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सुधीश पचौरी का उपन्यास ‘मिस काउ : ए लव स्टोरी’ उनका नया एडवेंचर है. उपन्यास के नाम में ही व्यंग्य की अंतर्ध्वनि साफ-साफ महसूस हो रही है. यह एक फन्नी उपन्यास है. हिंदी के सामाजिकों के बीच सुधीश पचौरी ने उत्तर आधुनिक विचारक और मीडिया विश्लेषक के बतौर अपनी छवि निर्मित की हुई है. हिंदी […]

सुधीश पचौरी का उपन्यास ‘मिस काउ : ए लव स्टोरी’ उनका नया एडवेंचर है. उपन्यास के नाम में ही व्यंग्य की अंतर्ध्वनि साफ-साफ महसूस हो रही है. यह एक फन्नी उपन्यास है.

हिंदी के सामाजिकों के बीच सुधीश पचौरी ने उत्तर आधुनिक विचारक और मीडिया विश्लेषक के बतौर अपनी छवि निर्मित की हुई है. हिंदी अध्यापक रहे सुधीश पचौरी कभी किसी वैचारिक ठसपन के शिकार नहीं हुए. इसी का नतीजा है कि रीतिकाल को लेकर उन्होंने बहस के लिए नयी दृष्टि प्रस्तावित की. वे साहित्य के गंभीरतम विषयों पर अपनी राय बेबाकी से रखते रहे हैं. वाणी प्रकाशन से आया उनका उपन्यास ‘मिस काउ : ए लव स्टोरी’ उनका नया एडवेंचर है. उपन्यास के नाम में ही व्यंग्य की अंतर्ध्वनि साफ-साफ महसूस हो रही है. यह एक फन्नी उपन्यास है.
पिछले चार-पांच वर्षों में उभरे सामाजिक-राजनीतिक विमर्शों को एक कुशल किस्सागो की तरह व्यंग्य शैली में पाठकों के समक्ष रखा है. धर्म को लेकर सामाजिक विद्वेष के वातावरण में अपनी बात एक बड़े पाठक वर्ग के सामने इसी शैली में रखा जा सकता था. उपन्यास के शुरू होते ही स्मार्ट सिटी का छद्म दिखता है- उस चिकनी, पारदर्शी और लंबी सुपर स्मार्ट सड़क का अंत नहीं नजर आता था. लोग कहते थे कि वह सीधी स्वर्ग तक जाती है. पर, उस सड़क पर यात्रा के लिए ‘संशयात्मा विनश्यति’ के शाप का भी भागी बनना पड़ सकता है.
कहने को यह एक हिंदू कथा है, ‘मिस काउ’ की लव स्टोरी है. यहां कुछ कलिकथा है, तो कुछ कल्कि अवतार की भी कथा है और दर्शक के रूप में उपनिवेशवाद के प्रतिनिधि भैया मैकाले भी हैं, जिनसे दुष्टात्मा यानी उपन्यास का नायक संवादरत है. सर्जक की सहानुभूति दुष्टात्मा के साथ है और लेखक की पॉलिटिक्स किस ओर है, इसका भी पता चलता है.
लेखक का ‘विट’ हमारे समय के दरपेश विडंबनाओं पर बड़े सलीके से चोट करता है. शुरू से अंत तक व्यंग्य की तीक्ष्णता को बरकरार रख पाना लेखक की सफलता है. इसे पढ़ते हुए आशीष नंदी का यह कथन कौंधता है कि ‘उपनिवेशवाद अधिकांशतः श्रेणियों और ज्ञान की राजनीति का ही खेल है. जब तक यह खेल और यह राजनीति रहेगी, तब तक अपने इस या उस रूप में उपनिवेशवाद भी रहेगा़. इस खेल का पहला दांव होता है- इतिहास के औजार का इस्तेमाल करके अतीत को सपाट कर देना’. और इस उपन्यास का निहितार्थ इस सपाटीकरण का विरोध करना ही है. और सुधीश पचौरी इस उपन्यास के माध्यम से पाठकों का मनोरंजन तो करते ही हैं, साथ ही अपनी बात भी संप्रेषित कर ले जाते हैं.
मनोज मोहन

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