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तीस्ता और उनके पति जावेद को बंबई हाईकोर्ट से मिली अंतरिम राहत, अब 10 अगस्त तक गिरफ्तारी नहीं

मुंबई: सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और उनके पति जावेद आनंद को बडी राहत देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए एक मामले में गिरफ्तारी से दोनों को आज 17 दिन की अंतरिम राहत दे दी. सीबीआई ने तीस्ता और जावेद पर आरोप लगाया है कि उनकी कंपनी ने केंद्र […]

मुंबई: सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और उनके पति जावेद आनंद को बडी राहत देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए एक मामले में गिरफ्तारी से दोनों को आज 17 दिन की अंतरिम राहत दे दी. सीबीआई ने तीस्ता और जावेद पर आरोप लगाया है कि उनकी कंपनी ने केंद्र से अनिवार्य मंजूरी लिए बिना विदेश से 1.8 करोड रुपए हासिल किए.
तीस्ता और जावेद को 10 अगस्त तक गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हुए न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने कहा कि दोनों को पहले ही सत्र अदालत से संरक्षण दिया गया था. तीस्ता और जावेद ने आज सीबीआई की एक विशेष अदालत की ओर से अपनी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दिए जाने के बाद उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत की गुहार लगाई थी. सीबीआई अदालत ने गत 17 जुलाई को उन्हें दी गई अंतरिम राहत की अवधि बढाने से भी इनकार कर दिया था.
न्यायमूर्ति भाटकर ने कहा, ‘‘अभी मैं मामले के गुण-दोष में नहीं जाना चाहती. क्या आरोपी लोगों के फरार होने की आशंका है ? यदि नहीं, तो दो हफ्ते के लिए अंतरिम संरक्षण दिया जा सकता है.’’ अदालत ने तीस्ता और जावेद को निर्देश दिया कि वे 27 जुलाई, 30 जुलाई, तीन अगस्त और छह अगस्त को आर्थिक अपराध शाखा के दफ्तर में पेश हों और दोपहर 12 बजे से तीन बजे के बीच अपना बयान दर्ज कराएं. उच्च न्यायालय ने सीबीआई की यह मांग मानने से इनकार कर दिया कि दोनों को हर रोज जांच एजेंसी के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए जाएं.
न्यायमूर्ति भाटकर ने कहा, ‘‘वे (तीस्ता और जावेद) आपके (सीबीआई के) समक्ष 17 जुलाई से ही पेश हो रहे हैं. आपने निश्चित तौर पर कुछ तो जांच की होगी. हर रोज पेश होने की जरुरत नहीं है.’’सीबीआई के वकील संदीप शिंदे ने दलील दी कि अपराध गंभीर प्रकृति का है और इसके लिए हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरुरत है. तीस्ता की अग्रिम जमानत याचिका पर अंतिम सुनवाई उच्च न्यायालय 10 अगस्त को करेगा. सत्र अदालत की ओर से जमानत याचिका खारिज किए जाने के तुरंत बाद तीस्ता ने अदालत से कहा कि वह स्तब्ध एवं दुखी हैं.
तीस्ता ने कहा, ‘‘फैसले से मैं स्तब्ध और दुखी हूं क्योंकि यह एक छोटा-मोटा अपराध है. मुङो और मेरे साथियों को लगता है कि ये (सरकार की ओर से) कुछ ताकतवर लोगों की हमें धमकाने और संभवत: रास्ते से हटाने की कोशिश है.’’ सीबीआई ने आठ जुलाई को तीस्ता और जावेद के खिलाफ मामला दर्ज किया था. सीबीआई ने आरोप लगाया कि उनकी कंपनी सबरंग कम्यूनिकेशन एंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड (एससीपीपीएल) ने विदेशी चंदा नियमन कानून :एफसीआरए: का उल्लंघन कर विदेशी चंदे के तौर पर करीब 2.9 लाख अमेरिकी डॉलर हासिल किए. सीबीआई के मुताबिक, एससीपीपीएल विदेश से चंदा लेने के लिए एफसीआरए के तहत पंजीकृत नहीं है और इसलिए करीब 1.8 करोड रुपए :2.9 लाख अमेरिकी डॉलर: कानून का उल्लंघन कर लिए गए. जांच एजेंसी का कहना है कि तीस्ता की कंपनियों को केंद्रीय गृह मंत्रलय की पूर्व अनुमति लेने के बाद चंदा हासिल करना चाहिए था.
तीस्ता और जावेद ने अपने वकील के जरिए अदालत को बताया कि वे निर्दोष हैं और उन्हें फंसाया जा रहा है. उनके वकील मिहिर देसाई ने अदालत को बताया कि सीबीआई उन्हें सिर्फ इसलिए गिरफ्तार करना चाह रही है ताकि गुजरात में उनके कामों के लिए उन्हें अपमानित किया जा सके. बहरहाल, पिछले शुक्रवार को सीबीआई ने अपने जवाब में कहा था कि एससीपीपीएल को विदेशी चंदे के अंतरण के पीछे की मंशा दिखाती है कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा और गतिविधियों में दखल के लिए था.
तीस्ता की याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई ने अपने जवाब में कहा था, ‘‘विदेशी दानकर्ता की ऐसी गतिविधि से पूर्वाग्रहित रुप से राज्य के सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित प्रभावित होंगे और इससे धार्मिक, सामाजिक, भाषायी या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के बीच सद्भाव पर असर पडेगा.’’ सीबीआई ने कहा कि तीस्ता और जावेद के खिलाफ लगे आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और जांच के दौरान अपराध के सभी पहलू और साजिशें सामने आएंगी.
तीस्ता ने आरोप लगाया कि उनके और उनके पति के खिलाफ प्राथमिकी इसलिए दर्ज की गई है ताकि उन्हें परेशान किया जा सके और उन्हें यातना दी जा सके. हालांकि, सीबीआई ने इस आरोप को खारिज कर दिया. सीबीआई ने कहा था, ‘‘याचिकाकर्ता जानबूझकर अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का बेमतलब के मुद्दों के साथ घालमेल कर रहे हैं ताकि उनके खिलाफ लगे गंभीर आरोपों से ध्यान भटकाया जा सके.’’
जांच एजेंसी ने अदालत को यह भी बताया कि इस साल 14 जुलाई को जब उनके घर और दफ्तर पर छापामारी की गई तो उनकी तरफ से पुरजोर विरोध किया गया और उन्होंने सहयोग नहीं किया. जवाब में कहा गया था, ‘‘तलाशी के दौरान, फोर्ड फाउंडेशन और एससीपीपीएल के बीच 22 सितंबर 2006 को हुए एक समझौते वाले दस्तावेज को जब्त किया गया, जिसमें साफ दिखाया गया है कि भेजी हुई रकम आर्थिक मदद थी. उसमें किसी ‘कंसल्टेंसी’ का कोई जिक्र नहीं था.’’

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