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इंडियन स्‍वाद : सस्ता स्वादिष्ट नूडल्स

पुष्पेश पंत आज से कोई तीन दशक पहले हमारे देश में एक धमाकेदार आमद हुई थी, दो मिनट में झटपट तैयार होनेवाले जादुई नूडल्स की. इसका एक पैकेट शुरूआती दिनों में दो रूपये का बिकता था और उसी के भीतर इन नूडलों को स्वादिष्ट बनाने के लिए मसाले के पाउडर की पुड़िया भी रखी रहती […]

पुष्पेश पंत
आज से कोई तीन दशक पहले हमारे देश में एक धमाकेदार आमद हुई थी, दो मिनट में झटपट तैयार होनेवाले जादुई नूडल्स की. इसका एक पैकेट शुरूआती दिनों में दो रूपये का बिकता था और उसी के भीतर इन नूडलों को स्वादिष्ट बनाने के लिए मसाले के पाउडर की पुड़िया भी रखी रहती थी. तब तक नूडल्स से वही लोग परिचित थे, जो शहरों में रहते थे और चीनी खान-पान का शौक रखते थे. बहरहाल तब से अब तक नूडल्स एक बहुत लंबा सफर तय कर चुके हैं.
महानगरों में ही नहीं, कस्बों और देहात के मेलों में भी ठेलों पर कढ़ाई जमा बच्चों-बूढ़ों को नूडल्स बेचनेवाले उद्यमी जगह-जगह नजर आते हैं. यह नूडल चाऊमीन के नाम से जाना जाता है और बड़ा ही गरीब पर्वर भोजन है. हिंदुस्तानियों की जुबान पर मिर्च-मसालों का जायका चढ़ा हुआ है, उसको तो यह बंदगी देते ही हैं, कम खर्च में पेट भी बखूबी भरा जा सकता है. शादी-ब्याह की दावतों में बच्चों और चटरों की चाहत पूरी करने के लिए अलग से चाऊमीन का काउंटर भी लगभग हर जगह मौजूद रहता है.
रही बात तुरत-फुरत तैयार होनेवाले जादुई नूडलों की तो, ये भी निर्जन पहाड़ियों की चोटियों पर या पर्यटकों द्वारा दर्शनीय समझे जानेवाले स्थलों पर ‘मैगी प्वाइंट’ नामक खोखों और रेडियों पर नजर आते हैं. इस पैकेटबंद फैक्ट्री निर्मित नूडल की लोकप्रियता कुछ ऐसी है कि विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती देनेवाले बाबा रामदेव ने अपने पतंजलि औद्योगिक इकाई में आटे के नूडलों का निर्माण आरंभ कर दिया है. नेपाल में बरसों से वाई-वाई ब्रांड के नूडल बन रहे हैं और इसका कारोबार करोड़ों में है. आप रेल में यात्रा करें या विमान में प्लास्टिक के बड़े-बड़े कपों में खौलता पानी डाल तत्काल तैयार किये जानेवाले रैमन (जापानी) नूडल भी आजकल बड़े चाव से खाये जाते हैं. इनके शाकाहारी और सामिष दोनों प्रकार सुलभ हैं.
सोचने लायक बात यह है कि नूडल के जायके में ऐसा क्या होता है, जो एक बार चखने के बाद लागी छूटे ना का नारा बुलंद करने लगता है? सड़कछाप भोजनालयों से पांच से सात तारांकित महंगे होटलों तक कुछ चीजें सर्वहारा के चाऊमीन और रईसों के खानदानी नूडलों में में समान रहती हैं. इनमें सोया सॉस, हरा और लाल चिली सॉस लाल मिर्च की तेल वाली चटनी, सिरके में भिगोई कतरी हरी मिर्चे समान रहती है.
गुणवत्ता में फर्क हो सकता है, लेकिन नूडल्स को चौड़ी-चपटी कढ़ाई में तेज आंच पर स्टरफ्राई करने का कौशल भी एक-सा दिखलाई देता है. कुछ समय पहले तक लगभग सभी जगह आजीनोमोतो नामक स्वादवर्धक मोनो सोडियम गूल्टामेड नामक रासायनिक पदार्थ का उपयोग होता था. आज इसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझकर निषिद्ध कर दिया गया है.
नूडल्स को संपूर्ण, संतुलित आहर बनाने के लिए डाली जानेवाली चीजों में बंदगोभी, शिमला मिर्च, नाममात्र का टमाटर ही ज्यादातर नजर आते हैं. अगर शुद्ध शाकाहारी न हो, तो नाममात्र के लिए ही सही चिकन या फैंटकर डाले गये अंडे की भुजिया जैसा भी कुछ नजर आता है.
जिन हिंदुस्तानियों का काम चीनी सॉस से नहीं चलता, वे टमाटर कैचअप का बेहिचक इस्तेमाल करते हैं. संक्षेप में, भारतीय चाऊमीन का या नूडल्स का दूर-दराज का रिश्ता भी चीन, जापान, हांगकांग या सिंगापुर में खाये जानेवाले नूडलों से नहीं है. लोगों को यह भी याद नहीं रह गया है कि भारत के तिब्बत से सटे हिमालयी इलाके में लद्दाख और अरूणाचल में पारंपरिक रूप से जो नूडल खाये जाते रहे हैं, उसका जायका ऊपर वर्णित जायके से बिल्कुल भिन्न होता है.

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