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Friday, March 29, 2024

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2030 तक होगा मलेरिया का अंत!

वर्षों से जारी प्रयासों और व्यापक खर्चों के बावजूद मलेरिया की वैश्विक चुनौती कायम है. इससे निबटने के लिए भारत समेत कई देशों में वैक्सीन का विकास करने समेत कई वैज्ञानिक उपाय तलाशे जा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर हाल में इस दिशा में तीन आरंभिक उपलब्धियां हासिल हुई हैं. देश-दुनिया में मलेरिया की मौजूदा […]

वर्षों से जारी प्रयासों और व्यापक खर्चों के बावजूद मलेरिया की वैश्विक चुनौती कायम है. इससे निबटने के लिए भारत समेत कई देशों में वैक्सीन का विकास करने समेत कई वैज्ञानिक उपाय तलाशे जा रहे हैं. वैश्विक स्तर पर हाल में इस दिशा में तीन आरंभिक उपलब्धियां हासिल हुई हैं. देश-दुनिया में मलेरिया की मौजूदा स्थिति, इससे निपटने के प्रयासों में हासिल हालिया उपलब्धियों सहित इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बता रहा है यह विशेष…

मलेरिया का मुकाबला करने के लिए पिछले करीब डेढ़ दशक के दौरान खर्च की गयी रकम और प्रयासों की बदौलत कम-से-कम 60 लाख लोगों की जान बचाने में कामयाबी हासिल हुई है. संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व मलेरिया रिपोर्ट जारी करते हुए हाल में यह जानकारी दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल) के तहत यह कामयाबी हासिल की गयी है. हालांकि, मलेरिया से होनेवाली मौतों की संख्या में और कमी लाने के लिए वर्ष 2030 तक जो लक्ष्य हासिल करने हैं, उसके लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है.

मलेरिया बीमारी मच्छरों के काटने से फैलती है, लेकिन इसके संक्रमण को रोका जा सकता है और संक्रमण के बाद इसका इलाज भी मुमकिन है. संगठन का कहना है कि मलेरिया पर काबू पाने में बेशक बड़ी कामयाबी मिली है, लेकिन अभी मंजिल तक पहुंचना बाकी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम के निदेशक डॉक्टर पैड्रो एल अलोन्सो का कहना है, ‘पिछले 15 वर्षों का सफर इस लिहाज से बहुत अच्छा रहा है. खासतौर से मलेरिया के नये मामलों को रोकने और इसकी चपेट में आनेवाले मरीजों के इलाज के मामले में.

पिछले डेढ़ दशकों में अब तक करीब 60 लाख लोगों की जान बचायी जा सकी है. इससे आर्थिक फायदा भी हुआ है. लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि बीते वर्ष यानी 2015 में मलेरिया के करीब 21.5 लाख नये मामले दर्ज किये गये हैं. संगठन ने पूरी दुनिया में मलेरिया के असर को कम करने के लिए एक रणनीति तैयार की है, जिसका लक्ष्य अगले 15 सालों में मलेरिया के मामलों में 90 फीसदी कमी लाना है.

साथ ही उन देशों में मलेरिया को फिर से उभरने से रोकने के लिए व्यापक प्रयास किया जायेगा, जहां मलेरिया पर पूरी तरह काबू पा लिया गया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए संगठन ने तीन अरब डॉलर से बढ़ा कर 2030 तक कम-से-कम नौ अरब डॉलर रकम खर्च करने की योजना बनायी है.’ हालांकि, विकसित देशों में मलेरिया की चुनाैती तकरीबन खत्म हो चुकी है, लेकिन एशियाई और अफ्रीकी देशों में इसका खतरा बरकरार है. इन देशों में सालाना लाखों लोग इसकी चपेट में आते हैं. इस बीच मलेरिया से जंग में वैश्विक स्तर पर हाल में तीन महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल हुई हैं.

मलेरिया का कारण

मलेरिया का प्रमुख कारण प्लाजमोडियम पारासाइट है. यह पारासाइट यानी परजीवी संक्रमित मादा एनोफेलिस मच्छरों के काटने से होता है, जिसे ‘मलेरिया वेक्टर्स’ कहा जाता है. एनोफेलिस मच्छरों की करीब 400 विविध प्रजातियां है, लेकिन पांच प्रमुख परजीवी प्रजातियों से इनसानों में मलेरिया फैलता है. प्लाजमोडियम फैल्सिपेरम और पी विवैक्स इनमें सबसे ज्यादा घातक परजीवी हैं.

