चतरा : जब से चुनाव आयोग ने चुनाव को लेकर कड़े निर्देश जारी किये हैं, तब से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव की गतिविधियों से आम लोग अनभिज्ञ रहने लगे हैं. बैनर, पोस्टर व दीवार लेखन नहीं होने से उन्हें पता भी नहीं चलता है कि कब चुनाव है. चुनाव में कौन-कौन प्रत्याशी खड.े हैं और किस दल से कौन चुनाव लड. रहा है.
जिले के लावालौंग, कुंदा, प्रतापपुर, हंटरगंज, पत्थलगड्डा, गिद्धौर, इटखोरी, कान्हाचट्टी, टंडवा व सिमरिया के अति उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में किसी भी पार्टी के प्रत्याशी के समर्थक चुनाव प्रचार करने नहीं पहुंचते हैं.उग्रवादियों के डर से प्रखंड मुख्यालय, पक्की सड.क पर बसे गांवों में प्रचार वाहन घूमता है. 90 के दशक के बाद से सुदूरवर्ती क्षेत्र के लोग चुनाव प्रक्रिया से अनभिज्ञ होते आ रहे हैं. नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार के कारण कई चुनाव में मतदान भी नहीं कर पाय.े वर्ष 2000 से उक्त क्षेत्र के कुछ- कुछ लोग मतदान में सक्रिय भूमिका निभाते आ रहे हैं. कई गांवों में आज भी नक्सलियों का डर साफ दिखाई दे रहा है. इतना ही नहीं प्रत्याशी भी वोट मांगने सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नहीं पहुंचते हैं. यही वजह है कि लोगों के मतदान नहीं करने के कारण कोई भी जनप्रतिनिधि उनके गांव के विकास में रुचि नहीं लेत.े कुंदा, लावालौंग व प्रतापपुर प्रखंड में कई ऐसे गांव हैं, जहां के लोगों के आने-जाने के लिए सड.क नहीं है. नदी-नाला का पानी पीकर प्यास बुझाते हैं. स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं है. लावालौंग प्रखंड के सिलदाग गांव के बंधु गंझू ने बताया कि 20 वर्षो से वोट मांगने कोई भी प्रत्याशी गांव नहीं पहुंचा है. इवीएम में एक बार भी वोट नहीं दिया. सुनमा के बासुदेव परहिया ने कहा कि वोट मांगने कोई नहीं आता.