लंदन : एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार की ओर से अपने आलोचकों को चुप कराने के लिए औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून का इस्तेमाल करने को लेकर उसकी बुधवार को तीखी आलोचना की है. ब्रिटेन स्थित गैर सरकारी संगठन ने अपनी वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में कहा कि भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों को सरकारी और राज्येतर तत्वों की ओर से हमले एवं धमकियों का सामना करना पड़ा है. रिपोर्ट में विदेशी आर्थिक मदद प्राप्त करने वाले संगठनों को परेशान करने के लिए बार-बार लागू किये जाने वाले विदेशी अंशदान (नियमन) कानून या एफसीआरए के जरिये नागरिक समाज संगठनों पर कार्रवाई किये जाने का जिक्र किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के आलोचकों को चुप कराने के लिए औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून का उपयोग किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि तथाकथित गोरक्षक समूहों द्वारा गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के पालन के नाम पर गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं कर्नाटक समेत राज्यों में लोगों पर हमला किये जाने, उन्हें परेशान किये जाने और जाति आधारित हिंसा को चिंता के विषयों के रूप में रेखांकित किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के एक शिविर पर बंदूकधारियों के हमले के बाद से भारत एवं पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है. जम्मू-कश्मीर राज्य में महीनों कर्फ्यू लगा रहा और प्राधिकारियों ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया. रिपोर्ट में भारत सरकार के नोटबंदी के परिणामों को भी रेखांकित किया गया है. इसमें कहा गया है कि भारत में बड़े नोटों पर प्रतिबंध का मकसद देश में कालेधन को लेकर कार्रवाई करना था, लेकिन इससे लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव सलील शेट्टी ने कहा कि विरोधी की बहुत बुरी छवि पेश करने की आज की राजनीति बेशर्मी से यह विचार रखती है कि कुछ लोग अन्यों की तुलना में कम मानवीय हैं. वैश्विक मामलों में विभाजनकारी डर पैदा करना एक खतरनाक ताकत बन गया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में चेताया गया है कि वर्ष 2017 में अराजक वैश्विक मंच पर मानवाधिकार नेतृत्व की अनुपस्थिति से वैश्विक संकट और गहरायेंगे.