-रिश्तों को मिलेगा नया आयाम-
।।दिल्ली से हरिवंश।।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रविवार को रूस व चीन की पांच दिवसीय यात्रा पर रवाना हो रहे हैं. इन यात्राओं के दौरान जहां रूस के साथ असैन्य परमाणु दायित्व से उठे मुद्दों का समाधान करने का प्रयास होगा, जो रूस से कुड़नकुलम परियोजना के लिए दो नये रिएक्टर पाने में बाधा पैदा कर रहा है. वहीं चीन के साथ सीमा पर दोनों ओर की सेनाओं के आमने-सामने आने से अक्सर ‘उत्पन्न होनेवाली स्थितियों’ से बचने पर चर्चा होगी. अधिकारियों का मानना है कि प्रधानमंत्री की मॉस्को और बीजिंग यात्रा के दौरान दोनों मुद्दों पर करार पर हस्ताक्षर भी हो सकते हैं.
पुतिन के साथ बैठक कल
प्रधानमंत्री सोमवार को मॉस्को में रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन के साथ 14 वीं वार्षिक शिखर बैठक में मिलेंगे. भारत ने परमाणु दायित्व धारा पर रूस की चिंताओं को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया है. इसमें दुर्घटना की स्थिति में संभावित नुकसान पर बीमा लेने के मानकों की रूपरेखा तैयार की गयी है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि उपकरणों के विदेशी और भारतीय दोनों आपूर्तिकर्ताओं पर दायित्व की मात्र असीमित नहीं होगी. वार्ता के बाद डॉ सिंह को मॉस्को स्टेट इंस्टीटयूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस (एमजीआइएमओ) की ओर से मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया जायेगा. वार्ता संपन्न होने पर संयुक्त बयान जारी होगा. शिखर वार्ता के इतर नव गठित सीइओ काउंसिल की बैठक भी होगी.
समझौते को लेकर पीएम आश्वस्त : वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुडनकुलम में दो नये परमाणु रीएक्टर लगाने पर समझौता होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. यात्रा से पहले रूसी मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि भारतीय व रूसी कंपनियां कुडनकुलम में तीसरी व चौथी इकाई के लिए व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने पर बातचीत कर रही हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि परमाणु ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग लगातार और गहरा होगा.
22 को पहुंचेंगे चीन : मॉस्को यात्रा के बाद 22 अक्तूबर को प्रधानमंत्री बीजिंग रवाना होंगे, वह वहां 23 अक्तूबर को अपने चीनी समकक्ष ली जियांग से मिलेंगे. दोनों नेता छह महीने में दूसरी बार मिलेंगे. डॉ सिंह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात करेंगे, जो उनके सम्मान में रात्रि भोज दे रहे हैं. मनमोहन सिंह भारत के दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री है, जिन्हें चीनी राष्ट्रपति यह सम्मान दे रहे हैं. इससे पहले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सम्मान में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति ने भोज का आयोजन किया था.
सीमा विवाद पर बातचीत : चीन यात्रा के दौरान प्रस्तावित ऐतिहासिक सीमा रक्षा सहयोग समझौते (बीडीसीए) पर विशेष ध्यान दिये जाने की उम्मीद है. इस पर दोनों देश के बीच समझौते पर हस्ताक्षर भी हो सकते हैं. समझौते के अंतर्गत दोनों देश की सेनाएं आमने-सामने आने की स्थिति में एक-दूसरे पर गोलीबारी नहीं करेंगी और सीमा पर शांति व यथास्थिति बनाये रखी जायेगी.
ईश्वर की शरण में रूस!
यह नियति का खेल है या समय की बलिहारी या काल चक्र, नहीं पता? रूस का आर्थोड्क्स चर्च (पुरानपंथी चर्च), रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का अब गहरा सहयोगी है. यह हाल के कुछ वर्षो में हुआ है. खासतौर से पिछले कुछेक महीनों में यह चर्च महत्वपूर्ण सवालों पर रूस के राष्ट्रपति के पक्ष में खड़ा है. सार्वजनिक रूप से पुतिन आज खुले तौर पर कहते हैं कि रूस के जीवन में चर्च की भूमिका बढ़नी चाहिए. याद रखिए, पुतिन सोवियत रूस के केजीबी से जुड़े रहे हैं. तब कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि सोवियत रूस के साम्यवादी दर्शन से जुड़ा कोई व्यक्ति, वह भी केजीबी में प्रशिक्षित, चर्च, धर्म या ईश्वर के पक्ष में भी उतरेगा. रूस की 1917 की क्रांति के पहले जार शासकों के राज में आर्थोड्क्स चर्च का दबदबा था. समाज पर गहरा प्रभाव था.
