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ऐसे बनती और गिरती रही हैं सरकारें

झारखंड में पिछले 14 वर्षो में सरकार बनाने-बिगाड़ने का ही खेल चलता रहा. अराजक राजनीति हावी रही. चार से पांच लोगों (विधायकों) के कुनबे ने अपने हिसाब से सरकार बनाया और गिराया. झारखंड की सत्ता को चंद निर्दलीयों ने अपने हिसाब से हांका. 10 दिन में सरकार गिरी, तो निर्दलीय भी मुख्यमंत्री बने. पहले मुख्यमंत्री […]

झारखंड में पिछले 14 वर्षो में सरकार बनाने-बिगाड़ने का ही खेल चलता रहा. अराजक राजनीति हावी रही. चार से पांच लोगों (विधायकों) के कुनबे ने अपने हिसाब से सरकार बनाया और गिराया. झारखंड की सत्ता को चंद निर्दलीयों ने अपने हिसाब से हांका. 10 दिन में सरकार गिरी, तो निर्दलीय भी मुख्यमंत्री बने. पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को 28 महीने में कुरसी से हटाया गया. झारखंड की राजनीति में कदम-कदम पर मोल-भाव हुए. झारखंड में एक -दो राजनीतिक दल को छोड़ दें, तो पूरी जमात सत्ता हासिल करने के लिए परेशान रही. भाजपा, कांग्रेस, झामुमो, आजसू, राजद, जदयू बारी-बारी से सत्ता में रहे. विपक्ष निष्प्रभावी रहा. झारखंड में सरकार बनने और फिर गिरने के घटनाक्रम पर आधारित आनंद मोहन की यह रिपोर्ट.

28 महीने में ही उठापटक और हो गयी बगावत

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15 नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पहली सरकार बनी. सरकार ठीक-ठाक चल रही थी. लेकिन 28 महीने बाद ही पॉलिटिक्ल ड्रामा शुरू हो गया. 2002 में ही इस एनडीए सरकार के दो सहयोगी दलों जदयू व समता पार्टी के विधायकों ने बगावत कर दी. तब के विधायक लालचंद महतो, मधु सिंह, स्व रमेश सिंह मुंडा व जोबा मांझी सहित अन्य इसमें शामिल थे. विधानसभा में ये लोग यूपीए के साथ हो लिये. राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष जदयू के इंदरसिंह नामधारी को बतौर मुख्यमंत्री पेश किया गया. इसके बाद सरकार मेरी या तेरी को लेकर खूब ड्रामा हुआ. विधायकों के बीच खेमाबंदी शुरू हो गयी. विधायक तौले जाने लगे. यूपीए अपने विधायकों सहित एनडीए के असंतुष्टों को बस (कृष्णारथ) से बुंडू ले गया था. राजद विधायक संजय यादव चालक बने थे व स्टीफन मरांडी कंडक्टर. 16 मार्च 03 को बुंडू के लाह कोठी में ताश (जोबा मांझी के साथ), चेस व लूडो (अन्नपूर्णा देवी के साथ) खेला गया. पिकनिक हुई. बाबूलाल विरोध को भांपते हुए एनडीए को नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा. बाबूलाल गये, अर्जुन मुंडा सीएम बने.

विधायकों को करायी जयपुर की सैर

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अर्जुन मुंडा राज्य के मुख्यमंत्री बने. कई दिनों तक गतिरोध चलता रहा. मुंडा सरकार चलती रही. फिर 2005 में झारखंड का पहला विधानसभा चुनाव हुआ. जनादेश किसी के पक्ष में नहीं था. स्थिति स्पष्ट नहीं थी. यूपीए ने सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दी. तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया. शिबू के पास बहुमत नहीं था. एनडीए ने राज्यपाल के इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए अपने विधायकों की दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में परेड (17 मार्च 05) करा दी. मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया. कोर्ट के आदेश पर यूपीए को बहुमत साबित करने को कहा गया. ऐन वक्त पर कमलेश सिंह व जोबा ने यूपीए को धोखा दे दिया. कमलेश बीमारी के बहाने अस्पताल में भरती हो गये. वहीं जोबा की गाड़ी रास्ते में खराब हो गयी. पासा पलटता देख 10 दिन मुख्यमंत्री रहे शिबू ने विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इस तरह शिबू सोरेन महज दस दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे. इससे पहले राजग ने इस डर से कि उनके विधायक पलटी न मार दें, उन्हें जयपुर की सैर करायी थी. उस यात्र में विधायक लगभग नजरबंद थे. एनडीए के विधायक इधर-उधर ना करें, इसके लिए सब पर नजर रखी जा रही थी. भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनाने में निर्दलीय विधायकों ने भूमिका निभायी. निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में करने के लिए सब तिकड़म चले गये. देश भर में राजनीति की इस शैली की आलोचना हुई थी. अंतत: राज्य में फिर से अर्जुन मुंडा की सरकार बनी.

