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इन पांच कारणों से आनंदीबेन पटेल को छोड़ना पड़ा सीएम का पद

नयी दिल्ली :गुजरात की राजनीति में पिछले कई महीनों से भूचाल आया हुआ था. लोकसभा चुनाव में मिली भाजपा के भारी जीत के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गये. वहीं आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया. मीडिया की सुर्खियों में उन दिनों आनंदीबेन को एक कुशल प्रशासक बताया जा रहा था लेकिन मुख्यमंत्री […]

नयी दिल्ली :गुजरात की राजनीति में पिछले कई महीनों से भूचाल आया हुआ था. लोकसभा चुनाव में मिली भाजपा के भारी जीत के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गये. वहीं आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया. मीडिया की सुर्खियों में उन दिनों आनंदीबेन को एक कुशल प्रशासक बताया जा रहा था लेकिन मुख्यमंत्री पद संभालने के बादपटेलआंदोलन का बेकाबू होना, उनकी बेटी अनार पटेल से जुड़ा जमीन कब्जाने का विवाद व उना में दलितों की पिटाई का मामला मीडिया की सुर्खियां बना. तकरीबन दो साल के कामकाज में गुजरात की आनंदीबेन पटेल सरकार की हमेशा निगेटिव खबरे ही राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों बनी. यह नरेंद्र मोदी के लंबे शासन के उलट था, जहां से गुजरात मॉडल का लोकप्रिय जुमला या टर्म प्रचलन में आया था.

हार्दिक पटेल ने खुलेआम विशाल रैली कर आनंदीबेन को चुनौती दी. हाल ही में आनंदीबेन को एक बार फिर मुसीबतों का सामना करना पड़ा जब गुजरात के ऊना जिले में गोरक्षक दल ने दलितों की पिटाई कर दी. बहरहाल इस राजनीतिक घटनाक्रम से पार्टी ने साफ संकेत दे दिया कि गुजरात में भारतीय जनता पार्टी अपना जनाधार खोना नहीं चाहती है. वो पांच कारण जिनकी वजह से आनंदीबेन को कुर्सी छोड़नी पड़ी.
1.नरेंद्र मोदी का विराट व्यक्तित्व : नरेंद्र मोदी के गुजरातकामुख्यमंत्री का पद छोड़ते ही सरकार में निर्वात पैदा हो गया. नरेंद्र मोदीकीकरिश्माई व्यक्तित्वकीभारपाई कर पाना आनंदीबेन के लिए मुश्किल काम था.मोदी ने यूपी-बिहार से अपेक्षाकृत छोटे राज्य गुजरातकेमुख्यमंत्री पद को राष्ट्रीय पहचान दी थी. आनंदीबेनकेमुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य भाजपा के नेताओं में असंतोष पैदा होने लगा. आनंदीबेन इस चुनौती से निपट नहीं पायीं.
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2.अनार पटेल जमीन विवाद : गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की बेटी अनार पटेल पर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनके बिजनेस पार्टनर की कंपनी को करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव में दी गयी. पार्टी को इस विवाद से बैकफुट में आना पड़ा.
3. पटेल आंदोलन : खुद पटेल समुदाय से आने वाली आनंदीबेन अपने राज में पटेलों को संतुष्ट करने में नाकाम रहीं. उनके कार्यकाल में हार्दिक पटेल भाजपा के विरोध में बड़ा चेहरा बनकर उभरा. हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन को पूरे राज्य में अपार समर्थन मिला. यह बात भी उनके खिलाफ गयी.
4. दलित पिटाई मामला : संघ परिवार व भाजपा ने खास रणनीति के तहत दलितों को लुभाने की कोशिश की. भाजपा ने आंबेडकर जयंती भी मनाया लेकिन हाल ही में गुजरात के उना जिले में गोरक्षक दलों ने दलितों को बांधकर पिटाई कर दी. इस निर्मम घटना का वीडियो वायरल हो गया. घटना का असर संसद से सड़क तक दिखाई पड़ा. संसद में जहां इस बात को लेकर जमकर हंगामा हुआ, वहीं गुजरात में दलितों इस घटना के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया.
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5. भाजपा के वोट प्रतिशत में गिरावट : आनंदीबेन के कार्यकाल में भाजपा के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट हुई. पंचायत व नगर निगम चुनावों में कांग्रेस ने अपनी स्थिति पहले से ज्यादा मजबूत कर ली. ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 44 से बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया, वहीं शहरी इलाकों में भी भाजपा की वोट शेयरिंग 50 प्रतिशत से गिरकर 43 प्रतिशत हो गयी.

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