नयी दिल्ली : भारत को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में प्रवेश दिलाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. इसी क्रम में गुरुवार को नरेंद्र मोदी ताशकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी एनएसजी सदस्यता में भारत का समर्थन करने के लिए जिनपिंग को मनाएंगे. मामले को लेकर शुक्रवार को पीएम मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बातचीत होगी. इधर, सिओल में आज से शुरू हो रही एनएसजी प्लेनरी की बैठक में फॉरेन सेक्रेटरी एस. जयशंकर भारत के दावे को पुख्ता करने पहुंच चुके हैं. आइए जानते हैं एनएसजी की सदस्यता क्यों महत्वपूर्ण है भारत के लिए…
क्या है न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी परमाणु अपूर्तिकर्ता देशों का समूह है, जो परमाणु हथियार बनाने में सहायक हो सकनेवाली वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को नियंत्रित कर परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश करता है. भारत द्वारा मई, 1974 में किये गये पहले परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में इस समूह के गठन का विचार पैदा हुआ था और इसकी पहली बैठक नवंबर, 1975 में हुई थी. इस परीक्षण से यह संकेत गया था कि असैनिक परमाणु तकनीक का उपयोग हथियार बनाने में भी किया जा सकता है. ऐसे में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों को परमाण्विक वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई. ऐसा समूह बनाने का एक लाभ यह भी था कि फ्रांस जैसे देशों को भी इसमें शामिल किया जा सकता था, जो परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु निर्यात समिति में नहीं थे. वर्ष 1975 से 1978 के बीच विभिन्न वार्ताओं के सिलसिले के बाद निर्यात को लेकरदिशा-निर्देश जारी किये गये, जिन्हें इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी द्वारा प्रकाशित किया गया. लंदन में हुई इन बैठकों के कारण इस समूह को ‘लंदन क्लब’, ‘लंदन समूह’ और ‘लंदन सप्लायर्स ग्रुप’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है. इस समूह की अगली बैठक हेग में मार्च, 1991 में हुई और नियमों में कुछ संशोधन किये गये. इसमें नियमित रूप से बैठक करने का निर्णय भी लिया गया.
अध्यक्षता अर्जेंटीना के पास
प्रारंभ में एनसीजी के सात संस्थापक सदस्य देश थे- कनाडा, वेस्ट जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका. वर्ष 1976-77 में यह संख्या 15 हो गयी. वर्ष 1990 तक 12 अन्य देशों ने समूह की सदस्यता ली. चीन को 2004 में इसका सदस्य बनाया गया. फिलहाल इसमें 48 देश शामिल हैं और 2015-16 के लिए समूह की अध्यक्षता अर्जेंटीना के पास है.
एनएसजी की सदस्यता क्यों महत्वपूर्ण है भारत के लिए?
चूंकि इस समूह का गठन भारत द्वारा किये गये परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में किया था, इसलिए भारत का यह भी मानना है कि इसका लक्ष्य अत्याधुनिक तकनीक तक भारत की पहुंच को रोकना है. मौजूदा 48 सदस्यों में से पांच देश परमाणु हथियार संपन्न हैं, जबकि अन्य 43 देश परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. इस संधि को भेदभावपूर्ण मानने के कारण भारत ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है. वर्ष 2008 में हुए भारत-अमेरिका परमाणु करार के बाद एनएसजी में भारत को शामिल होने की प्रक्रिया शुरू हुई.
यदि भारत को इस समूह की सदस्यता मिल जाती है, तो उसे निम्न लाभ हो सकते हैं-
1. दवा से लेकर परमाणु ऊर्जा सयंत्र के लिए जरूरी तकनीकों तक भारत की पहुंच सुगम हो जायेगी, क्योंकि एनएसजी आखिरकार परमाणु कारोबारियों का ही समूह है. भारत के पास देशी तकनीक तो है, पर अत्याधुनिक तकनीकों के लिए उसे समूह में शामिल होना पड़ेगा.
2. भारत ने जैविक ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 फीसदी पूरा करने का संकल्प लिया हुआ है. ऐसे में उस पर अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का दबाव है, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब उसे एनएसजी की सदस्यता मिले.
3. भारत के पास परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर हर तरह की तकनीक हासिल करने का विकल्प है, पर इसका मतलब यह होगा कि उसे अपने परमाणु हथियार छोड़ने होंगे. पड़ोस में दो परमाणु-शक्ति संपन्न देशों को होते हुए उसका ऐसा करना संभव नहीं है. एनसीजी में सदस्यता इस संशय से बचा सकती है.
4. तकनीक तक पहुंच के बाद भारत परमाणु ऊर्जा यंत्रों का वाणिज्यिक उत्पादन भी कर सकता है. इससे देश में नवोन्मेष और उच्च तकनीक के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा, जिसके आर्थिक और रणनीतिक लाभ हो सकते हैं. परमाणु उद्योग का विस्तार ‘मेक इन इंडिया’ के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को नयी ऊंचाई दे सकता है.
5. इस समूह में नये सदस्य मौजूदा सदस्यों की सर्वसहमति से ही शामिल हो सकते हैं. यदि भारत को सदस्यता मिल जाती है, तो वह भविष्य में पाकिस्तान को इसमें आने से रोक सकता है. इसी स्थिति को रोकने के लिए ही चीन भारत के साथ पाकिस्तान को भी सदस्य बनाने पर जोर दे रहा है.