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संपूर्ण-संतुलित आहार खिचड़ी

पुष्पेश पंत जा ड़े के मौसम में भूख खुल जाती है- खुद-ब-खुद और गर्मागर्म भोजन अच्छा लगने लगता है. आयुर्वेद के अनुसार, साल का यह हिस्सा ग्रहण काल होता है, जब हमारा शरीर पौष्टिक तत्वों का संचय करता है. हमारे पारंपरिक व्यंजनों में उन मौसमी खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है, जिनकी तासीर गर्म […]

पुष्पेश पंत
जा ड़े के मौसम में भूख खुल जाती है- खुद-ब-खुद और गर्मागर्म भोजन अच्छा लगने लगता है. आयुर्वेद के अनुसार, साल का यह हिस्सा ग्रहण काल होता है, जब हमारा शरीर पौष्टिक तत्वों का संचय करता है. हमारे पारंपरिक व्यंजनों में उन मौसमी खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है, जिनकी तासीर गर्म होती है. तासीर शब्द का मूल अर्थ असर यानी प्रभाव होता है.
हमारी शारीरिक संरचना तथा मानसिक प्रवृत्तियों और रुझान का विस्तार से विश्लेषण भी आयुर्वेद में किया गया है, जिसमें गुण-दोष की व्याख्या की गयी है. संक्षेप में जो पदार्थ, मसलन चिकनाई- घी-तेल आदि, कफ को कुपित करते हैं या पित्त को बढ़ाते हैं, वे इस ऋतु में हानिकारक नहीं रहते. दिन छोटे होते हैं और रातें लंबी होती हैं. इस मौसम में रसोई में अधिक समय बिताना खलता नहीं है. खाने के लिए जो कुछ पका रहे हों, उसका रूप-रंग-गंध आदि यह सब हमारे तन-मन की सिहरन को दूर करने में सहायक होता है.
इस मौसम में खिचड़ी अपने ‘चार यारों’ के साथ आकर्षक लगती है. यह चार अभिन्न मित्र हैं- कुरकुरा मसालेदार पापड़, पिघला घी, मनपसंद या सुलभ तीखापन लिये अचार और दही. एक दूसरी सूची में सनसनाती-झनझनाती नाक के रास्ते सर तक पहुंचनेवाली ताजी-ताजी मूली की खुश्बू तो कभी-कभी पापड़ या दही को विस्थापित भी कर देती है.
देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय खिचड़ी किसी प्रदेश विशेष की पहचान का अंग है. उत्तर प्रदेश तथा पूर्वांचल में मूंग तथा माष (उड़द) की खिचड़ी लोकप्रिय है, तो बंगाल में भूनी हुई खिचड़ी का चलन है. यहां सामिष खिचड़ी भी बनायी जाती है और इसके शाकाहारी अवतार में सब्जियां डालने से परहेज नहीं किया जाता. राजस्थान और गुजरात में बाजरे की खिचड़ी दाल-चावल की खिचड़ी को पछाड़ती नजर आती है.
हैदराबाद, दिल्ली और भोपाल में कई अनाज और दाल के साथ गोश्त मिली दलिया की शक्ल में ढला खिचड़ा अपने नाम से ही यह जाहिर कर देता है कि उसका प्रेरणा स्रोत खिचड़ी ही है. तमिलनाडु का पोंगल धुली मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी ही तो है, जिसका स्वाद काली मिर्च तथा जीरे से पैदा होता है. ओडिशा में जगन्नाथ जी के 56 भोग में खिचड़ी शामिल की जाती है.
महाराष्ट्र में बिना दाल-चावल वाली साबूदाने की खिचड़ी नाश्ते में चाव से खायी जाती है. अंग्रेजों ने स्थानीय देशी खिचड़ी को शौक से अपना लिया था और इसे अंडे तथा बासी बची रही मसालेदार मछली से ‘समृद्ध’ कर उन्होंने केजरी नामक एंग्लो इंडियन व्यंजन का आविष्कार किया था. कुछ युवा शैफ नयी पीढ़ी के ग्राहक मेहमानों को लुभाने के लिए राजमा तथा मशरूम खिचड़ी पेश करने लगे हैं.
अधिकतर लोगों का मानना है कि खिचड़ी अपने आप में संपूर्ण-संतुलित आहार है, जिसके साथ और कुछ पकाने की जरूरत नहीं होती है. हमारा मानना है कि अचार के अलावा तीखी चटनी भी खिचड़ी का मजा बढ़ाती है और पापड़ की जगह कोई कुरकुरी मिर्च मसालेदार सूखी सब्जी भी ले सकती है. पंजाबी आलू-बड़ियां का लटपटा संस्करण खिचड़ी का आनंद बढ़ाता है. सादे दही की जगह तड़का लगा दही भी परोस सकते हैं. कश्मीरी नदर यानी कमल ककड़ी के रेशों के बेसन में लपेटे ‘पकौड़े’ या भाजा अथवा बंगाली बोडी का भोर्ता या असमी तिल वाले आलू भी इसके साथ अच्छी जुगलबंदी करते हैं.
तन-मन को आह्लादक गर्मी से भरने में घर पर पिसे गरम मसालों की प्रमुख भूमिका रहती है. सोंठ और काली मिर्च अदृश्य रहकर भी अपना प्रभाव दिखलाते हैं. इसी मौसम में भरवां, दम पर पकी सब्जियां और कोफ्ते भी जादू जगाते हैं. इनके बारे में जल्दी ही!
रोचक तथ्य
उत्तर प्रदेश तथा पूर्वांचल में मूंग तथा माष (उड़द) की खिचड़ी लोकप्रिय है, तो बंगाल में भूनी हुई खिचड़ी का चलन है.
राजस्थान और गुजरात में बाजरे की खिचड़ी दाल चावल की खिचड़ी को पछाड़ती नजर आती है.
हैदराबाद, दिल्ली और भोपाल में कई अनाज और दाल के साथ गोश्त मिली दलिया की शक्ल में ढला खिचड़ा अपने नाम से ही यह जाहिर कर देता है कि उसका प्रेरणा स्रोत खिचड़ी ही है.
तमिलनाडु का पोंगल धुली मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी ही तो है, जिसका स्वाद काली मिर्च तथा जीरे से पैदा होता है.
ओड़िशा में जगन्नाथ जी के 56 भोग में खिचड़ी शामिल की जाती है. महाराष्ट्र में बिना दाल-चावल वाली साबूदाने की खिचड़ी नाश्ते में चाव से खायी जाती है.

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