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मोपासां की कहानी : एक पागल की डायरी

फ्रांसीसी कथाकार मोपांसा (1850.1893) को आधुनिक कहानी का पिता माना जाता है. कहते हैं मोपासां ने कहानियों में जीवन की धड़कन भरी. उसे मानव स्वभाव के करीब लेकर आये. उनका पूरा नाम आनरे रेना आल्बेर गे द मोपांसा था. मोपासां की कहानी : एक पागल की डायरी मूल : मोपासां रूपांतरण : विजय शर्मा उसकी […]

फ्रांसीसी कथाकार मोपांसा (1850.1893) को आधुनिक कहानी का पिता माना जाता है. कहते हैं मोपासां ने कहानियों में जीवन की धड़कन भरी. उसे मानव स्वभाव के करीब लेकर आये. उनका पूरा नाम आनरे रेना आल्बेर गे द मोपांसा था.

मोपासां की कहानी : एक पागल की डायरी

मूल : मोपासां

रूपांतरण : विजय शर्मा

उसकी मृत्यु हो चुकी थी – हाई ट्रिब्यूनल का प्रमुख, सीधा-सादा न्यायधीश. फ़्रांस के सारे कोर्ट में जिसका निष्कलंक जीवन एक उदाहरण था. एक जोड़ी गहरी धंसी हुई आखों से चमकते उस महान लम्बोतरे और पीले चेहरे के सम्मान में एडवोकेट, युवा काउंसलर और जज सबने सिर झुकाया.

उसका सारा जीवन कमजोरों की रक्षा और अपराधों के अन्वेषण में गुजरा था. बेइमानों और हत्यारों का उससे बड़ा दुश्मन कोई नहीं था. ऐसा लगता था कि वह उनकी आत्मा की गहराई में छिपे रहस्यमय विचारों को सहज ही पढ़ लेता था.

लोगों की श्रद्धांजलि और पछतावा लेने को अब वह नहीं था. लाल ब्रीचेज पहने सैनिकों ने उसे कब्र तक पहुंचाया. श्वेत वस्त्रधारी पुरुषों ने उसकी समाधि पर असली लगने वाले आंसू बहाए. लेकिन, सुनो. डेस्क में जहां वह अपराधियों के रिकॉर्ड्स रखता था उन्हीं कागज-पत्रों के बीच मृतक द्वारा रखे विचित्र कागज मिले. जिनका शीर्षक था : क्यों?

जून 20, 1851

मैंने अभी-अभी कोर्ट छोड़ा है. मैंने ब्लोंड को मृत्युदंड दिया है! अब इस आदमी ने अपने पांच बच्चों की हत्या क्यों की? अक्सर ऐसे व्यक्ति से मिलना होता है जिसके लिए हत्या एक खेल है. मनोरंजन है. हां, हां, यह मनोरंजन ही होना चाहिए – सबसे बड़ा आनंद, शायद, क्या हत्या करना किसी हद तक भोजन करने जैसा नहीं है? बनाना और बिगाड़ना. ये दो शब्द संसार का पूरा इतिहास सहेजे हुए हैं. सारी दुनिया का इतिहास सारा-का-सारा, हत्या करना क्यों नशा नहीं है?

जून 25

यह सोचो कि यहां एक जीव है जो जीवित है, जो चलता-फ़िरता है, जो दौड़ता है. एक जीव? जीव क्या है? जीवित वस्तु जिसमें गति का नियम है, और जो इस गति के नियम से संचालित होता है. किसी पर आश्रित नहीं है यह वस्तु. इसके पैर जमीन से स्वतंत्र हैं. यह जीवन का एक कण है. जो भूमि पर विचरण करता है और यह जीवन का कण मुझे नहीं मालूम कहां से आता है. जिसे कोई अपनी इच्छा से नष्ट कर सकता है. और तब कुछ नहीं – और कुछ नहीं. यह नष्ट हो जाता है. तब यह समाप्त हो जाता है.

जून 26

क्यों, तब हत्या करना अपराध क्यों है? हां, क्यों?

