
भारत की अग्नि मिसाइल पर चीन की तरफ़ से कड़ी प्रतिक्रिया मिली है. वहां के जानकार कह रहे हैं कि नई दिल्ली के इस कदम के बाद बीजिंग को अपनी ढाल मज़बूत करनी चाहिए.
चीन के एक मिसाइल विशेषज्ञ का कहना है कि भारत ने हाल में जिस इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का परिक्षण किया है और जो परमाणु हमले में सक्षम हैं, उससे चीन की सुरक्षा को सीधा ख़तरा है और ये परीक्षण परमाणु निरस्त्रीकरण के वैश्विक प्रयासों के लिए एक चुनौती है.
चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने जाने वाले ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चीनी सैन्य विशेषज्ञ सोंग ज़ोंपिंग का कहना है, "इस परीक्षण के बाद बड़े पैमाने पर इस मिसाइल का उत्पादन होगा और आने वाले सालों में इसे सेना में शामिल कर लिया जाएगा."

भारत ने किया था अग्नि-5का सफल परीक्षण
इससे पहले गुरुवार सुबह भारत ने ओडिशा के समुद्री तट के नज़दीक मौजूद अब्दुल कलाम द्वीप से लंबी दूरी वाली अग्नि-5 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था.
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार भारत में बना ज़मीन से ज़मीन तक मार कर सकने वाला ये मिसाइल पांच हज़ार किलोमीटर के रेंज तक किसी लक्ष्य को नष्ट कर सकता है.
गुरुवार को किया गया ये परीक्षण इस मिसाइल का पांचवा परीक्षण था. इसे तीसरी बार लगातार रोड मोबाइल लॉन्चर से छोड़ा गया था. इस मिसाइल के सभी पांचों परीक्षण सफल रहे हैं.
अग्नि-5 इस सिरीज़ की सबसे आधुनिक मिसाइल है, क्योंकि नेविगेशन, गाइडेंस, वॉरहेड और इंजन, सभी के मोर्चे पर ये अपने पुराने साथियों से बेहतर बताई जाती है.
डीआरडीओ का कहना है कि मिसाइल को इस तरह प्रोग्राम किया जा सकता है कि अपने रास्ते के चरम तक पहुंचने के बाद ये फिर पृथ्वी की तरफ़ मुड़ सकती है और उसके गुरुत्वाकर्षण बल से मदद लेते हुए अपने लक्ष्य की तरफ़ ज़्यादा रफ़्तार से बढ़ने में सक्षम है.
अग्नि सिरीज़ मिसाइलों की बात करें तो अग्नि-1 700 किलोमीटर, अग्नि-2 दो हज़ार किलोमीटर, अग्नि 3 और 4 ढाई हज़ार से 3.5 हज़ार किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है.
अग्नि-5 का पहला टेस्ट साल 2012 के अप्रैल महीने में किया गया था जबकि दूसरा साल 2013 के सितंबर में.

चीन तक पहुंच सकती है अग्नि-5
गुरुवार को हुई टेस्टिंग के बाद भारत अमरीका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस जैसे मुल्क़ों की कतार में खड़ा हो गया है क्योंकि ये सभी वो देश हैं जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइलें रखते हैं.
ग्लोबल टाइम्स के अनुसार ये मिसाइल चीन के उत्तरी इलाकों तक आसानी से पहुंचने का दावा किया जा रहा है लेकिन चीन के जानकारों ने अग्नि-5 की मारक क्षमता को लेकर शंकाएं भी जताई हैं.
वेबसाइट के अनुसार शांघाई एकैडमी ऑफ़ सोशल साइंसेस के इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल रिलेशन्स में काम कर रहे रिसर्च फेलो हू ज़ियोन्ग के अनुसार, "देखा जाए तो ये मिसाइल बीजिंग तक पहुंच सकता है लेकिन भारत की मिसाइल तकनीक औसत दर्ज के कहीं नीचे है."
हू ने कहा कि इसके बावजूद चीन को सतर्क रहना चाहिए और अपनी मिसाइल तकनीक को अपग्रेड करना चाहिए.
उनका कहना है, "चीन को इसे ख़तरे की घंटी की तरह लेना चहिए और अपनी एंटी मिसाइल तकनीक पर और काम करना चाहिए."

'परमाणु हथियारों की रेस में शामिल भारत'
वेबसाइट के अनुसार चीनी सैन्य विशेषज्ञ सोंग ज़ोंपिंग कहते हैं, "भारत कई और तरह के हथियार भी बना रहा है और चीन से प्रतिस्पर्धा कर रहा है, इस तरह के हथियार बना कर वो चीन के साथ परमाणु हथियारों की रेस में भी शामिल हो गया है."
उनका कहना है, "भारत के पास परमाणु हथियारों का बड़ा ज़खीरा है और ये परमाणु निरस्त्रीकरण संधि के लिए एक बड़ी चुनौती है."
इस मिसाइल टेस्ट को भारत के स्ट्रैटेजिक फोर्स कमांड (एसएफ़सी) में अग्नि-5 को शामिल करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है.
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने गुरुवार को ख़बर दी है कि भारत को 50 टन वज़नी इस मिसाइल का पर्याप्त संख्या में उत्पादन शुरू करने से पहले अभी कुछ और टेस्ट करने हैं.

'भारत के कारण चीन को ख़तरा'
शिन्हुआ के मुताबिक भारत के परमाणु ज़ख़ीरे को संभालने के लिए साल 2003 में एसएफ़सी का गठन किया गया था.
पृथ्वी और धनुष जैसी कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के अलावा एसएफ़सी में अग्नि-1, अग्नि-2 और अग्नि-3 मिसाइल पहले से शामिल हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने इस बात का भी ज़िक्र किया है कि गुरुवार को भारत में हुआ ये परीक्षण हिंद महासागर में जापान के साथ संयुक्त अभ्यास के एक दिन बाद हुआ.

सोंग ने कहा, 'भारत चीन पर करीबी निगाह रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमरीका के साथ मिलाकर सैन्य सिस्टन बना रहा है और ये चीन के लिए सीधा ख़तरा पैदा करता है.'
उनके मुताबिक चीन को अपनी आर्थिक और सैन्य क्षमताएं बढ़ान के लिए लगातार काम करते रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि क्यांकि हिंद महासागर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए क्षेत्र में दाखिल होने के लिए ज़रूरी है और साथ ही चीन को समुद्री ताक़त बनाने के लिहाज़ से भी अहम है, ऐसे में चीन को इस महासागर में अपनी सैन्य और आर्थिक मौजूदगी में इज़ाफ़ा करना चाहिए.
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