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”हर्ट टू हर्ट” से ”हट टू हट” की यात्रा है स्वाध्याय

गुजरात-महाराष्ट्र से लौट कर हरिवंश अहमदाबाद हवाई अड्डे पर सोम भाई तख्ती लेकर खड़े थे. हमने समझा, स्वाध्याय आंदोलन के समर्पित और पूर्णकालिक कार्यकर्ता होंगे. साथ में मशहूर लेखक महीप सिंह और उनकी पत्नी थे. सोम भाई ने सामान उठाने में मदद की. बड़ी वातानुकूलित गाड़ी में बैठाया. फिर खुद गाड़ी चलाते हुए बताने लगे […]

गुजरात-महाराष्ट्र से लौट कर हरिवंश

अहमदाबाद हवाई अड्डे पर सोम भाई तख्ती लेकर खड़े थे. हमने समझा, स्वाध्याय आंदोलन के समर्पित और पूर्णकालिक कार्यकर्ता होंगे. साथ में मशहूर लेखक महीप सिंह और उनकी पत्नी थे. सोम भाई ने सामान उठाने में मदद की. बड़ी वातानुकूलित गाड़ी में बैठाया. फिर खुद गाड़ी चलाते हुए बताने लगे कि अहमदाबाद की सुंदर और चौड़ी सड़कों की सूरत कब और कहां से बदली? मन ही मन मुझे बिहार और बिहार की सड़कें याद आने लगीं.
एक बड़े घर के सामने उन्होंने गाड़ी रोकी. खुद गेट खोला. तब तक लगा कि यह कोई गेस्ट हाउस है या स्वाध्याय आंदोलन से जुड़ा कार्यालय. उन्होंने हमारा सामान उतारा और आधुनिक ड्राइंग रूम में रखा. घर में कोई नहीं था. लगा सोम भाई इस गेस्ट हाउस के केयरटेकर होंगे कुछ ही समय बाद एक महिला आयीं. सोम भाई ने उनका परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराया. तब लगा कि हम सोम भाई के अतिथि हैं. उनके घर में हैं. फिर सोम भाई की लड़की आयी. उसने सुनाया कि आज दादा (पांडुरंग आठवाले शास्त्री, स्वाध्याय आंदोलन के प्रणेता, वय 80 वर्ष के आसपास) अमदाबाद में थे. फिर उनके लोग आये, जो दादा को सुनने गये थे. दीपक भाई,
युवा डॉक्टरनी आकांक्षा जडेजा. कुछेक और पास-पड़ोस की लड़कियां- औरतें. पता चला कि इन सबके आने का मकसद हमारा सत्कार था. हम स्वाध्याय के अतिथि थे. वे सब स्वाध्याय से जुड़े लोग परिवार के साथ आये. बाजरे की रोटी लेकर. दूसरे लोगों से यह जान कर झटका लगा कि सोम भाई की 10-11 छोटी बड़ी फैक्टरियां हैं. 500-600 लोग उनकी कंपनियों में काम करते हैं. उनकी विनम्रता व्यवहार और आचरण ने कहीं एहसास नहीं होने दिया कि वह पैसेवाले हैं. बार-बार अटक जाता हूं कि 20वीं शताब्दी के इस उत्तरर्द्ध में पैसे ने कैसे संस्कार बिगाड़ दिये हैं. उत्तरप्रदेश-बिहार में सोम भाई की हैसियत का कोई इंसान अतिथियों का सामान उठाये. घर का गेट खोले. घर पर नौकर-चाकर-सुरक्षाकर्मियों की फौज न रखे और एहसास कराये कि वह किसी गेस्ट हाउस का केयरटेकर है. मामूली इंसान है. बिहार से गये मानस के लिए यह झटका था.
इस बदलाव या व्यक्तित्व के पीछे का राज बताया, मनहर भाई ने. स्वाध्याय आंदोलन ने परिवार गढ़े है. उपभोक्तावादी दुनिया में इंसानी सरोकारों- मानवीय संवेदना की जड़ों में पानी डालने का काम किया है. जब आधुनिक सभ्यता अलगाव को बढ़ावा दे रही है. बाप-बेटे, पत्नी-पति, मां-बाप अपनी-अपनी दुनिया में अकेले खो रहे हैं. तब स्वाध्याय आंदोलन एक बड़ा परिवार गढ़ रहा है. सूखती मानवीय संवेदनाओं के लिए खाद का काम कर रहा है.
मनहर भाई ने स्वाध्याय से मेरा पहला परिचय कराया. स्वाध्याय के पास आज तकरीबन तीन लाख. समर्पित कार्यकर्ता हैं. जो नियमित दिन गांवों में जाते हैं. यह क्रम वर्षों-वर्षों से चल रहा है. इसमें हर पेशे के पहुंचे लोग हैं. डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर और मामूली इंसान आदिवासियों-दलितों-अछूतों और गरीबों के बीच दशकों-दशकों से ये स्वाध्यायी काम करने जाते हैं. अपना खाना लेकर. कोई काम लेकर नहीं उपदेश देने नहीं.

आपसी समझ-सद्भाव और इंसानी रिश्ता बनाने. एक दूसरे का दुख-दर्द बांटने जिस स्वाध्याय का लोगों के बीच जाने का दिन तय है. वह जायेगा. नौकरी छोड़ कर, व्यवसाय छोड़ कर, अपने घर की शादी या अर्जेसी छोड़ कर. यह सामाजिक अनुशासन है. पर प्रचार-प्रसार से दूर. लाखों-हजारों की भीड़ पर कहीं जिंदाबाद-मुरदाबाद या शोर नहीं. एक स्व अनुशासन अंदर तक हिला देनेवाली गरिमा और मर्यादा के साथ.

महीप सिंह स्वाध्याय आंदोलन से वाकिफ हैं. वह मुझे बताते हैं. मेरे लिए पहला दरस-परस या अनुभव है मेरे मानस पर प्रहार जैसा!
इसी बीच एक भाई कहते हैं. स्वाध्याय इसके पीछे मूल प्ररेणा कौन है? शुरूआत कब हुई? मकसद क्या है? ऐसे अनेक सवाल मन में उठते हैं, पर देर रात हो गयी है. खूब सुबह उठना भी है. स्वाध्याय का नया अध्याय देखने-जानने.सोम भाई, उनकी पत्नी, बेटी सब अतिथि स्वागत में हैं. संकोच होती है.
सोने की कोशिश करता हूं. पर दिमाग में तूफान हैं. महानगरों में परिवार, संबंध सब टूट रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. ग्लोबल दुनिया में आत्मकेंद्रित इंसान पैदा हो रहा है. उदारीकरण-बाजार व्यवस्था ने सब कुछ पैसा प्रधान कर दिया है. ऐसे दौर में , वह भी अमदाबाद में स्वाध्याय का यह चमत्कार, स्वाध्याय का पूरा वृत्तांत न भी जानूं, तो क्या इतना पूरा है.

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