इसके विपरीत यह प्रकृति का विधान है. प्रत्येक जीव का उद्देश्य है हत्या. जानवर लगातार मारता है. सारे दिन अपने अस्तित्व के लिए. आदमी निरंतर मारता है. अपने पोषण के लिए. लेकिन इसके अलावा भी उसे अपने आनंद के लिए हत्या की जरूरत पड़ती है. उसने हांका कार्ने का आविष्कार किया है! बच्चों को जो कीड़े-मकोड़े मिलते हैं वह उन्हें मारते हैं. छोटी चिड़िया, सारे छोटे जानवर जो भी उन्हें उनके रास्ते में मिलते हैं वे उसे मारते हैं. लेकिन इसमें भी उस इच्छा की पूर्ति नहीं होती है. संहार की जो इच्छा हमारे भीतर है वह केवल जानवर की जरूरत से पूरी नहीं होती है. हमें आदमी भी मारना है. बहुत पहले नरबलि के द्वारा इस जरूरत की पूर्ति होती थी. अब, समाज में रहने की आवश्यकता ने हत्या को अपराध का दर्जा दे दिया है. हम हत्यारे को सजा देते हैं, उसकी भर्त्सना करते हैं. लेकिन जैसा कि हम इस नैसर्गिक और राजसी संवेग जिज्ञासा के बिना नहीं रह सकते हैं. हम समय-समय पर अपना स्वखलन युद्ध के द्वारा करते हैं. तब एक पूरा राष्ट्र दूसरे पूरे राष्ट्र के द्वारा कत्ल कर दिया जाता है. यह रक्त का महोत्सव है. एक ऐसा महोत्सव जो सैनिकों को पागल बना देता है और नागरिकों को मदहोश कर देता है, और इस सन्नीपात की, कत्लेआम की कहानी स्त्रियां और बच्चे रात में लैंप की रोशनी में पढ़ते हैं.

और क्या हम लोगों को मारने के लिए चुने गए इन कस्साइयों की भर्त्सना करते हैं? नहीं, उन्हें हम जयमाल पहनाते हैं. वे सोने से मढ़े जाते हैं. उनके सिर पर चमकदार कलंगी और सीने पर तमगे सजते हैं. उन्हें विभिन्न प्रकार के क्रॉस, ईनाम और पदवी से नवाजा जाता है. वे गर्वित हैं. सम्मानित हैं. वे स्त्रियों के प्रेमपात्र बनते हैं. भीड़ उनका जयजयकार करती है. सबका एकमात्र कारण उनका लक्ष्य है, मानव रक्त बहाना! वे अपने मृत्यु हथियार लेकर अग्लियों में चलते हैं. काले वस्त्रों में लिपटे राहगीर उन्हें ईर्ष्या से देखते हैं. अस्तित्व के हृदय में प्रकृति ने हत्या का महान विधान भर दिया है. हत्या से बढ़ कर सुंदर और सम्मानित कुछ और नहीं है.

जून 30

हत्या विधान है क्योंकि प्रकृति सतत युवा को प्रेम करती है. वह अपनी संपूर्ण अंत:चेतन क्रिया से रो कर पुकारती है. "जल्दी! जल्दी! जल्दी!" जितना वह नष्ट करती है, उतना ही वह नूतन होती जाती है.

जुलाई 3

यह अवश्य ही आनंददायक होगा. अनोखा और स्फ़ूर्तिदायक. मारना : एक प्राणवान, चिंतनशील प्राणी को सामने रख कर उसमें एक छेद करना. कुछ और नहीं बस एक छोटा-सा सुराख और एक पतली लाल धार, जिसे खून कहते हैं, को बहते देखना. जो जीवन है, और तुम्हारे सामने केवल मांस का एक लोथड़ा, ठंडा, विचार शून्य ढेर है.

अगस्त 5

मैं, जिसने फ़ैसले देते, न्याय करते अपना जीवन बिता दिया, सजा सुनाई, शब्दोच्चार से हत्या की. जिन्होंने से हत्या की, उन्हें गिलोटिन पर चढ़ाया, अगर मैं भी वैसा ही करूं जैसा हत्यारों ने किया है. जैसा उन्होंने किया है. जिन्हें मैंने नष्ट किया है. यदि मैं वैसा करूं, मैं-मैं – किसे पता चलेगा.

अगस्त 10

कभी भी किसे पता चलेगा? कौन मुझ पर शक करेगा? खासकर जब मैं एक ऐसा जीव चुनूं जिसे समाप्त करने में मेरी कोई रूचि न दीखती हो. कोई स्वार्थ नजर न आता हो.

