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सोशल मीडिया के लिहाज खास रहा साल 2013

– पीयूष पांडे – साइबर मामलों के जानकार सोशल मीडिया के लिहाज से साल 2013 कई मायनों में बेहद अहम रहा. देश की कई घटनाएं सोशल मीडिया में छायी रहीं, जिन्होंने न केवल मुख्यधारा के मीडिया का ध्यान आकर्षित किया, बल्कि साबित किया कि सोशल मीडिया के मंच लगातार प्रभावी हो रहे हैं. 2014 के […]

– पीयूष पांडे –

साइबर मामलों के जानकार

सोशल मीडिया के लिहाज से साल 2013 कई मायनों में बेहद अहम रहा. देश की कई घटनाएं सोशल मीडिया में छायी रहीं, जिन्होंने न केवल मुख्यधारा के मीडिया का ध्यान आकर्षित किया, बल्कि साबित किया कि सोशल मीडिया के मंच लगातार प्रभावी हो रहे हैं.

2014 के आगमन के बीच, बीते साल की सोशल मीडिया से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है, जिनमें से कई सुनहरी दास्तान बन कर उभरीं, तो कुछ में सबक छिपे हैं.

राजनीति में सोशल मीडिया

राजनीति की दुनिया में बीते साल सोशल मीडिया का जबरदस्त क्रेज दिखाई दिया. दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया का जम कर इस्तेमाल किया गया. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत में फेसबुक-ट्विटर जैसे मंचों की खास भूमिका रही, जिसने युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में जोड़ा.

इस साल अरविंद केजरीवाल सोशल मीडिया पर सबसे तेजी से उभरनेवाले राजनेता रहे, जिनके ट्विटर खाते पर प्रशंसकों की बढ़ोतरी की दर नरेंद्र मोदी के ट्विटर खाते से भी अधिक रही. हालांकि, सोशल मीडिया पर उपलब्ध राजनेताओं में अब भी मोदी ही नंबर-1 हैं, जिनके ट्विटर पर करीब 30 लाख प्रशंसक हैं.

आइआरआइएस नॉलेज फाउंडेशन एवं इंटरनेट एवं मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक संयुक्त अध्ययन ने भी राजनेताओं को सोशल मीडिया की ताकत के बारे में सोचने के लिए विवश किया. इस अध्ययन में कहा गया कि देश की 543 लोकसभा सीटों में 160 सीटों के नतीजों को सोशल मीडिया प्रभावित कर सकता है.

सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित होनेवाले निर्वाचन क्षेत्र वे हैं, जहां कुल मतदाताओं की संख्या के दस फीसदी फेसबुक यूजर्स हैं अथवा जहां फेसबुक यूजर्स की संख्या पिछले लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार के जीत के अंतर से अधिक हैं.

इस रिपोर्ट में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है कि किस राज्य की कितनी सीटें सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित हो सकती हैं. मसलन, महाराष्ट्र में सबसे अधिक 21, गुजरात में 17, उत्तर प्रदेश की 14, कर्नाटक की 12, मध्य प्रदेश में 9 और दिल्ली की सभी 7 सीटें सोशल मीडिया के उच्च प्रभाव में हैं.

हरियाणा,पंजाब और राजस्थान की पांच-पांच सीटें, जबकि बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और पश्चिम बंगाल की चार सीटों के नतीजे सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित हो सकते हैं. अध्ययन में 67 निर्वाचन क्षेत्रों को मध्यम प्रभाव, 60 निर्वाचन क्षेत्रों को कम प्रभाव और 256 निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावहीन घोषित किया गया है.

राजनीति की दुनिया में सोशल मीडिया का इम्तिहान अब 2014 में होगा. हालांकि, यह कहना बेमानी होगा कि सोशल मीडिया की लोकप्रियता और जमीनी लोकप्रियता एक समान है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि सोशल मीडिया की अपनी उपयोगिता है, और यह कुछ सीटों का गणित बिगाड़ सकती है. मसलन-मुंबई से सटे ठाणो में 2009 में विजयी उम्मीदवार 49,000 वोटों से जीता था, जबकि इस इलाके में फेसबुक यूजर्स की संख्या 4,19,000 से अधिक है.

इसी तरह दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर सीट पर 2009 में बीएसपी के सुरेंद्र सिंह नागर ने 20330 वोटों के आधिक्य से जीत हासिल की थी, जबकि इस इलाके में अब 1,70,000 से अधिक फेसबुक यूजर्स हैं. इसी तरह, जिन सीटों पर पांच-दस हजार वोटों के अंतर से फैसला हो सकता है, वहां सोशल मीडिया यूजर्स की भूमिका अहम हो सकती है.