निर्दलीय ने पलटी मारी कांग्रेस ने दी हवा
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अर्जुन मुंडा की सरकार में मधु कोड़ा मंत्री हुआ करते थे. मधु कोड़ा भाजपा में थे. 2005 में भाजपा ने उनकी विधानसभा चुनाव की टिकट काट ली, इस पर वह निर्दलीय चुनाव लड़े थे. कोड़ा को मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा व इसी सरकार के गृह मंत्री सुदेश महतो की कार्यशैली नापसंद थी. यूपीए ने यह सब भांप लिया. तरीके से जाल बिछाया. इसी बीच कोड़ा दिल्ली चले गये. यूपीए से अपने मन की बात कही. तीन निर्दलीय विधायकों एनोस, कमलेश व हरिनारायण को उन्होंने अपने पाले में लिया. एनोस व हरिनारायण तो चुपके-चुपके दिल्ली पहुंच गये, लेकिन कमलेश जमशेदपुर में धरा गये. गजब का हंगामा हुआ. बाद में कोड़ा सहित इन तीनों ने मुंडा सरकार से इस्तीफा (5 सितंबर 06) दे दिया. निर्दलीय विधायकों ने अर्जुन मुंडा सरकार को पानी पीला दिया. इन रण बांकुरों सहित यूपीए के विधायकों को देश के अलग-अलग हिस्सों की सैर करायी गयी. सैर-सपाटे के बाद सभी विशेष विमान से रांची पहुंचे. अपनी सरकार को अल्पमत में पाकर अर्जुन मुंडा ने भी राज्यपाल को इस्तीफा (14 सितंबर 06) सौंप दिया. अब मधु कोड़ा के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बन गयी. कांग्रेस, राजद के समर्थन से राज्य में पहली बार निर्दलीय मुख्यमंत्री की सरकार बनी.

केंद्र सरकार बचाने का ईनाम शिबू को मिला
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कोड़ा सरकार अपने अंदाज में चलती रही. इस सरकार में निर्दलीय विधायकों का दबदबा था. कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी. कांग्रेस का सरकार के साथ हंसना व मुंह फुलाना दोनों चल रहा था. गजब के दबाव की राजनीति चल रही थी. केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार पर संकट था. झामुमो ने केंद्र सरकार की मदद की. शिबू सोरेन केंद्र सरकार को बचाने का ईनाम चाहते थे. कोड़ा सरकार के दो साल होने से एक माह पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया. निर्दलीयों ने कोड़ा के पक्ष में पैतरेंबाजी की. सरकार गिराने की धमकी भी दी गयी, लेकिन कांग्रेस व राजद को शिबू के सामने झुकना पड़ा. तब कोड़ा ने बेमन से सीएम की कुर्सी छोड़ दी. शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. सभी निर्दलीय विधायकों को भी मंत्री बनाया गया. इधर चार माह बाद ही शिबू तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गये. यह सीट जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के कारण खाली हुई थी. इसके बाद 19 जनवरी 2009 को राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा. राज्यपाल थे सैयद सिब्ते रजी.

झामुमो ने बनाया दबाव भाजपा के सहयोग से बनी सरकार

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राज्यपाल के शंकरनारायणन के कार्यकाल के दौरान भी राष्ट्रपति शासन लगा था. उस दौरान हुए कई कार्यो के चलते आज भी उसकी चर्चा होती है. उन्होंने आम लोगों के लिए गवर्नेस के क्षेत्र में बेहतर कार्य किये. इसी बीच 2009 का विधानसभा चुनाव हुआ. 23 दिसंबर 09 को जब परिणाम की घोषणा हुई, तो राज्य की जनता फिर खुद को ठगा महसूस करने लगी. विधानसभा फिर त्रिशंकु हो गयी थी. फिर से जोड़-तोड़ का खेल शुरू हुआ. आजसू के सहयोग से राज्य में भाजपा-झामुमो की सरकार (30 दिसंबर 09) बनी. लोक सभा के सांसद शिबू मुख्यमंत्री बने.

शिबू ने यूपीए को कर दिया वोट गिर गयी सरकार

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सरकार चल रही थी. शिबू को किसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना था. इसी बीच शिबू सोरेन ने लोक सभा में कट मोशन के दौरान यूपीए को वोट दे दिया. इधर झारखंड में शिबू सरकार के सहयोगी दल भाजपा को यह नागवार गुजरा. उसने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद एक जून 10 को दोबारा राष्ट्रपति शासन लगा. करीब तीन माह बाद भाजपा व झामुमो फिर से एक मंच पर आये. झामुमो के अनुसार 28-28 माह सरकार में रहने की शर्त पर सरकार बनी. पहले भाजपा को मौका दिया गया. अर्जुन मुंडा राज्य के आठवें मुख्यमंत्री बने. फिर अपनी बारी को लेकर झामुमो ने सरकार गिरा दिया.

झामुमो को कांग्रेस ने गले लगाया कांग्रेस भी शामिल हुई

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भाजपा सरकार के खिलाफ झामुमो की बगावत को कांग्रेस हवा देती रही. झामुमो-कांग्रेस में बात दिल्ली से लेकर रांची तक होती रही. राष्ट्रपति शासन लगा. काफी नखरे के बाद कांग्रेस तैयार हुई. प्रदेश में कांग्रेस के नेता सरकार बनाने के लिए बेचैन थे. हेमंत सोरेन को सीएम बनाने की शर्त पर झामुमो व कांग्रेस का गंठबंधन हुआ. हेमंत सोरेन की सरकार बनी. इस सरकार में राजद ने भी शामिल होने का दबाव बनाया. राजद भी सरकार में शामिल हुआ. इस बार थोड़ी अलग राजनीति हुई. पहली बार आजसू सरकार में शामिल नहीं था. निर्दलीय बिना शर्त सरकार में घुस गये. कांग्रेस ने किसी निर्दलीय को मंत्री नहीं बनाया. कांग्रेस और झामुमो ने लोकसभा चुनाव तो मिल कर लड़ा, लेकिन गंठबंधन विधानसभा चुनाव में टूट गया. वर्तमान विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. सरकार के नाम पर बनी नजदीकियां, चुनाव आते-आते ही फासले में तब्दील हो गयी.

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