अगस्त 22

अब मैं और रुक नहीं सकता. मैंने एक छोटा-सा जीव प्रयोग के तौर पर मार डाला. शुरुआत के तौर पर. जीन, मेरा नौकर, मैंने उसे काम से बाहर भेज दिया. ऑफ़िस की खिड़की में पिंजड़े में लटका कर एक गोल्डफ़िंज रखा था. मैंने उस नन्हीं-सी चिड़िया को हाथ में ले लिया. अपने हाथों में, जहां मैंने उसके दिल की धड़कन अनुभव की. वह गरम थी. अमीम अपने कमरे में गया. रुक-रुक कर मैं परिंदे पर अपनी पकड़-मरोड़ का दबाव बढ़ाता गया. उसकी धड़कन तीव्र-से-तीव्रतर होती गई : यह क्रूर पर रूचिकर था. मैं उसका दम घोंट रहा था, लेकिन मैं रक्त न देख सका.

तब मैंने एक कैंची ली. छोटी नाखून काटने वाली और तीन बार खच-खच-खच करके बड़ी सावधानी से मैंने उसका गला काट डाला. उसने अपनी चोंच खोली, वह निकल भागने को छटपटाई, पर मैंने उसे पकड़े रखा! ओह! मैं उसे पकड़े हुए था मैंने एक छटपटाता पागल जीव पकड़ा हुआ था और मैंने खून की एक पतली धार देखी.

और तब जैसा कि वास्तविक हत्यारे करते हैं, मैंने किया. मैंने कैंची धो दी और अपने हाथ धो लिए. मैंने पानी छींटा और शरीर उठाया. लाश बागीचे में छिपाए जाने को ले गया. मैंने उसे स्ट्राबेरी के झाड़ के नीचे दबा दिया. यह कभी नहीं खोजा जा सकेगा. मैं प्रतिदिन उस पेड़ की स्ट्राबेरी खा सकता हूं. जब मजा करना मालूम हो तो जीवन का मजा लिया जा सकता है.

मेरा नौकर रोया, उसने सोचा कि पक्षी उड़ गया. वह मुझ पर कैसे शक कर सकता है. आह!

अगस्त 25

मुझे अवश्य एक आदमी मारना चाहिए. अवश्य!

अगस्त 30

यह कर दिया, लेकिन कितना मामूली. मैं वेरनम के जंगल में सैर करने गया था, विशेष तौर पर. पर कुछ सोच नहीं रहा था. देखा. रोड पार एक बालक. एक छोटा बच्चा रोटी खा रहा था. मेरे नजदीक आने पर वह खाना रोक कर बोला, "नमस्ते सर!" और मेरे दिमाग में कौंधा, "क्या इसे मार दूं?"

मैंने उत्तर दिया, "बेटे क्या तुम अकेले हो?"

"जी हां, श्रीमान!"

"जंगल में बिल्कुल अकेले"

"हां श्रीमान"

उसे मारने की इच्छा शराब के नशे की तरह मुझ पर हावी होने लगी. मैं उसके पास बड़ी शांति से पहुंचा, और अचानक मैंने उसकी गर्दन दबोच ली. उसने अपने नन्हें हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली. उसका शरीर मुरझाने लगा, और फ़िर वह नहीं हिला. मैंने शरीर एक गड्ढ़े में फ़ेंक दिया. उसके ऊपर खर-पतवार डाल दी. घर लौट कर मैंने डट कर खाना खाया. कितना छोटा था वह! शाम को मैं काफ़ी खुश था. तरोताजा, शाम मैंने एक साथी के यहां गुजारी. उन लोगों को मैं काफ़ी मजाकिया मूड में नजर आया, लेकिन मैंने रक्त नहीं देखा. मैं मदहोश न हुआ.

अगस्त 31

शरीर खोज निकाला गया. वे हत्यारे की खोज में हैं. आह!

सितम्बर 1

दो मसखरे गिरफ़्तार हो गए. सबूत नदारत है. बस सबूत की कमी है.

सितम्बर 2

माता-पिता मेरे पास आए थे. वे रो रहे थे. आह!

अक्टूबर 6

कुछ पता नहीं चला. अवश्य ही यह काम किसी उठाईगीर ने किया होगा. ओह! ऐसा लगता है कि यदि मैंने रक्तधार देखी होती तो अब तक मुझे संतुष्ट हो जाना चाहिए था.