फेसबुक-ट्विटर की लोकप्रियता

भारत में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के मामले में दो सबसे चर्चित और लोकप्रिय साइट्स हैं-फेसबुक और ट्विटर. फेसबुक सोशल नेटवर्किग साइट है तो ट्विटर को माइक्रोब्लॉगिंग साइट कहा जाता है, क्योंकि ट्विटर के जरिये सिर्फ 140 अक्षरों में संदेश भेजा जाता है.

फेसबुक और ट्विटर से जुड़ी दो रिसर्च हाल में सामने आयीं. ईमार्केटर की एक रिसर्च के मुताबिक भारत में लोग फेसबुक और ट्विटर को तेजी से अपना रहे हैं और इसी वजह से भारत में सोशल नेटवर्किग साइट की विकास दर 37.4 फीसदी रही, जो दुनिया के बाकी देशों से ज्यादा है.

भारत के बाद इंडोनेशिया का नंबर आता है, जहां लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स का खासा इस्तेमाल कर रहे हैं और वहां विकास दर 28.7 फीसदी रही. इसी रिसर्च के मुताबिक फेसबुक की लोकप्रियता का आलम यही रहा, तो साल 2016 में भारत फेसबुक यूजर्स के मामले में दुनिया में नंबर एक होगा.

ट्विटर की बात करें तो भारत में ट्विटर के यूजर्स अभी फेसबुक के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते. रिसर्च फर्म पीयररिसर्च के मुताबिक भारत की कुल आबादी का अभी महज एक फीसदी ही ट्विटर पर सक्रिय है, जबकि सऊदी अरब के करीब 31 फीसदी लोग ट्विटर पर एक्टिव हैं. सऊदी अरब के बाद इंडोनेशिया, स्पेन, वेनेजुएला, अर्जेंटीना, ब्रिटेन, नीदरलैंड, अमेरिका, जापान आदि का नंबर आता है और भारत का नंबर 21वां है.

इसी रिसर्च में एक दिलचस्प निष्कर्ष यह भी है कि पूरी दुनिया में ट्विटर के यूजर्स की औसत उम्र महज 24 साल है यानी ट्विटर युवाओं का माध्यम है. खास बात यह है कि ट्विटर के कम यूजर्स होने के बावजूद दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियां इस मंच पर हैं और यह उनके लिए अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम बन गयी है. भारत में ही नरेंद्र मोदी से लेकर सुषमा स्वराज, शाहरुख खान, सलमान खान, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और सचिन तेंडुलकर समेत बड़ी हस्तियां इस मंच पर सक्रिय हैं.

साल 2014 में कई दूसरी बड़ी हस्तियां ट्विटर पर अवतरित होंगी, क्योंकि यह मुख्यधारा के मीडिया के सामने आये बगैर उन्हें अपनी बात कहने का मौका देती है, जबकि मुख्यधारा का मीडिया अब सोशल मीडिया को भी खासा स्पेस दे रहा है.

भारत में फेसबुक-ट्विटर की लोकप्रियता अभी और बढ़ेगी क्योंकि इंटरनेट का तेजी से विस्तार हो रहा है, और अभी भारत की दस फीसदी आबादी भी इन मंचों पर नहीं है.

फर्जी खातों की समस्या

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर फर्जी खाते बड़ी समस्या हैं और साल 2013 में भी यह समस्या जारी रही. फेसबुक ने कुछ दिनों पहले फर्जी खातों से संबंधित एक सूचना जारी की थी और इस सूचना के मुताबिक साइट पर करीब 14.33 करोड़ अकाउंट फर्जी या डुप्लीकेट हैं, जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भारत और तुर्की जैसे देशों की है.

हालांकि, सेलेब्रिटी के फर्जी एकाउंट्स से होने वाली समस्या से बचने के लिए फेसबुक और ट्विटर जैसी साइट्स उन खातों को वेरिफाई करती हैं. इस सत्यापन प्रक्रिया के तहत असली खातों पर एक सही का निशान दिखाई देता है. बावजूद इसके लोग फर्जी खातों के जाल में फंस जाते हैं. हाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का फर्जी ट्विटर खाता सुर्खियों में आया था, जिसे कई बड़ी हस्तियां फॉलो कर रही थीं.

साल 2014 में भी यह समस्या जारी रहेगी, क्योंकि इससे बचने का कोई हल नहीं निकाल पाया है. जरूरी यह है कि लोग किसी भी एकाउंट को फॉलो करते वक्त उसके सत्यापन की कोशिश करें और किसी भी संवेदनशील सूचना को प्रसारित करते वक्त ध्यान रखें.