मलेरिया उन्मूलन

मलेरिया उन्मूलन का तात्पर्य किसी खास निर्दिष्ट भौगोलिक इलाके में (जो आमतौर पर एक देश के दायरे तक होता है) होने वाले स्थानीय मच्छर-जनित मलेरिया ट्रांसमिशन को रोकते हुए इसके मामलों को शून्य तक लाने से है.

वर्ष 2000 में 106 में से 57 देशों ने वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली द्वारा तय किये गये लक्ष्यों के मुकाबले मलेरिया के मामलों में 75 फीसदी तक कामयाबी पायी थी. डब्ल्यूएचओ डायरेक्टर-जनरल ने बीते दशक में इन चार देशों को मलेरिया उन्मूलन का प्रमाण पत्र दिया है. संयुक्त अरब अमीरात (2007), मोरक्को (2010), तुर्कमेनिस्तान (2010) और आर्मेनिया (2011). वर्ष 2014 में 16 देशों में मलेरिया का एक भी मामला नहीं पाया गया. इसके अलावा, इस वर्ष 17 अन्य देशों में मलेरिया के मामलों की संख्या एक हजार से नीचे रही.

नहीं है कोई मलेरिया वैक्सीन

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर ने अब तक किसी भी मलेरिया वैक्सीन को लाइसेंस नहीं प्रदान किया है, जो इनसानों में परजीवियों से लड़ने में समर्थ हो. आरटीएस वैक्सीन एकमात्र ऐसी वैक्सीन है, जिसे पायलट प्रोजेक्ट के तहत सात अफ्रीकी देशों में ट्रायल की मंजूरी

दी गयी है.

भारत में मलेरिया नियंत्रण

1953 में नेशनल मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम लॉन्च किया गया.

1958 में नेशनल मलेरिया इरेडिकेशन प्रोग्राम लॉन्च किया गया.

1971 में शहरी मलेरिया स्कीम लॉन्च.

1976 में मलेरिया के सर्वाधिक मामले (64.6 लाख) पाये गये.

1982 में इसे 20 लाख तक लाने में मिली कामयाबी.

1995 में मलेरिया नियंत्रण के लिए मॉडिफाइड प्लान लागू किया गया.

2008 में विश्व बैंक की मदद से मच्छर-जनित बीमारियों को खत्म करने की

नयी योजना.

2016 में भारत में ‘मलेरिया उन्मूलन के लिए नेशनल फ्रेमवर्क 2016-2030’ लॉन्च किया गया.

दुनियाभर में मलेरिया का जोखिम

3.2 अरब लोगों पर दुनियाभर में बरकरार है मलेरिया का जोखिम, जो दुनिया की करीब आधी आबादी है.

21.4 करोड़ मामले सामने आये मलेरिया के वर्ष 2015 में.

4,38,000

लोगों की मृत्यु हुई मलेरिया के कारण वर्ष 2015 में.

60 फीसदी कमी आयी है वैश्विक स्तर पर मलेरिया से होनेवाली मृत्यु के मामलों में पिछले डेढ़ दशक के दौरान रक्षात्मक उपायों को लागू करने से.

89 फीसदी मलेरिया के मामले अब भी सब-सहारा अफ्रीकी देशों में पाये जाते हैं.

97 देशों और टेरिटरीज में मलेरिया का संक्रमण पाया गया वर्ष 2015 में. इसमें ज्यादातर अफ्रीकी, एशियाइ और लैटिन अमेरिकी देश

शामिल हैं.

संक्रमण से बचाने वाली नयी वैक्सीन!

