-अजय-
बिहार की पृष्ठभूमि बताने के बाद शेषन मूल मुद्दे पर लौटते हैं. वह अपने आदेश संख्या 464/इएस 012 (एल एंड ओ) दिनांक 7.9.94 का हवाला देते हैं. इस आदेश के तहत राज्य सरकार को हिदायत दी गयी थी कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निम्न आठ, चीजों पर कार्रवाई करे. (1) पिछले चुनावों में हुए अपराधों की छानबीन, कितने लोगों को सजा हुई या दोषी दंडित किये गये या नहीं, इसका ब्योरा तैयार किया जाये. (2) अपराधियों के पुराने रिकार्ड, अपडेट किये जायें. (3) जारी वारंट और चालान पर कार्रवाई हो. (4) सभी लाइसेंसधारियों के हथियारों की पूरी जांच हो. जो लाइसेंसधारी, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं, उनके लाइसेंस रद्द भी किये जा सकते हैं.
लाइसेंस रखनेवालों की जांच इस दृष्टि से भी हो कि क्या उन्हें सचमुच हथियार की आवश्यकता है. (5) हथियार व गोली-बारुद के सभी सौदागरों कीजांच की जाये. (6) अवैध हथियारों, गोला-बारुद बरामद किये जायें. (7) अवैध शराब बनानेवाली फैक्टरियां पकड़ी जायें. (8) संवेदनशील मतदान केंद्रों की ब्योरेवार सूची तैयार की जायें.
इन आठ स्पष्ट आदेशों के एवज में बिहार सरकार ने क्या कार्रवाई की? यह भी शेषन ने बिंदुवार दिया है. यही बिहार की व्यवस्था की गुत्थी है, जिसे न शेषन समझ पा रहे हैं और न लालू प्रसाद या अन्य दलों के नेता या नौकरशाह. यह गुत्थी है कि काम और बेहतर तौर-तरीके से परिणाम हासिल करने की क्षमता हमारी नौकरशाही और राजनीति दोनों ने खो दिया है. काम करना एजेंडा पर नहीं है, यह रोजमर्रा के जीवन में आप अनुभव कर सकते हैं. बिहार सरकार के पास आज कुल कितनी योजनाएं हैं? कितनी अधूरी हैं? उनमें कितना व्यय हुआ है? कितने किस-किस वर्ग में कर्मचारी हैं? उन पर क्या व्यय है? कितने सरकारी उपक्रम और कार्यालय हैं? सरकार के पास कितनी संपत्ति है? ऐसी सूचनाओं से लेकर कोई भी बुनियादी आंकड़ा या सच आप जानना चाहें, तो कोई बता सकने की स्थिति में नहीं हैं. कोई उत्तरदायित्व लेने को तैयार नहीं है.
शासन महज रोब बढ़ाने और क्षुद्र मानवीय अहं को तुष्ट करने का माध्यम रह गया है, बिहार में. इसके लिए भी सिर्फ जनता दल को दोष देना आंशिक सच होगा. अर्थशास्त्री जगन्नाथ मिश्र सत्ता में रहे, पर उनके जमाने में क्या हालात रहे? बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आजाद, सत्येंद्र नारायण सिंह में से शायद ही किसी ने इस खंडहर व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की हो. उस खंडहर में बची-खुची दीवारों को जनता दल ने बराबर कर दिया है.
जनता दल राज में विधानसभाध्यक्ष गुलाम सरवर ने मनमाने तरीके से विधानसभा में नौकरियां दीं. हाईकोर्ट ने इस पर गंभीर टिप्पणी की. इससे वह नाराज हैं. गुलाम सरबर जैसे लोगों के लिए बड़ा सहज उत्तर है. संविधान बदल कर आप राजा हो जाइये, जैसी मरीज वैसा करिये, पर जब तक इस संविधान की व्यवस्था के तहत आप स्पीकर हैं, तब उसकी रक्षा का दायित्व आप पर भी है. पर वह दोष सरवर जी को ही क्यों? कांग्रेस राज में शिवचंद्र झा ने स्पीकर के रूप में क्या-क्या गुल खिलाये थे.
बहरहाल, बिहार सरकार के जवाबों पर लौटिए, चुनाव आयोग के इन आठ स्पष्ट आदेशों पर बिहार सरकार ने क्या किया. (1) पिछले कई चुनावों में अपराध के 950 मामले दर्ज किये गये थे.
650 में फाइनल रिपोर्ट आ चुकी है. किसी एक आदमी को भी सजा नहीं हुई. बाकी 300 मामलों में छानबीन हो रही या मुकदमे चल रहे हैं, यह पता नहीं है. (2) बिहार के विभिन्न पुलिस थानों में 10600 वारंट-चालान पड़े हुए हैं. (3) पूरे बिहार में 1322 गैर लाइसेंसी हथियार पकड़े गये. 581 बम आर 1246 कारतूस. 636 गैरकानूनी हथियार अपराधियों से बरामद किये गये. (4) 100 फीसदी हथियारों की जांच की जगह 11124 हथियारों के लाइसेंस ही जांचे गये हैं. (5) 50935 लोगों को हथियार जमा करने के आदेश दिये गये, इनमें से सिर्फ 35527 लोगों ने ही हथियार जमा दिये. पर यह नियमत: नहीं हुआ. (6) पूरे बिहार में महज 8290 लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई (7) चुनाव आयोग के दो आदेशों के बाद बिहार सरकार ने कब्जा किये जानेवाले संभावित उपद्रव ग्रस्त मतदान केंद्रों की सूची नहीं भेजी.
राज्य सरकार के जवाब पर गौर करे न. अगर 650 चुनाव अपराधों में से किसी एक को भी सजा नहीं हुई, तो इसमें सरकार का क्या दोष? इसके लिए पुलिस के साथ-साथ न्यायपालिका भी है. पर कोई राज्य सरकार यह कैसे कह सकती है कि बाकी 300 मामलों की स्थिति (स्टेट्स) उसे नहीं मलूम. उसके पास पुलिस है, प्रशासन है. करोड़ों-अरबों का इन पर खर्च है और आप एक मामूली सूचना नहीं दे सकते. पर चौंकिए मत, बिहार के किसी भी कार्यालय से कोई भी सूचना आप नहीं पा सकते. क्योंकि यहां सिस्टम खत्म हो गया है. कार्य-संस्कृति नहीं रह गयी है. काम कैसे करना चाहिए लोग यह जानते हुए नहीं करते और यह भाव ढोते हैं कि आप क्या कर लेंगे? यह विलक्षण मानसिकता है. काम न करने से वह व्यक्ति तो पिछड़ता ही है. वह समाज, देश, राज्य महत्वहीन बनता जाता है.
पिछले दिनों कई प्रकरण सामने आये, जिनमें सीधे केंद्र सरकार के अति वरिष्ठ अफसरों ने राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को पत्र लिखा. यह पत्र विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित थे, पर इन आवश्यक पत्रों के जवाब भी समय से नहीं भेजे जाते. 10600 वारंट लंबित (पेंडिग) क्यों पड़े हैं. यह पुलिस व्यवस्था के टूटने का संकेत है. जाहिर है कि दम तोड़ती व्यवस्था चलानेवाली सरकार के अन्य जवाब अधूरे और असंतोषजनक हैं (क्रमश:)