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RSS मुख्यालय में मोहन भागवत से मिलने और विवाद पर बोले जर्मनी के राजदूत वॉल्टर

भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर जे लिंडनर ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाक़ात पर उठे विवाद के बाद कहा है कि वो वहां आरएसएस के बारे में जानने के लिए गए थे. द हिंदू अख़बार को दिए साक्षात्कार में लिंडनर ने कहा है, "मैं अपने आप को इस […]

भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर जे लिंडनर ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाक़ात पर उठे विवाद के बाद कहा है कि वो वहां आरएसएस के बारे में जानने के लिए गए थे.

द हिंदू अख़बार को दिए साक्षात्कार में लिंडनर ने कहा है, "मैं अपने आप को इस संस्था के बारे में शिक्षित करने के लिए वहां गया था."

उन्होंने कहा, "मैंने इसके बारे में बहुत नकारात्मक और बहुत सकारात्मक लेख पढ़े हैं. उसके सामाजिक कार्य से लेकर, फासीवाद से जुड़े होने के आरोपों तक और मैं अपनी स्वयं की राय बनाना चाहता था. मैंने श्री भागवत से कई सवाल भी पूछे."

भारत में रहने वाले राजनयिकों में से बहुत कम ने ही आरएसएस के साथ सार्वजनिक तौर पर संवाद किया है. ऐसे में लिंडनर के आरएसएस मुख्यालय जाने को बहुत से लोगों ने असामान्य भी माना है.

उनकी यात्रा के बाद एक ऑनलाइन अभियान शुरू करके उनका इस्तीफ़ा तक मांग लिया गया है. ये अभियान दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक पीटर फ्रेडरिक ने शुरू किया है.

इस अभियान को लगभग एक हज़ार लोग समर्थन दे चुके हैं.

लिंडनर ने 17 जुलाई को आरएसएस मुख्यालय में भागवत के साथ मुलाक़ात की तस्वीरें ट्विटर पर साझा की थीं.

ट्वीट में लिंडनर ने लिखा था, "नागपुर में आरएसएस मुख्यालय की यात्रा की और सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ लंबी वार्ता की. 1925 में स्थापित ये संगठन दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है- हालांकि अपने पूरे इतिहास में वो निर्विवाद नहीं माना रहा है."

ऑनलाइन कैंपेन में कहा गया है कि लिंडनर की भेंट यात्रा आरएसएस की विचारधारा, जो फासीवादी आंदोलनों से प्रभावित है, को ‘स्वीकार’ करती है.

ऑनलाइन पिटिशन में कहा गया है, "जर्मनी को किसी भी रूप में फासीवाद के प्रति सहिष्णुता नहीं दिखना चाहिए. ख़ासकर आरएसएस जैसे फासीवादी समूहों के प्रति जो नाजी जर्मनी और अन्य फासीवादी अभियानों से प्रेरणा लेते रहे हैं."

ऑनलाइन अभियान चलाने वालों ने कहा है कि इस मामले में जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल और विदेश मंत्री हीको मास को हस्तक्षेप करना चाहिए.

लिंडनर की सफ़ाई पर सवाल उठाते हुए पीटर फ्रेडरिक ने एक ट्वीट में लिखा, "क्या आपको वो एक ऐसे व्यक्ति दिख रहे हैं जो अपने आप को शिक्षित कर रहे हैं या फिर ऐसे व्यक्ति जिन्होंने अपना मन बना लिया है. राजदूत लिंडनर आरएसएस के सह-संस्थापक हेडगेवर को सम्मान दे रहे हैं. वॉल्टर लिंडनर को फासीवाद के आरोपों की जानकारी है लेकिन इसके बावजूद जर्मन राजनयिक ने नाज़ियों से प्रभावित आरएसएस के संस्थापकों को सम्मान दिया."

https://twitter.com/FriedrichPieter/status/1152679982575038467

लिंडनर नागपुर में जर्मनी के वित्तीय सहयोग से बन रही मेट्रो परियोजना को देखने गए थे. भागवत से मुलाक़ात के अलावा उन्होंने आरएसएस के पहले सरसंघचालक केबी हेडगेवर के पैतृक घर का दौरा भी किया.