अमेरिकी रक्षा विभाग की बायोमेडिकल लैबोरेटरी वॉल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट आॅफ रिसर्च (डब्ल्यूआरएआइआर) के शोधकर्ताअों ने हाल ही में प्लाज्मोडियम विवैक्स मलेरिया वैक्सीन का इनसानों पर परीक्षण किया है. ‘यूरेक एलर्ट डॉट ओआरजी’ के मुताबिक, मलेरिया के खतरनाक प्रारूप पी विवैक्स के संक्रमण से बचाव के लिए यह वैक्सीन कामयाब पायी गयी है. इससे मलेरिया से होनेवाली मृत्यु दर में कमी आयेगी. पी विवैक्स मलेरिया ज्यादा चुनौतीपूर्ण इसलिए है, क्योंकि ये बेहद शिथिल होते हैं और इनसान के शरीर के भीतर निष्क्रिय अवस्था में पड़े रहते हैं.

बड़ी चुनौती यह है कि शरीर में इसकी पहचान का कोई लक्षण नहीं मिल पाता है. आरंभिक संक्रमण के कई सप्ताह या माहभर के बाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं. डब्ल्यूआरएआइआर ने इस वैक्सीन को ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन के साथ मिल कर विकसित किया है. इसे पूरी तरह से विकसित करके कारोबारी मंजूरी हासिल करने के लिए ‘यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ को मंजूरी देने के लिए आवेदन किया गया है.

पहली वैक्सीन के परीक्षण की मंजूरी

दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन ‘आरटीएस’ के इनसानों पर परीक्षण के लिए यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी ने हाल ही में मंजूरी प्रदान कर दी है. अफ्रीका में मच्छरों से पैदा होनेवाली बीमारी के जोखिम से बच्चों को बचाने के लिए इस वैक्सीन को बनाने का लाइसेंस दिया जायेगा.

इस वैक्सीन का निर्माण ग्लेक्सो स्मिथक्लाइन और पाथ मलेरिया वैक्सीन इनिशिएटिव ने मिल कर किया है. यह वैक्सीन परजीवी जनित बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए इनसानों पर प्रयोग की जानेवाली पहली दवा होगी, जिससे प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों की जान बचायी जा सकेगी. इस वैक्सीन को विकसित करने की प्रक्रिया वर्ष 1987 से चल रही थी. इसे बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से भी काफी वित्तीय मदद दी गयी है.

इस वैक्सीन का विकास कोहेन जीएसके वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने किया है. हालांकि, विकसित किया गया वैक्सीन ‘आरटीएस’ फिलहाल मलेरिया के ‘प्लाजमोडियम फेल्सिपेरम’ स्वरूप से लड़ने में सक्षम है, लेकिन ‘पी वाइवेक्स’ जैसे मलेरिया के गंभीर प्रारूप के खिलाफ यह काम नहीं कर पायेगा. यदि यह पूरी तरह से सफल रहा, तो इनसानों में पारासाइट डिजीज के खिलाफ यह पहला वैक्सीन हो सकता है.

जेनेटिकली म्यूटेंट मच्छर लड़ेंगे मलेरिया मच्छरों से

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के इरविन और सैन डिएगो स्थित कैंपस में शोधकर्ताओं ने हाल ही में म्यूटेंट बग्स यानी उत्परिवर्ती कीटों की ब्रीडिंग की है. इससे मच्छरों की आबादी को नियंत्रित किया जायेगा और मलेरिया पर काबू पाने की कोशिश होगी. नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में पेश की गयी आरंभिक सफलता रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि नये कीटों के डीएनए में व्यापक बदलाव किया गया है. ‘न्यूजवीक’ के मुताबिक, मोलेकुलर बायोलॉजिस्ट और इस शोध रिपोर्ट के सह-लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंथोनी जेम्स का कहना है कि जीन्स में बदलाव करके जो मच्छर पैदा किये गये हैं, वह इस लिहाज से आखिरी स्टेप नहीं है और इसमें अभी और बदलाव किये जायेंगे.

लेकिन इतना तो हम जान चुके हैं कि इस तकनीक के भीतर बड़ी क्षमता मौजूद है, जिसके सहारे हम मलेरिया मच्छरों का सफाया कर सकते हैं. भारतीय मच्छरों की प्रजाति एनोफील्स स्टेफेंसी मच्छरों के अंडों को भी इस नये तरीके से परीक्षण किया गया है. एनोफील्स स्टेफेंसी मच्छरों की वह प्रजाति है, जो भारत समेत समूचे मध्य एशिया में मलेरिया का वाहक है. ‘स्मिथसोनियन डॉट कॉम’ के मुताबिक, इंपीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक भी इसी तरह के एक प्रोजेक्ट में जुटे हैं. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जतायी है कि इसके दुष्परिणाम भी सामने आ सकते हैं, जिससे प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी पैदा होने का खतरा बरकरार रहेगा.