इ-याचिका की लोकप्रियता

साल 2013 में भारत में देश-समाज में सकारात्मक बदलाव से लेकर छोटी-मोटी समस्याओं के निपटारे को लेकर ऑनलाइन याचिकाएं तेजी से लोकप्रिय हुईं. अमेरिका में ऑनलाइन याचिकाओं का मान्यता मिली हुई है, क्योंकि अमेरिका के लोगों को याचिका डालने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है.

वहां 90 के दशक में ऑनलाइन याचिकाओं का चलन जोर पकड़ा था. उस वक्त इ-मेल के जरिये किसी मसले पर समर्थन जुटाने की कवायद होती थी. लेकिन, बीते एक दशक में न केवल कई ऑनलाइन पिटिशन वेबसाइट्स स्थापित हुईं, बल्कि उन्हें खासी लोकप्रियता भी मिली.

भारत में ऑनलाइन याचिका का पहला बड़ा मामला करीब सात साल पहले सामने आया, जब उस वक्त 17 वर्ष के रहे छात्र आदित्य राज कौल ने प्रियदर्शिनी मट्टू के हत्यारे को सजा दिलाने के लिए ऑनलाइन याचिका पर लोगों का समर्थन जुटाना शुरू किया था. इसके बाद मुंबई में आतंकवादी हमले के दोषियों को सजा से लेकर मध्य प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के घपले जैसे कई मसलों पर ऑनलाइन पिटिशन दाखिल हुईं. हाल में मध्य प्रदेश के 42 दलित परिवारों को दो साल बाद अपने हिस्से का राशन मिला तो उसकी वजह ऑनलाइन याचिका थी.

आज देश-दुनिया में चेंजडॉटओआरजी से लेकर पिटिशनऑनलाइन डॉटकॉम और इंडियावॉयस डॉटओआरजी तक कई ऑनलाइनल पिटिशन वेबसाइट्स संचालित हो रही हैं, जहां लोग किसी भी मसले पर समर्थन जुटाने के लिए याचिका डाल सकते हैं.

यह तय है कि साल 2014 में इ-पिटिशन साइट्स की लोकप्रियता और बढ़ेगी. हालांकि अभी इन साइट्स के जरिये किसी बड़े बदलाव की कल्पना करना बेमानी है. लेकिन, बड़े बदलाव की शुरुआत छोटी कोशिशों से ही होती है और इ-याचिकाओं की सफलता ने इस बात को साबित किया है.

अफवाहों को कैसे रोकें?

सोशल मीडिया के मंचों के जरिये अफवाहों का प्रसारण साल 2013 में एक समस्या बना रहा. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा की एक कड़ी यूट्यूब पर प्रसारित एक फर्जी वीडियो से जुड़ी, जिसे कई लोगों ने फेसबुक और ट्विटर के जरिये शेयर किया. इस फर्जी वीडियो में दो लोगों की हत्या होते हुए दिखाया गया था.

पुलिस के मुताबिक, यह फर्जी वीडियो दो साल पुराना था और पाकिस्तान के सियालकोट में शूट किया गया था. लेकिन, मुजफ्फरनगर हिंसा की शुरुआत के दौरान अचानक यह वीडियो प्रसारित होने लगा, जिसने छोटी सी चिंगारी को भड़काने में भूमिका अदा की.

आइटी एक्ट 2008 में हुए संशोधन के मुताबिक सेक्शन 66-ए में प्रावधान है कि सोशल मीडिया के तहत सामाजिक माहौल को बिगाड़नेवाली अफवाहें फैलानेवाले के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. जुर्म साबित होने पर तीन साल की सजा भी. लेकिन, सोशल मीडिया पर सक्रिय ज्यादातर लोगों को न तो इस कानून के बारे में पता है और न वे ज्यादा चिंतित दिखाई देते हैं. ऐसे में अहम सवाल यही है कि अफवाहों को पंख लगने से कैसे रोका जाये?

2013 के ट्विटर ट्रेंड्स

बीते साल ट्विटर पर ट्रेंड्स की बात करें तो समाचारों में अफजलगुरु की फांसी ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं. राजनीति में मोदी सबसे ज्यादा ट्रेंड किए और टेलीविजन शो के मामले में बिग बॉस पर लोगों ने सबसे ज्यादा लिखा. सचिन का रिटायरमेंट साल 2013 की बड़ी घटना के रूप में उभरा, जब #Thank You Sachin करीब एक हफ्ते तक भारत ही नहीं दुनियाभर में ट्रेंड करता रहा. सचिन ने जब लोगों को अपने ट्विटर एकाउंट पर धन्यवाद कहा तो वो देश में सबसे ज्यादा री-ट्वीट किया जानेवाला ट्वीट बन गया.