एक ट्वीट में आरएसएस की ओर से कहा गया, "भारत में जर्मनी के राजदूत श्री वाल्टर जे लिंडनर ने आज नागपुर में सरसंघचालक मोहन जी भागवत से भेंट की. उन्होंने डॉक्टर हेडगेवर के पैतृक निवास भी देखा और स्मृति मंदिर में श्रद्धासुमन अर्पित किए."

लिंडनर की यात्रा को लेकर ट्विटर पर भी कई लोगों ने आलोचना की है. लेखिका और दक्षिण एशिया इतिहास की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ऑड्री ट्रश्की ने ट्विटर पर लिखा, "मैं राजदूत लिंडनर की अनैतिकता और नैतिक ग़ैरज़िम्मेदारी की गहराई देखकर अचंभित हूं. बीसवीं सदी के पहले पचास सालों में आरएसएस को नफ़रत का पाठ पढ़ाना भारत में जर्मनी के काली विरासत का हिस्सा है. कम से कम अब तो वह आरएसएस से दूर रह सकता है."

https://twitter.com/AudreyTruschke/status/1152272048007372801

एक और ट्वीट में उन्होंने कहा, "चांसलर मर्केल ने इलहाम ओमर और अन्य महिला कांग्रेस सांसदों पर राष्ट्रपति ट्रंप की नस्लवादी और ख़तरनाक टिप्पणी की आलोचना की है. लेकिन उन्हें अपने ही राजदूत के ऐसे संगठन के पास जाने से कोई आपत्ति नहीं है जो मुसलमानों को उसी तरह देखता है जैसे नाजी यहूदियों को देखते थे."

द हिंदू से बातचीत में वॉल्टर लिंडनर ने कहा है कि एक जर्मन के तौर पर वो इस संस्था के 1930-40 के इतिहास के बारे में अवगत हैं. उन्होंने कहा कि मैं ये जानता हूं कि आरएसएस के कुछ नेताओं ने नाजी जर्मनी से प्रेरणा ली है और मैंने इस बारे में भी भागवत से बात की. उन्होंने कहा, "मैंने कट्टरपंथ के बारे में कई सवाल किए और इन सवालों के सरल जवाब नहीं होते हैं."

उन्होंने आरएसएस को ‘जन आंदोलन’ बताते हुए ये भी कहा है कि नागपुर में आरएसएस मुख्यालय की उनकी यात्रा ‘भारतीय मोज़ेक’ को समझने के उनके प्रयासों का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, "आरएसएस भी उस मोज़ेक का एक हिस्सा है जो भारत को बनाता है. आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि ये एक जनआंदोलन है, और कोई उसे पंसद करे या न करे, वो है."

भारत और जर्मनी अहम सहयोगी देश हैं. इसी साल अक्टूबर या नवंबर में भारत-जर्मनी सम्मेलन भी प्रस्तावित है. इसमें शामिल होने के लिए जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल भी भारत आएंगी. राजदूत लिंडनर इससे पहले भारत के शहरों का दौरा करके इस बारे में चर्चा कर रहे हैं.

साल 2017 में मोहन भागवन ने पचास से अधिक देशों के राजनयिकों के एक सम्मेलन को संबोधित किया था. इसका आयोजन दक्षिणपंथ समर्थक विचार मंच इंडिया फाउंडेशन ने किया था.

राजनयिकों से बात करते हुए भागवत ने आरएसएस के काम की प्रकृति और मोदी सरकार से उसके संबंध के बारे में चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि आरएसएस सरकार के काम में दख़ल नहीं देता है.

वहीं मई 2015 में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह यूरोपीय यूनियन के राजनयिकों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ आरएसएस मुख्यालय गए थे.

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