बारहवीं के नतीजे के बाद सोशल मीडिया में #CbseResults2017 ट्रेंड करने लगा. ट्वीटर पर लोगों ने नतीजों पर प्रतिक्रिया जताने के लिए चुटकुलों का सहारा लिया. किसी ने इसे ‘रिलेटिव बदला डे’ करार दिया तो किसी ने ट्वीट कर लिखा यह एक किस्म का रेट रेस ( चूहा दौड़) है. एक ऐसा चूहा दौड़, जहां आप जीत भी जाते हैं तो चूहा ही रहते हैं. वहीं फेसबुक पर बहस छिड़ी हुई है कि क्या वाकई में बारहवीं के नतीजे इतने अहम है कि लोगों को इतनी तरजीह देनी चाहिए ?
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CBSE रिजल्ट : फेसबुक पर छिड़ी बहस – बोर्ड नतीजों को जरूरत से ज्यादा दी जाती है तरजीह
बारहवीं के नतीजे के बाद सोशल मीडिया में #CbseResults2017 ट्रेंड करने लगा. ट्वीटर पर लोगों ने नतीजों पर प्रतिक्रिया जताने के लिए चुटकुलों का सहारा लिया. किसी ने इसे ‘रिलेटिव बदला डे’ करार दिया तो किसी ने ट्वीट कर लिखा यह एक किस्म का रेट रेस ( चूहा दौड़) है. एक ऐसा चूहा दौड़, जहां […]
पत्रकार संजय तिवारी देश की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं. "अगर आपसे पूछा जाए कि दसवीं बारहवीं तक पढ़ाई के दौरान आपने जो कुछ पढ़ा उसका कितना हिस्सा आपके जीवन में काम आया? क्या चार लाइने भी याद हैं कि चौथी क्लास में क्या क्या पढ़ा था? नहीं याद न, याद है कि कितनी बदमाशियां की. कौन कौन से पेड़ पर चढ़े. कहां कहां घूमने गये. कैसे कैसे ईंट पत्थर के महल बनाये. गुड्डे गुड़ियों की शादी की. तालाब में नहाये कि झरनों में तैरे. चलती हुई गाड़ी में पीछे से लटककर कितना सफर किया कि ट्रैक्टर की कितनी सवारी की.
बचपन की खूबसूरती कुछ और ही होती है. उसे किताबों का बोझ तले मत दबाइये. किताब से हम कुछ नहीं सीखते. जो कुछ सीखते हैं जीवन से सीखते हैं, जीवन के उल्लास और आनंद से सीखते हैं. खेलकूद से सीखते हैं. आसपास के वातावरण से सीखते हैं. किताबें कुछ नहीं सिखाती. किताब की बातें सिर्फ पढ़कर नंबर लाने के लिए होती है इसलिए हम उसे कभी गंभीरता से नहीं लेते. हमें लगता है वो बातें तो सिर्फ नंबर पाने के लिए थीं. नंबर पा गये. काम खत्म.बच्चों को वह सिखाइये जो उनकी जिन्दगी की सीख बने. किताबें पढ़ने के लिए पूरी उम्र पड़ी है"
वहीं कई फेसबुक यूजर्स ने अपने रिजल्ट के दिनों को याद किया और लिखा कि मेरे रिजल्ट का इंतजार मुझसे ज्यादा मेरे पड़ोसियों को थी. कई मनोचिकित्सकों ने भी बारहवीं के नतीजों को ज्यादा तरजीह देने पर सवाल उठाये. मनोचिकित्सकों की की माने तो आज समाज में अभिभावकों को अपने बच्चों के बीच यह मैसेज देने की जरूरत है कि बोर्ड नतीजों में आये मार्क्स के आगे भी जिदंगी है.
अगर कोई छात्र अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है तो अभिभावक टीवी देखने व गाना सुनना खराब नतीजों की वजह बताते हैं. ऐसे वक्त में बच्चों को यह सीखाना जरुरी है कि वो किसी तरह से इस असफलता से लड़े. छात्रों के खराब नतीजे आने पर करियर के अन्य विकल्पों को भी खुला रखने की सलाह मनोवैज्ञानिकों ने दी है. ध्यान देने वाली बात है कि हर साल नतीजे घोषित होने के बाद भारी संख्या में देश के विभिन्न जिलों से आत्महत्या की खबरें सामने आती है.
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