जार की सत्ता इस चर्च की मदद में थी. क्रांति के बाद सोवियत रूस में चर्च की जमीन और संपत्ति जब्त कर ली गयीं. चर्च से जुड़े लोगों को परेशान और तबाह किया गया. पर अब हालात अलग हैं. द न्यूयॉर्क टाइम्स (11.10.2013) में व्लामिदीर पुतिन का एक लेख छपा. इस लेख में उन्होंने अमेरिका के सीरिया संबंधी विचारों पर अपनी बात कही है.
लेख के अंत में दो पंक्तियां हैं, जो रूस के राष्ट्रपति के चिंतन या दर्शन की झलक देती हैं. वह कहते हैं कि दुनिया में बड़े देश हैं, छोटे देश हैं, संपन्न देश हैं, गरीब देश हैं या वैसे भी देश हैं, जिनके यहां लोकतंत्र की लंबी व पुरानी परंपरा है. वैसे भी मुल्क हैं, जो अब लोकतंत्र की ओर अग्रसर हैं. उनकी नीतियां भी भिन्न हो सकती हैं. हम सब भिन्न हैं, पर जब हम ईश्वर से आशीर्वाद मांगते हैं, तो हमें भूलना नहीं चाहिए कि ईश्वर ने हम सबको समान बनाया है. यानी पुतिन के दर्शन में, विचार में और जीवन में ईश्वर का महत्व है. वह जिस सोवियत रूस में पले, जिस केजीबी से उनका जुड़ाव रहा, उसमें ईश्वर के प्रति कहीं विश्वास की जगह नहीं थी. यह अनिश्वरवाद का दर्शन था. 1917 में जिस सोवियत रूस ने दुनिया की सब स्थापित परंपराओं को, अंधविश्वासों को, कुरितियों को तोड़ कर एक नये जीवन दर्शन के साथ नयी शुरुआत की थी, जिसकी धमक -आभा-आलोक दुनिया में फैला, आज के समय का नियति चक्र है कि उसी रूस में पुन: इनसान, ईश्वर की शरण में हैं. यह क्या इतिहास चक्र का घूमना है?
भारत के प्रधानमंत्री रूस जा रहे हैं. भारत और रूस के बीच भी एक धर्म से जुड़ा प्रसंग आ गया है. सूचना है कि सोमवार (21.10.2013) को रूसी राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पर बातचीत करेंगे.मामला यह है कि रूस का आर्थोड्क्स चर्च, दिल्ली में जगह चाहता है, एक चर्च बनाने के लिए. इसके बदले में रूस के राष्ट्रपति पुतिन हस्तक्षेप कर मॉस्को स्थित कृष्ण के मंदिर को बचायेंगे. मॉस्को के स्थानीय अधिकारियों ने मंदिर को डिमोलिश (ध्वस्त) करने का आदेश दिया है. मंदिर का निर्माण इस्कान (द इंटरनेशनल सोसाइटी फार कृष्ण कांससनेश) ने किया. उसने रूस में मंदिर बनवाया. वही चलाते हैं. उन लोगों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर मंदिर बचाने का आग्रह किया है. दोनों देशों में इस मुद्दे को लेकर विवाद है.
1998 में, रूस में चर्च धीरे-धीरे अपनी पुरानी भूमिका में आने लगा. मिखाइल गोर्बाचौफ के कार्यकाल में कुछ कठोर नियम शिथिल किये गये. उसी वर्ष गोर्बाचौफ प्रशासन ने ही कृष्ण आंदोलन को औपचारिक मान्यता दी. रूस स्थित इस्कान का कहना है कि उसके रूस में 25000 अनुयायी हैं. पर 2004 में मॉस्को के स्थानीय अफसरों ने पुराने मंदिर को नष्ट कर दिया. क्योंकि उन्हें वह जगह मेट्रो स्टेशन के लिए चाहिए थी. तब 2.5 मिलियन डॉलर (15 करोड़) चंदा उगाह कर फिर मंदिर बनाया गया. पर इस साल मॉस्को के अधिकारियों ने मंदिर बनाने का पुराना आदेश वापस ले लिया और जुलाई-2013 तक इस मंदिर को खाली करने का आदेश दिया. भारत ने राजनयिक स्तर पर पहल की और अनुरोध किया, तो कुछ मोहलत मिली. रूस के इस सबसे पुराने चर्च ने 2011 में, दिल्ली में अपनी शुरुआत की, पर इसके पास कोई अपना भवन नहीं है और यह रूस के दूतावास के बाहर ही कार्यरत है. मॉस्को की शिखर वार्ता में रूस की योजना है कि वह भारत से अनुरोध करेगा कि नयी दिल्ली में रूस दूतावास की जो संपत्ति-जगह है, वहां एक आर्थोड्क्स चर्च का निर्माण करे. अगर ऐसा भारत में हुआ, तब इस्कान का मॉस्को स्थिति मंदिर के सुरक्षित रहने की संभावना रहेगी.