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Friday, March 29, 2024

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यूपी, बिहार में जनसंख्या की चुनौती

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2019 में दुनिया की आबादी बढ़ कर 7.7 अरब हो गयी है, जबकि 2018 में यह आबादी 7.6 अरब थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 से 2019 के बीच […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2019 में दुनिया की आबादी बढ़ कर 7.7 अरब हो गयी है, जबकि 2018 में यह आबादी 7.6 अरब थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 से 2019 के बीच भारत की जनसंख्या चीन की तुलना में दोगुनी रफ्तार से बढ़ी है. भारत की जनसंख्या 1.2 फीसदी औसत वार्षिक दर से बढ़ कर 136 करोड़ हो गयी है.
दूसरी ओर चीन की आबादी हर साल 0.5 फीसदी दर से बढ़ कर 142 करोड़ हो गयी है, जबकि जनसंख्या वृद्धि की वैश्विक औसत दर 1.1 फीसदी है. जनसंख्या वृद्धि में भारत चीन से आगे है, लेकिन औसत उम्र के मामले में पीछे है. भारत में औसत उम्र 69 साल है, जबकि चीन की औसत उम्र 77 साल है. वैश्विक औसत उम्र 72 साल है. रिपोर्ट के अनुसार भारत की 27 प्रतिशत आबादी 10-24 वर्ष की और 67 प्रतिशत आबादी 15-64 आयु वर्ग की है. देश के छह प्रतिशत लोग 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं.
सकारात्मक बात है यह है कि रिपोर्ट में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की बात स्वीकार की गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1994 में देश में मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख बच्चों के जन्म में 488 मौत से घट कर 2015 में 174 तक आ गयी है. इससे बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है. प्रगति के दावों के बावजूद भारत में बच्चों की स्थिति दयनीय बनी हुई है. भारत में हर साल अकेले कुपोषण से 10 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो जाती है और विभिन्न कारणों से लगभग 10 करोड़ बच्चे स्कूल पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि चार राज्यों- यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल में आबादी का घनत्व सबसे ज्यादा है. एक और अहम आंकड़ा है कि दो हिंदी भाषी राज्यों- बिहार और उत्तर प्रदेश में 30.4 करोड़ से ज्यादा लोग बसते हैं यानी देश की एक चौथाई आबादी केवल दो राज्यों में बसती है.
यह तथ्य चौंकाता तो नहीं है, लेकिन हालात की गंभीरता की ओर जरूर इशारा करता है. यह सही है कि बड़ी जनसंख्या राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन इससे उत्पन्न होने वाली समस्याएं अत्यंत गंभीर हैं. अभी लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में बढ़ती जनसंख्या नहीं है और न ही यह कोई चुनावी मुद्दा है. गंभीर बात यह भी है कि समाज में भी इसको लेकर कोई विमर्श भी नहीं है.
हम सब देख रहे हैं कि हमारी जनसंख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधन लगातार घटते जा रहे हैं. यदि इसी तरह से जनसंख्या बढ़ती रही तो रोजगार की समस्या और गंभीर होती चली जायेगी. बढ़ती जनसंख्या को नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की चुनौती पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. जनसंख्या के लिहाज से इन राज्यों के विकास का खाका कैसा हो, यह भी हमारे सामने नहीं है.
जनसंख्या के भारी दबाव का नतीजा प्रदूषण भी है. कुछ समय पर पहले एक रिपोर्ट आयी थी, जिसमें कहा गया था कि दुनिया के 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, गया और यूपी के गाजियाबाद, नोएडा, लखनऊ, वाराणसी, मुरादाबाद और आगरा शामिल हैं, लेकिन यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के हमारे अन्य अनेक शहरों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. ये तथ्य किसी भी देश और समाज के लिए बेहद चिंताजनक हैं.
स्थिति की गंभीरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष 70 लाख लोगों की जान चली जाती है. इनमें छह लाख बच्चे शामिल हैं. दुनिया में औसतन सात में से एक बच्चा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है. कई वर्षों तक प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण कैंसर, हृदय और सांस संबंधी बीमारियां हो जाती हैं और लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं.
यूपी और बिहार जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में हम अभी बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं. अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़े हुए हैं. हम अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. बिहार के अधिकांश लोग कृषि से जीवन यापन करते हैं, लेकिन बिहार का एक बड़ा इलाका हर साल बाढ़ में डूबता आया है.
कोसी और सीमांचल के इलाके की बाढ़ से आज भी हमें मुक्ति नहीं मिल पायी है. देश का कोई कोना नहीं है, जहां यूपी, बिहार के लोग नहीं पाये जाते हैं. यूपी, बिहार के लोग मेहनतकश हैं और गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की जो चमक-दमक नजर आती है, उसमें बिहारियों का भारी योगदान है.
इन राज्यों की विकास की कहानी बिना बिहारियों के योगदान के नहीं लिखी जा सकती है, लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, जम्मू कश्मीर की घटनाएं हमारे सामने हैं, जहां बिहार के लोगों को बेइज्जत किया गया. स्थानीय नेता राजनीतिक स्वार्थ के लिए बिहारियों को निशाना बनाते हैं. देश में यूपी और बिहार के लोगों की जैसी इज्जत होनी चाहिए, वैसी नहीं है.
हमें यूपी और बिहार में ही शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, ताकि लोगों को बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े, लेकिन जनसंख्या इस काम में आड़े आ जाती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अच्छी शिक्षा के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती.
आज हर साल दिल्ली और दक्षिण के राज्यों में पढ़ने के लिए यूपी,बिहार के हजारों बच्चे जाते हैं. साथ ही राजस्थान के कोटा में बिहार, यूपी और झारखंड के हजारों बच्चे कोचिंग के लिए जाते हैं. हमें यूपी, बिहार और झारखंड को शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत है.
आज जरूरत है कि हम ऐसा ढांचा विकसित करें कि हमारे बच्चों को पढ़ाई और कोचिंग के लिए बाहर जाने की आवश्यकता न पड़े. इस दिशा में हमें प्रयास करने होंगे. मेरा मानना है कि यूपी, बिहार और झारखंड में काफी साम्यता है. ये राज्य मिल कर विकास का नया मॉडल स्थापित कर सकते हैं. बिहार के पास उद्योग नहीं है, लेकिन बड़ी संख्या में प्रशिक्षित कामगार हैं. झारखंड में उद्योग हैं और यहां तेजी से औद्योगीकरण हो रहा है. बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भी झारखंड आगे बढ़ रहा है. इसका फायदा बिहार उठा सकता है.
इसके लिए दोनों राज्यों काे साझा विषयों पर बात करनी होगी. वक्त आ गया है कि यूपी, बिहार और झारखंड भविष्य पर चिंतन करें. मेरा मानना है कि यूपी, बिहार और झारखंड जैसे हिंदी भाषी राज्य आगे बढ़ेंगे, तभी देश भी आगे बढ़ेगा.
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