दीवाने देश भारत इस रेस में अभी काफी पीछे हैं. सबसे अधिक ब्रिटेन ने 163 रेसर दिये हैं, भारत के 2 ड्राइवर इसमें चुनौती पेश कर चुके हैं. 39 अलग-अलग देशों के ड्राइवर फॉर्मूला-1 रेस में हिस्सा ले चुके हैं. ब्रिटेन के अलावा अमेरिका (158) का भी इसमें दबदबा रहा है. दूसरे और इटली (99) तीसरे स्थान पर है. भारत के 2 रेसर एफ-1 तक पहुंचे हैं- नारायण कार्तिकेयन और करुण चंदोक. कार्तिकेयन 2005 में भारत के पहले एफ-1 रेसर बने थे.

1950 में पहली बार रेस हुई. इस तरह की कारें रेस में शामिल हुईं.

1976 में कार का मॉडल बदला और आगे का हिस्सा थोड़ा पतला हुआ.

1985 में कार और आधुनिक हुई. स्पीड और इंजन का हॉर्स पावर बढ़ा.

1990 के दशक में फिर से फॉर्मूला रेस कारों की डिजाइन बदली गयी

2016 के बाद ड्राइवरों की सुरक्षा के कई उपकरण जोड़े गये.

1950 में पहली बार हुई थी रेस

69 वर्षों में कारों का मॉडल कई बार बदला

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