नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित इन मामलों में ‘‘विलंब, विक्षिप्तता, एकांत कारावास और प्रक्रियागत खामियों’‘ जैसे कारणों के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया. उत्तर प्रदेश निवासी सुरेश (60) और रामजी (45) के मामले में जो 17 साल से जेल में बंद हैं, उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए उनकी मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया कि उनकी दया याचिकाओं को निपटाने में 12 साल का विलम्ब हुआ.
वीरप्पन के भाई गणप्रकाशन (60) और उसके सहयोगियों बिलावेंद्रन (55), सिमोन (50) और मदिहा (64) के मामले में, प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति शिवा कीर्ति सिंह ने यह कहते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया कि उनकी दया याचिका को निपटाने में नौ साल का ‘‘अनुचित’‘ विलंब हुआ. ये चारों लोग 20 साल से अधिक समय जेल में गुजार चुके हैं.
कर्नाटक के प्रवीण कुमार (55) के मामले में शीर्ष अदालत ने उसकी दया याचिका पर साढ़े नौ साल की ‘‘अस्पष्ट और अनावश्यक’‘ देरी के आधार पर मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. वह 15 साल जेल में गुजार चुका है.