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आपराधिक मामले में समझौते के लिए अदालत की अनुमति गैरकानूनी : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते की अनुमति देते समय अदालतों को न्यायिक संयम का परिचय देना चाहिए क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत ऐसा करना निषिद्ध है.न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने कहा कि उनकी यह सुविचारित राय है […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते की अनुमति देते समय अदालतों को न्यायिक संयम का परिचय देना चाहिए क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत ऐसा करना निषिद्ध है.न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने कहा कि उनकी यह सुविचारित राय है कि सरकार के दूसरे अंग के अधिकार पर अतिक्रमण करना स्पष्ट रुप से कानून का उल्लंघन होगा जो हमारे संविधान के बुनियादी ढांचे में एक है.

न्यायालय ने यह टिप्पणी इस संदर्भ में की कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय सहित अदालतोें को पक्षकारों को इस तरह के आपराधिक मामलों में समझौते की अनुमति दी जा सकती है जिन्हें दंड प्रक्रिया संहिता में सूचीबद्ध अपराधों में रखा गया हैं और उन्हें जिनमें संबंधित पक्षकार परस्पर मिला नहीं सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो की अपील खारिज करते हुये यह टिप्पणियां की। उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक क्षेत्र की एक बैंक द्वारा एक फर्म और कुछ अन्य व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज कराये गये धोखाधडी और जालसाजी के आरोप में आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी.
बैंक के विभिन्न दण्डात्मक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज कराया था परंतु बाद में आरोपियों के साथ इस विवाद में समझौता कर लिया था जिन्होंने इसके बाद आपराधिक मामला बंद करने का अदालत से अनुरोध किया था. निचली अदालत ने इस संबंध में दायर अर्जी खारिज करते हुये कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 471 और 468 के तहत दर्ज मामले को मिलाया नहीं जा सकता है. आरोपियों ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसने जून 2011 को संबंधित पक्षों के बीच समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही निरस्त कर दी थी.

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