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बिहार-झारखंड में जिन महिलाओं को टिकट मिला वे सब मुखौटा, जानें क्या है असलियत…

रांची : बिहार-झारखंड में कुल 54 लोकसभा क्षेत्र हैं और सात और चार चरणों में मतदान होना है. सभी पार्टियों ने तैयारी शुरू भी कर दी है, दो-चार सीटों को छोड़ दें तो सभी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. बिहार और झारखंड दोनों ही जगहों पर विपक्ष ने महागठबंधन किया […]

रांची : बिहार-झारखंड में कुल 54 लोकसभा क्षेत्र हैं और सात और चार चरणों में मतदान होना है. सभी पार्टियों ने तैयारी शुरू भी कर दी है, दो-चार सीटों को छोड़ दें तो सभी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. बिहार और झारखंड दोनों ही जगहों पर विपक्ष ने महागठबंधन किया है और भाजपा को हराने के लिए एकजुट हुए हैं. इन पार्टियों में तमाम मुद्दों को लेकर चाहे कितना भी मतभेद हो, लेकिन महिलाओं को राजनीति में भागीदारी देने के मामले में सबके चेहरे एक हैं. यह एक सच्चाई है कि भारतीय राजनीति में आज तक उन्हीं महिलाओं को सहजता से टिकट मिल पाता है, जिनका पारिवारिक बैकग्राउंड हो, अन्यथा महिलाओं की तारीफ तो होती है, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया जाता.

बात अगर बिहार-झारखंड की करें तो हम पायेंगे कि कुल बिहार में महागठबंधन ने महिलाओं को छह टिकट दिया है, राजद ने तीन और कांग्रेस ने तीन. वही एनडीए की ओर से तीन टिकट दिया गया है, भाजपा, जदयू और रालोसपा ने एक-एक महिेला उम्मीदवार को टिकट दिया है. जबकि झारखंड की बात करें तो एनडीए की ओर से अभी तक किसी भी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया गया है, जबकि महागठबंधन की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को टिकट दिया गया है.

यानी मात्र एक महिला को राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है, वह भी उनकी क्षमता देखकर नहीं बल्कि इसलिए कि वे पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी है.बिहार में जिन महिेला प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है उनमें मीसा भारती, रमा देवी, कविता सिंह, वीणा देवी, हीना शहाब, विभा देवी सभी ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें वंशवाद के नाम पर टिकट दिया जा रहा है. मीसा भारती की पहचान लालू यादव से है, तो बाकी महिलाएं किसी ना किसी बाहुबली की पत्नियां हैं.

बात चाहे शहाबुद्दीन की पत्नी की हो या राजवल्लभ यादव की पत्नी की. कहने का आशय यह है कि बिहार-झारखंड की राजनीति में वर्तमान में महिओं के लिए कोई अवसर नहीं है और जो महिलाएं दिख रही हैं, वे अपने बूते नहीं हैं, वे बस किसी और के चेहरे के रूप में काम कर रही हैं. जिन महिलाओं के अंदर क्षमता है, उन्होंने किसी कमीशन का कार्यभार राजनीतिक पार्टियां अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेती हैं.

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