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सीएम आनंदीबेन के भविष्य को लेकर अटकलें तेज, जल्द ही 75 वर्ष की हो जायेंगी

अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अघोषित रूप से तय की गयी 75 साल की आयु सीमा के चलते गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के भविष्य को लेकर अटकलें लगने लगी हैं. आनंदीबेन आगामी नवंबर में 75 साल की हो जायेंगी. इससे पहले, इस अघोषित नियम के चलते पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला को […]

अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अघोषित रूप से तय की गयी 75 साल की आयु सीमा के चलते गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के भविष्य को लेकर अटकलें लगने लगी हैं. आनंदीबेन आगामी नवंबर में 75 साल की हो जायेंगी. इससे पहले, इस अघोषित नियम के चलते पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला को इस्तीफा देना पड़ा था.

आनंदीबेन मई 2014 में मुख्यमंत्री बनी थीं. उनका जन्म 1941 में हुआ था और इस 21 नवंबर को वह 75 साल की हो जायेंगी. भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘‘जब पटेल 75 वर्ष की हो जायेंगी तब क्या होगा, यह सवाल हर किसी के दिमाग में है.” एक अन्य नेता ने कहा, ‘‘अटकलें इस मुद्दे को लेकर हैं कि क्या उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा जायेगा या फिर वह अपवाद होंगी और उन्हें 2017 विधानसभा चुनाव तक एक साल के लिए और पद पर बने रहने दिया जायेगा. कहा जाता है कि नजमा हेपतुल्ला से इस्तीफा देने को कहा गया था क्योंकि उन्होंने 75 साल की आयु सीमा पार कर ली थी.

इस आयु सीमा को ध्यान में रखते हुए ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर और सरताज सिंह समेत कुछ अन्य मंत्रियों को राज्य मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था.

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो अधिक आयु के कारण लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार और यशवंत सिन्हा जैसे कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं को मंत्री पद नहीं दिया गया था. सिन्हा ने यह कहा था कि भाजपा ने 75 वर्ष से अधिक आयु के अपने नेताओं को ‘‘26 मई, 2014 को दिमागी तौर पर मृत घोषित कर दिया है.

आनंदीबेन साल 1998 से भाजपा सरकार में मंत्री हैं और साल 2014 में वह मुख्यमंत्री बनी थीं. गुजरात में नरेंद्र मोदी दौर के बाद यह पहली बार है जब भाजपा को विपक्षी दलों से कडी चुनौती मिल रही है. राज्य में साल 2017 के अंत में चुनाव होने हैं.

दिसंबर 2015 में हुए ग्रामीण एवं नगर निकाय चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा था. इस परिणाम को आनंदीबेन के लिए गंभीर नुकसान के तौर पर देखा गया क्योंकि राज्य में लगभग 25 साल बाद कांग्रेस चुनाव जीती थी.

ग्रामीण निकाय चुनाव में भाजपा की हार की एक वजह पटेल आरक्षण आंदोलन को भी माना गया। इस चुनाव में भाजपा ने शहरी निकायों में जीत बरकरार रखी थी. विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने आनंदीबेन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए हैं. भाजपा का कोई भी नेता आधिकारिक तौर पर इस विषय पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, हालांकि वे इसे ‘‘महज अटकल” करार देते हैं.

कांग्रेस का कहना है कि यह नियम भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की सुविधा के मुताबिक लागू होता है. इसके प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा, ‘‘यह भाजपा का आंतरिक मामला है. हमें लगता है कि यह नियम पार्टी नेतृत्व की सुविधा के मुताबिक लागू होता है. किसी को बनाए रखना होता है तो वे ऐसा कर लेते हैं लेकिन अगर किसी को वे हटाना चाहते हैं तो इस नियम का पालन किया जाता है.” उन्होंने आगे कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश चुनाव के कारण वे केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र का इस्तीफा नहीं ले रहे. हालांकि जब वे आडवाणी जी और मुरली मनोहर जोशी को मंत्रिमंडल से बाहर रखना चाहते थे तो उन्होंने इस नियम का पालन किया था.

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