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Friday, March 29, 2024

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CAB: असम समझौता और इनर लाइन परमिट क्या है

<p>केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए सोमवार को लोकसभा में कहा था कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) में शामिल किया जाएगा.</p><p>गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ”हम मणिपुर को इनर लाइन परमिट सिस्टम में शामिल कर रहे हैं. एक बड़ा मुद्दा अब सुलझा लिया गया है. […]

<p>केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए सोमवार को लोकसभा में कहा था कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) में शामिल किया जाएगा.</p><p>गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ”हम मणिपुर को इनर लाइन परमिट सिस्टम में शामिल कर रहे हैं. एक बड़ा मुद्दा अब सुलझा लिया गया है. लंबे समय से की जा रही इस मांग को पूरा करने के लिए मैं मणिपुर के लोगों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करता हूं.”</p><p>विधेयक पर चर्चा करते हुए अमित शाह ने कहा था, ”हम पूर्वोत्तर के लोगों की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”</p><p><strong>इनर लाइन परमिट (आईएलपी)</strong><strong>है क्या</strong><strong>?</strong></p><p>इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज़ है, जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है, ताकि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें.</p><p>भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए इनर लाइन परमिट कोई नया शब्द नहीं है. अंग्रेज़ों के शासन काल में सुरक्षा उपायों और स्थानीय जातीय समूहों के संरक्षण के लिए वर्ष 1873 के रेग्यूलेशन में इसका प्रावधान किया गया था.</p><figure> <img alt="साल 1891 में मणिपुर में हुए विद्रोह का चित्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/EBB1/production/_110073306_gettyimages-463929791.jpg" height="3797" width="3898" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>साल 1891 में मणिपुर में हुए विद्रोह का चित्र</figcaption> </figure><p>औपनिवेशिक भारत में, वर्ष 1873 के बंगाल-ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन एक्ट में ब्रितानी हितों को ध्यान में रखकर ये कदम उठाया गया था जिसे आज़ादी के बाद भारत सरकार ने कुछ बदलावों के साथ कायम रखा था.</p><p>फिलहाल पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में इनर लाइन परमिट लागू नहीं होता है. इनमें असम, त्रिपुरा और मेघालय शामिल हैं. हालांकि पूर्वोत्तर के राज्यों में इसकी मांग के समर्थन में आवाज़ें उठती रही हैं.</p><p>नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन की ये मांग रही है कि पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू की जाए.</p><p>पिछले ही साल मणिपुर में इस आशय का एक विधेयक पारित किया गया था जिसमें ‘गैर-मणिपुरी’ और ‘बाहरी’ लोगों पर राज्य में प्रवेश के लिए कड़े नियमों की बात कही गई थी.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-50724277?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अमरीकी आयोग ने अमित शाह पर पाबंदी की मांग की</a></p><p>लेकिन कौन मणिपुरी है कौन नहीं, इसे लेकर सहमति बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी.</p><p>वर्ष 1971 के मुक्ति-संग्राम के बाद बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भागकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचे थे. उसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की मांग को बल मिला था.</p><p>नागरिकता संशोधन विधेयक की पृष्ठभूमि में इनर लाइन परमिट के साथ भारतीय संविधान की छठवी अनुसूची का भी ज़िक्र हुआ है.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50723389?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता संशोधन विधेयक: क्या हैं राज्यसभा के समीकरण</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50713319?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता संशोधन विधेयक क्या संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है?</a></p><p><strong>भारतीय संविधान की छठवी अनुसूची में क्या है</strong><strong>?</strong></p><p>भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के इलाकों को नागरिकता संशोधन विधेयक में छूट दी गई है.</p><p>छठीं अनूसूची में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्य हैं जहां संविधान के मुताबिक स्वायत्त ज़िला परिषदें हैं जो स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है.</p><p>भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 में इसका प्रावधान किया गया है. संविधान सभा ने 1949 में इसके ज़रिए स्वायत्त ज़िला परिषदों का गठन करके राज्य विधानसभाओं को संबंधित अधिकार प्रदान किए थे.</p><p>छठीं अनूसूची में इसके अलावा क्षेत्रीय परिषदों का भी उल्लेख किया गया है. इन सभी का उद्देश्य स्थानीय आदिवासियों की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना है.</p><figure> <img alt="पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षाकर्मी" src="https://c.files.bbci.co.uk/0273/production/_110072600_gettyimages-86152858.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षाकर्मी</figcaption> </figure><p>छठीं अनूसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के राज्यों को नागरिकता संशोधन विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है.</p><p>इसका मतलब ये हुआ कि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई यानी गैर-मुसलमान शरणार्थी भारत की नागरिकता हासिल करके भी असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में किसी तरह की ज़मीन या क़ारोबारी अधिकार हासिल नहीं कर पाएंगे. </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50713677?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता संशोधन बिल: असम क्यों उबल रहा है</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50707185?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी</a></p><h1>असम समझौता</h1><p>नागरिकता संशोधन विधेयक के संदर्भ में वर्ष 1985 के असम समझौते का भी उल्लेख हो रहा है.</p><p>असम में ये कहकर नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया जा रहा है कि इससे असम समझौते का उल्लंघन होता है. असम समझौता राज्य के लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सुरक्षा प्रदान करता है.</p><p>ये समझौता 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम मूवमेंट के नेताओं के बीच हुआ था.</p><p>समझौते से पहले असम में छह वर्ष तक विरोध प्रदर्शन होते रहे. असम के लोग अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने की मांग कर रहे थे. इस मुहिम की शुरुआत साल 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने की थी.</p><p><strong>कट-ऑफ़ डेट पर विरोध</strong></p><p>असम समझौते के मुताबिक प्रवासियों को वैधता प्रदान करने की तारीख़ 25 मार्च 1971 है, लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक में इसे 31 दिसंबर 2014 माना गया है.</p><p>असम में सारा विरोध इसी नई कट-ऑफ़ डेट को लेकर है. नागरिकता संशोधन विधेयक में नई कट-ऑफ़ डेट की वजह से उन लोगों के लिए भी मार्ग प्रशस्त हो जाएगा जो 31 दिसंबर 2014 से पहले असम में दाख़िल हुए थे.</p><figure> <img alt="असम में विरोध प्रदर्शन" src="https://c.files.bbci.co.uk/1251D/production/_110073057_aaaaaaaa.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>इससे उन लोगों को भी असम की नागरिकता मिल सकेगी जिनके नाम एनआरसी प्रक्रिया के दौरान बाहर कर दिए गए थे.</p><p>लेकिन असम समझौते के मुताबिक, उन हिंदू और मुसलमानों को वापस भेजने की बात कही गई थी जो असम में 25 मार्च 1971 के बाद दाख़िल हुए थे. </p><p>इस विरोधाभास की वजह से असम में आबादी का एक बड़ा हिस्सा नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहा है.</p><p>नागरिकता संशोधन विधेयक 9 दिसंबर को लोकसभा में पारित हो चुका है जिसे अब 11 दिसंबर को राज्यसभा में मंज़ूरी के लिए पेश किया जाएगा.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a 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