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बिस्मिल की विरासत कौन संभाले

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां-2 हम जंग-ए-आजादी के मशहूर नायकों को तो जानते हैं, मगर भारत के स्वाधीनता संग्राम में हजारों अनाम और अल्पज्ञात साहसी लोगों ने भी अपनी शहादत दी है. उनके जीवन की आहूति के वजह से ही भारत का रूप-रंग निखरा है. स्वाधीनता संग्राम के नायकों की ऐसी अनेक स्मृतियां […]

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां-2

हम जंग-ए-आजादी के मशहूर नायकों को तो जानते हैं, मगर भारत के स्वाधीनता संग्राम में हजारों अनाम और अल्पज्ञात साहसी लोगों ने भी अपनी शहादत दी है. उनके जीवन की आहूति के वजह से ही भारत का रूप-रंग निखरा है. स्वाधीनता संग्राम के नायकों की ऐसी अनेक स्मृतियां है, जिन्हें उनके वंशजों ने संजो रखी हैं.

दुखद यह है कि बिस्मिल जैसे अमर सेनानी की विरासत संभालने वाला भी कोई अपना नहीं है. ऐसे में बिस्मिल के शब्दों में ही कह सकते हैं..शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरनेवालों का यही बाकी निशां होगा.. आज पढ़ें इसकी दूसरी कड़ी.

।। चंद्रशेखर आजाद ।।

अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के भाई के परिवार के लोग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहते हैं. दशकों पहले ये लोग पैतृक गांव (उन्नाव जिले में स्थित) छोड़ कर लखनऊ में बस गये थे. ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी में हैं. आजाद के एक परपोता हैं सुजीत कुमार तिवारी, जो पिछले कई दशकों से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संस्था चलाते हैं.

चंद्रशेखर आजाद काकोरी कांड के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का काम फिर से आगे बढ़ाने वालों में से एक थे. सुजीत कुमार तिवारी के पुत्र अमित आजाद बताते हैं कि ‘हमारा संगठन गैरराजनीतिक है. हमलोग हर उस मुद्दे पर काम करते हैं, जो हिंदुस्तान को बेहतर बनाये. चंद्रशेखर आजाद जैसी हस्ती को भुलाया नहीं जा सकता है. आज की पीढ़ी को उनके बारे में और भी ज्यादा जानकारी देने की जरूरत है.

उन्होंने जब घर छोड़ा, तो खुद को राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया. उनकी स्मृति निस्तेज न हो, ऐसी कोशिश देश को करनी चाहिए.’ आजाद के परिवार के लोग चाहते हैं कि आजाद और उनके साथियों की स्मृति में दिल्ली में एक संग्रहालय बने. अमित बताते हैं कि ‘एक बार नरेंद्र मोदी ने शहीदों पर बातचीत के लिए गुजरात आमंत्रित किया था. हमें विश्वास है कि प्रधानमंत्री के रूप में वह इस मुद्दे पर काम को आगे बढ़ायेंगे.’

।। राम प्रसाद बिस्मिल ।।

विडंबना है कि जिनके पसंदीदा गीत ‘सरफरोशी की तमन्ना और रंग दे बसंती चोला’ आज भी धमनियों में रक्त का प्रवाह बढ़ा देते हैं, उनका कोई वारिस ऐसा नहीं है जो उनकी विरासत की हिफाजत कर सके.

उनका एक भाई था, जो जवानी में ही बीमारी के कारण मौत का शिकार हो गया. उनके चचेरे कुटुंब के वंशज मुरैना के पास अपने पुरखों के गांव में रहते हैं और खेती-बाड़ी के काम में लगे हैं. उनके दूर के एक रिश्तेदार राजबहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग में लाइन हेल्पर के रूप में काम करते हैं.

राम प्रसाद बिस्मिल की स्मृति में होनेवाले कार्यक्रमों में कभी-कभार हिस्सा लेते हैं. वह कहते हैं, ‘ उनके वंशज के रूप में हमें कोई भी मदद सरकार से नहीं मिलती है. ईमानदारी से कहूं तो, उनकी स्मृति को आगे बढ़ाने के लिए हमने कोई काम भी नहीं किया है.’

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