अब साल 2014 की बारी है, क्योंकि अब सोशल मीडिया मेनस्ट्रीम मीडिया की तरह ताकतवर मीडियम के रूप में जगह बना चुका है, जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. इसके अलावा यह भी तय है कि साल 2014 के आम चुनावों में सोशल मीडिया का खासा इस्तेमाल दिखाई देगा. हां, इसका असर कितना होगा-यह चुनावी नतीजों के बाद आकलन का विषय है.

‘सेल्फी’ का क्रेज

2013 में लोगों में ‘सेल्फी’ बनने की ललक कुछ ऐसी हुई कि सेल्फी शब्द ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर’ बन गया. सेल्फी यानी खुद अपनी तस्वीरें खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड और शेयर करनेवाला.

वैसे, सेल्फी होने का मतलब क्या है और इसका जुनून किस तरह लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है- इसे भी दो किस्सों से समझ लीजिए. पहला किस्सा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का है, जो हाल में नेल्सन मंडेला की प्रार्थना सभा में सेल्फी के रूप में दिखे और इस वजह से उनकी खासी आलोचना भी हुई.

अपने इस फोटो में वह ब्रिटिश प्रधानमंत्री टॉनी ब्लेयर और डेनमार्क की प्रधानमंत्री हेली के साथ दिखे थे. ओबामा सेल्फी के रूप में खासे उत्साहित और खुश दिख रहे थे और इसी वजह से उनकी खासी आलोचना भी हुई.

दूसरा किस्सा जापान के एक ब्लॉगर-फोटोग्राफर किसुक का है. किसुक फेसबुक-ट्विटर पर अकसर दोस्तों की अपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ फोटो देखता था. लेकिन, किसुक की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है और इस बात से वह खासा दुखी था.

किसुक ने तरकीब निकाली और कुछ इस अंदाज में खुद की तस्वीरें खींची कि लगा कि कोई लड़की किसुक के साथ है. उसने सेल्फी बन कर कई तस्वीरें अपने ब्लॉग और फेसबुक पर पोस्ट कीं हैं. इन तस्वीरों को देख कर ऐसा लगता है कि कोई लड़की किसुक को खाना खिला रही है, उसका मुंह अपनी उंगली से साफ कर रही है या ट्रेन में बिल्कुल सट कर बैठी है. भारत में भी लाखों लोग सेल्फी हैं, जो लगातार अपनी तसवीरें खींचते हैं और सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर करते हैं. साल 2014 में लोगों में यह क्रेज बरकरार रहेगा. लेकिन, सवाल यह है कि क्या इससे कुछ हासिल होता है? कहीं यह शौक पागलपन की हद तो नहीं पहुंच रहा? बीते साल इस तरह की खबरें भी आयीं कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अच्छी तस्वीरें पोस्ट करने के लिए लोग अपनी प्लास्टिक सर्जरी तक करा रहे हैं. तो देखना यही है कि साल 2014 में सेल्फी क्रेज कहां तक पहुंचता है.

हैशटैग क्रांति

हैशटैग यानी दो रेखाओं का दूसरी दो रेखाओं को काटते हुए एक चिन्ह (). ट्विटर की कार्यप्रणाली ने इस छोटे से चिह्न को एक ताकतवर औजार के रूप में प्रचलित कर दिया. सवाल है कि यह छोटा सा चिह्न काम कैसे करता है? दरअसल, ट्विटर या फेसबुक जैसी लोकप्रिय साइट्स पर एक ही वक्त में लाखों लोग एक ही विषय पर टिप्पणी करते हैं.

उन सभी टिप्पणियों को एक साथ देखने की व्यवस्था के लिए हैशटैग चिह्न को इस्तेमाल किया गया. हैशटैग के जरिये आप सोशल नेटवर्किंग साइट पर जारी किसी भी बहस का हिस्सा बन सकते हैं. हैशटैग के जरिये आप समान विषय में इच्छुक लोगों से संपर्क साध सकते हैं.

माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर की तर्ज पर फेसबुक ने 2013 में हैशटैग फीचर की शुरुआत कर दी. गौरतलब है कि हैशटैग के जरिये ही सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग टॉपिक तय होते हैं और इसी की वजह से साल भर एक से बढ़ कर एक विषय बहस का मुद्दा बनते रहे. पप्पू बनाम फेंकू की लड़ाई इनमें एक थी.

हाल में जी न्यूज ने दिल्ली के विधायकों पर केंद्रित ‘ऑपरेशन सरकार’ को अंजाम दिया तो ‘ऑपरेशन सरकार’ ट्विटर पर सबसे टॉप ट्रेंड था और इसका मतलब था कि लोगों की इस खबर में दिलचस्पी है.

साल 2014 में हैशटैग क्रांति और परवान चढ़ेगी. हैशटैग क्रांति ने आम आदमी को बड़ी बहस का हिस्सा बनने का मौका दिया है, और यही सोशल मीडिया की ताकत है.

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