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पटेल की प्रतीक्षा में

-हरिवंश- चौंकिए मत. सरदार वल्लभभाई पटेल का न जन्मदिन है, न स्मृति दिवस. पर पूर्णरूप से अशासित और अराजक भारत को चाहिए एक अदद पटेल. बड़ी पूंजी नहीं. बड़ी जनसंख्या नहीं. बड़े संसाधन नहीं. चाहिए एक शासक नेता. हालांकि गली-गली नेता हैं, पर उनके दुर्गंध से देश बिखराव की स्थिति में है. बिहार में बाढ़ […]

-हरिवंश-

चौंकिए मत. सरदार वल्लभभाई पटेल का न जन्मदिन है, न स्मृति दिवस. पर पूर्णरूप से अशासित और अराजक भारत को चाहिए एक अदद पटेल. बड़ी पूंजी नहीं. बड़ी जनसंख्या नहीं. बड़े संसाधन नहीं. चाहिए एक शासक नेता. हालांकि गली-गली नेता हैं, पर उनके दुर्गंध से देश बिखराव की स्थिति में है.

बिहार में बाढ़ : 21वीं सदी (गुजरे लगभग आठ वर्ष) की शायद सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है, कोशी का यह अभिशाप. जल प्रलय. इसके ज्ञात कारणों में से एक है, नेपाल से लगातार पानी छोड़ना. खबर आयी कि बिहार के मुख्यमंत्री ने इस संदर्भ में विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी से बात की. बांध टूटने के एक दिन पहले. नीतीश कुमार जी का आग्रह था, कि केंद्र नेपाल से बात करे. पानी छोड़ने से मना करे. एक दिन बाद केंद्र का जवाब था, नेपाल में अंदरूनी समस्याएं चल रही हैं. वहां से सहयोग नहीं मिलेगा.

पर याद करिए, उसी दिन नेपाल के सर्वेसर्वा पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड बीजिंग में थे. ओलिंपिक समापन समारोह देखने गये थे. बीजिंग से उसी दिन यह खबर आयी कि प्रचंड ह जिंटाओ (चीन के राष्ट्रपति) से मिले. नेपाल के लिए मदद मांगी. ह जिंटाओ ने कहा, चीन नेपाल को आधुनिक और ताकतवर राष्ट्र बनाने के लिए सब कुछ करेगा.

भारत के 30 लाख लोग नेपाल के पानी छोड़ने से बेघर हो रहे थे. पर भारत सरकार, नेपाल को यह नहीं समझा सकी. उसी दिन गोद में बैठे नेपाल को ताकतवर बनाने की हुंकारें भर रहा था, चीन. क्या इसके पीछे के संकेत भारत के नेता समझते हैं? दुनिया तो हमें गंभीरता से नहीं ही लेती. नेपाल के लिए भी भारत, प्रभावहीन हो गया है. बांग्लादेश हमें महत्व नहीं देता. भूटान हमारी बात नहीं सुनता. श्रीलंका को हमारी परवाह नहीं. पाकिस्तान बार-बार आंखें दिखाता है. यह है भारत की स्थिति. आज चीन का कोई पड़ोसी देश, चीन से ऐसा सलूक कर ले?

कश्मीर : हाल में प्रधानमंत्री ने कहा, इस ग्लोबल दुनिया में, सीमाओं का कोई महत्व नहीं. कश्मीर के संदर्भ में यह बयान था. इस बयान के दिन ही, कश्मीर में आंतकवादियों से लड़ते हुए, एक कर्नल समेत अनेक लोगों के शहीद होने की खबरें आयीं. अगर प्रधानमंत्री कहते हैं कि सीमा अप्रासंगिक हो गयी है, तो यह बेकसूर लोगों की कुर्बानी क्यों? क्यों कश्मीर में यह अराजकता या तनाव? क्यों हमारी सेना और अर्द्धसैनिक बलों के लोगों की बलि दी जा रही है? देश के सबसे ताकतवर पद (प्रधानमंत्री पद) के इस बयान का क्या असर भारतीय मानस पर पड़ा है, क्या यहां के नेता जानते हैं?

महाराष्ट्र : दो दिनों पहले की खबर है. महाराष्ट्र हाइकोर्ट ने भी राज ठाकरे की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की बात की है. सुप्रीम कोर्ट भी बेबाक टिप्पणी कर चुका है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की डपोरशंखी घोषणाएं कई बार आ चुकी हैं कि राज ठाकरे के खिलाफ कानून मूकदर्शक नहीं रहेगा. पर, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और मुख्यमंत्री (संवैधानिक पद) के कहने के बावजूद, राज ठाकरे का अभियान चल रहा है. यही हालत बंगाल में है. ममता बनर्जी जो कहती हैं, आप मान लें तो ठीक, नहीं तो वे काम नहीं करने देंगी. सरकार, विधायिका, न्यायपालिका जैसी संस्थाएं हैं, पर वह इन संस्थाओं से परे पहुंच गयी हैं. यही स्थिति आतंकवाद के मुद्दे पर है. कहीं कोई देखने-सुननेवाला नहीं. आप सुरक्षित हैं, तो परिस्थितिवश. सरकार की सुरक्षा व्यवस्था या आतंकवादियों में सरकार के भय के कारण नहीं. पिछले चार वर्षों में अनेक जगह बड़े बम विस्फोट हुए.

पर एक अपराधी पकड़ा नहीं जा सका. गुजरात और राजस्थान की पुलिस ने हाल में ऐसे लोगों को पकड़ा. जो राज्य, उग्रवादियों को पकड़ना चाहते हैं, उन्हें केंद्र इजाजत नहीं दे रहा. चार वर्ष पहले महाराष्ट्र की तरह गुजरात ने भी एक कानून बनाया, उग्रवाद पर नियंत्रण के लिए. गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक. वह केंद्र के पास अटका पड़ा है. केंद्र उसकी मंजूरी नहीं दे रहा. महाराष्ट्र में ऐसा कानून है. देश में भ्रष्टाचार अनियंत्रित स्थिति में है. राजनीतिक दलाल खुलेआम केंद्र की नीतियों में हस्तक्षेप करते दिख रहे हैं. लोकसभा में विश्वासमत पाने के क्रम में जो नोट कांड हुआ, उसने पूरी राजनीति का असली चेहरा उजागर कर दिया है. पर, वह जांच अब तक आगे नहीं बढ़ी. महंगाई ने तो जनता की कमर तोड़ दी है, पर सुविधाओं में डूब-उतरा रहे नेताओं पर महंगाई का कोई असर नहीं. यह है मुल्क की स्थिति. क्या कहीं कोई नैतिक चेहरा, शासक चेहरा और दूरदर्शी चेहरा राजनीति में है?

इन सवालों के संदर्भ में स्पष्ट है कि 105 करोड़ की आबादीवाले इस देश में आज सरदार पटेल जैसा एक शासक नहीं. स्टेट्समैन नहीं. दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन अशासित होने की स्थिति में था, तो परिस्थितियों और जनता ने चर्चिल को जन्म दिया. क्या भारत में यूपीए या एनडीए में कोई ऐसा नेता है, जो देश को आज की परिस्थिति के अनुसार शासन दे सके. देश जिसकी बात सुने. जो मन, आचरण और जीवन में छोटा, संकीर्ण और अनुदार न हो?

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