भारत में मलेरिया

भारत की करीब 95 फीसदी आबादी मलेरिया प्रभावित इलाकों में रह रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का सुझाव है कि मच्छरों की पैदाइश से लेकर उनके विकसित होने तक के सभी चरणों पर उनके खात्मे की व्यवस्था की जाये और आम आदमी को इस मुहिम में शामिल किया जाये. अब तक देश ने इस दिशा में उल्लेखनीय कामयाबी हासिल की है, लेकिन मलेरिया से होने वाली मौतों को पूरी तरह से नहीं रोका जा सका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में सालाना करीब 16 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं और करीब एक हजार लोगों की इस बीमारी से मौत हो जाती है.

ग्लोबल टेक्निकल स्ट्रेटजी फॉर मलेरिया 2016-2030

वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली ने पिछले वर्ष ‘ग्लोबल टेक्निकल स्ट्रेटजी फॉर मलेरिया 2016-2030’ का मसौदा तैयार किया है. इसके जरिये मलेरिया- प्रभावित देशों को तकनीकी फ्रेमवर्क मुहैया कराया जायेगा. इसमें इन प्रमुख लक्ष्यों को हासिल करने पर जोर दिया जायेगा :

– 2030 तक मलेरिया के मामलों में कम से कम 90 फीसदी तक कमी लाना.

– 2030 तक मलेरिया से मृत्यु के मामलों में कम से कम 90 फीसदी तक कमी लाना.

– 2030 तक कम से कम 35 देशों में पूरी तरह से मलेरिया को खत्म करना.

मलेरिया से निबटने के लिए इस खास रणनीति का मसौदा तैयार करने के लिए पिछले दो वर्षों के दौरान व्यापक परामर्श लिये गये. इसमें 70 सदस्य देशों के 400 से ज्यादा संबंधित विशेषज्ञों ने हस्सिा लिया. मुख्य रूप से यह तीन स्तंभों पर आधारित होगा :

– मलेरिया प्रीवेंशन, डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट तक वैश्विक पहुंच सुनश्चिति करना.

– मलेरिया-फ्री स्टेटस हासिल करने के लिए तमाम उपायों पर जोर देना.

– मलेरिया सर्विलांस को प्राथमिकता देना.

(स्रोत : डब्ल्यूएचओ) (प्रस्तुति : कन्हैया झा)

एंटीबायोटिक ले रहे हैं तो रेड लाइन देखे

आमतौर पर सामान्य बुखार या खांसी-जुकाम की दशा में कई लोग बिना डॉक्टर से सलाह लिये एंटीबायोटिक की कुछ खुराक ले लेते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसे लोगों को सावधानी से इसका इस्तेमाल करने की सलाह दी है. हाल ही में दिल्ली में आयोजित ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस’ के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इसका लोगो ‘यूज विद केयर’ जारी किया है. एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण इसके अनेक गंभीर नतीजे सामने आये हैं, जिस कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है.

इस अभियान का मकसद केवल डॉक्टर की सलाह से ही एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करने और उसकी खुराक की पूरी अवधि के बारे में लोगों को जागरूक करना है. इसके लिए उन एंटीबायोटिक दवाओं पर ‘लाल लकीर’ खींची जा रही है, जिनका इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के वर्जित किया गया है.

हालांकि, बाजार में अनेक अन्य दवाओं समेत कई एंटीबायोटिक ऐसे हैं, जिन पर ‘लाल लकीर’ खींची है, लेकिन ज्यादातर मरीज इसकी अनदेखी करते हैं. पिछले वर्ष एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के संदर्भ में एक वैश्विक रिपोर्ट जारी की गयी थी, जिसमें कहा गया कि भारत में वर्ष 2010 में 13 अरब यूनिट एंटीबायोटिक दवा की खपत हुई.

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