अक्टूबर 10

एक और. मैं नहाने के बाद नदी के किनारे टहल रहा था. मैंने देखा एक पेड़ के नीचे एक मछुआरा सो रहा था. दोपहर हो चली थी. वहां निकट ही आलू के एक खेत के पास एक फ़ावड़ा जैसे खासतौर पर मेरे लिए ही रखा था. मैंने उसे लिया, पलटा, मैंने उसे गदा की तरह उठा लिया. एक ही वार में मैंने उस मछुआरे का सिर काट दिया. ओह! उसमें से खून निकला. यह! लाल रंग का खून था. वह पानी में बेआवाज बहता गया. और मैं भारी कदमों से चला आया. यदि मैं देख लिया गया था. आह! मैं एक कुशल हत्यारा बन गया था.

अक्टूबर 25

मछुआरे की घटना ने काफ़ी हो-हल्ला मचाया. उसका भतीजा उसी के साथ मछली मारता था. वही दोषी ठहराया गया. शहर में सबने इसे स्वीकार कर लिया है. आह! आह!

अक्टूबर 27

भतीजे ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की उसने कहा कि जब हत्या हुई वह रोटी खरीदने गांव गया था. उसने शपथ खा कर कहा कि उसका चचा उसकी गैरहाजरी में मारा गया था. कौन पतियाएगा!

अक्टूबर 28

भतीजे के साथ ऐसा सलूक हुआ कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा. पर उसने अपराध स्वीकार नहीं किया. आह! न्याय!

नवम्बर 15

अपने चचा के वारिस उस भतीजे के खिलाफ़ तमाम सबूत जाते हैं. मैं सत्र की अध्यक्षता करूंगा.

जनवरी 25 1852

मृत्य! म्रुत्यु! मृत्यु! मैंने उसे मृत्युदंड दिया. आह! एक और! मुझे उसे फ़ांसी चढ़ते देखने जाना चाहिए.

मार्च 10

यह हो गया. उन्होंने उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया. वह बहुत भली-भांति मरा. भली-भांति! इससे मुझे प्रसन्नता हुई. एक आदमी का सिर कटते देखना कितना अच्छा लगता है!

अब मैं इंतजार करूंगा, मैं इंतजार कर सकता हूं. एक जरा-सा सबूत चाहिए मेरे पकड़े जाने के लिए.

पांडुलिपि में और बहुत सारे पन्ने थे लेकिन किसी और अपराध की बात नहीं लिखी थी.

जिनको यह कहानी दी गयी उन उदासीन चिकित्सकों ने घोषणा की कि इस संसार में इसकी तरह के बहुत से अनजाने पागल हैं. ऐसे कुशल और भयंकर दानव जैसे पागल.

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डॉ विजय शर्मा का परिचय

पीएचडी, पूर्व एसोशिएट प्रोफ़ेसर, इग्नू एकेडमिक काउंसलर, वर्कशॉप फ़ेसीलिटेटर, विजिटिंग प्रोफ़ेसर हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी तथा रॉची एकेडमिक स्टाफ़ कॉलेज, देश के विविध स्थानों पर अनेक सेमीनार एवं कार्यशाला आयोजित, विवि परीक्षक, सेमीनार में शोध-पत्र प्रस्तुति, कई हिन्दी और इंग्लिश पत्रिकाओं में सह-संपादन, अतिथि संपादन ‘कथादेश’ दो अंक, हिंदी साहित्य ज्ञानकोश में सहयोग.

प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, आलेख, पुस्तक-समीक्षाएं, फिल्म समीक्षाएं, अनुवाद प्रकाशित.

आकाशवाणी से भी कहानियां, वार्ताएं आदि का प्रसारण.

प्रकाशित पुस्तकें : अपनी धरती, अपना आकाश : नोबेल के मंच से, वॉल्ट डिज्नी : ऐनीमेशन का बादशाह, अफ़्रो-अमेरिकन स्त्री साहत्यि, स्त्री साहित्य और नोबेल पुरस्कार (द्वितीय संस्कर), विश्व सिनेमा : कुछ अनमोल रत्न, सात समुंदर पार से (प्रवासी साहित्य विश्लेषण) , देवदार के तुंग शिखर से, तीसमार खां (कहानी संग्रह) हिंसा, तमस एवं अन्य साहित्यक आलेख, उपहार एवं विश्व की अन्य 24 श्रेष्ठ कहानियां लौह शिकारी (अनुवाद), तीन पांडुलिपि प्रकाशकों के पास.

संपर्क : 326, ए न्यू सीताराम डेरा, एग्रिको, जमशेदपुर, झारखंड, पिन – 831009

मोबाइल : 9430381718, vijshain@gmail.com

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