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जानिए पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ प्रमुख सक्रिय उग्रवादी संगठन को

शेष भारत से 23 किलोमीटर चौड़ी पट्टी, जिसे सिलिगुड़ी गलियारा कहते हैं, के जरिये जुड़ा पूर्वोत्तर भारत भारत कई दशकों से हिंसक उग्रवाद का शिकार है. आजादी के तुरंत बाद नागा क्षेत्रों में शुरू हुई अलगाववादी हिंसा आज पूरे क्षेत्र की त्रासदी है. पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी गिरोहों पर एक नजर.. नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ […]

शेष भारत से 23 किलोमीटर चौड़ी पट्टी, जिसे सिलिगुड़ी गलियारा कहते हैं, के जरिये जुड़ा पूर्वोत्तर भारत भारत कई दशकों से हिंसक उग्रवाद का शिकार है. आजादी के तुरंत बाद नागा क्षेत्रों में शुरू हुई अलगाववादी हिंसा आज पूरे क्षेत्र की त्रासदी है. पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी गिरोहों पर एक नजर..

नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड- खापलांग

मणिपुर के चंदेल जिले में सेना के काफिले पर गुरुवार को हुए हमले की जिम्मेवारी लेनेवाले एनएससीएन-खापलांग गुट की स्थापना 30 अप्रैल, 1988 को हुई थी. यह संगठन मूल नागा अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड में दो नागा जातीय समूहों- कोंयाक और तांग्खुल- में विवाद का परिणाम था. कोंयाक तबके ने खोले कोंयाक और एसएस खापलांग के नेतृत्व में एनएससीएन (खापलांग) बनाया. तांग्खुल तबके, एनएससीएन (आइजक-मुइवा) के नेता आइजक चिसी स्वू और टी मुइवा हैं. एसएस खापलांग के नेतृत्व में गुट पूवरेत्तर के नागा-बहुल तथा म्यांमार के कुछ इलाकों को मिला कर ग्रेटर नागालैंड बनाना चाहता है. नागालैंड के पूर्वी हिस्से और अरुणाचल के तिराप व चांगलांग जिलों में यह गिरोह सक्रिय है. ताजा हमले में मारे गये अकेले उग्रवादी की शिनाख्त खांपलाग के सदस्य के रूप में की गयी है.

कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी, मणिपुर

इस पार्टी की स्थापना 13 अप्रैल, 1980 को वाइ इबोहांबी के नेतृत्व में हुई थी और इसका उद्देश्य मणिपुर को भारत से अलग करना तथा मेतेई संस्कृति की रक्षा करना है. इसके नाम में जुड़ा कांग्लेईपाक मणिपुर का ऐतिहासिक नाम है. वर्ष 1995 में इसका संस्थापक प्रमुख इबोहांबी सुरक्षा बलों द्वारा मारा गया था. उसके बाद यह संगठन कई गुटों में बंट गया था, लेकिन खबरों के अनुसार 2006 के मई महीने में साझा बैठक में इन गुटों ने फिर से एक होने का निर्णय किया था.

कांग्लेई यावोल कान्ना लुप

इस गुट की स्थापना विभिन्न उग्रवादी गिरोहों को मिलाकर जनवरी, 1994 में हुई थी. मेतेई तबके के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करनेवाला यह गुट अनैतिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार और नशाखोरी के विरोध में संलग्न है तथा यह पूवरेत्तर के साझा ‘राष्ट्रवाद’ की वकालत करता है. लुप मणिपुर के चार घाटी जिलों- इंफाल पूर्व, बिशेनपुर, थुबाल और इंफाल पश्चिम में सक्रिय है. कांग्लेईपाक पार्टी के साथ लुप पर भी सैनिकों पर हुए ताजा हमलों में शामिल होने की आशंका जतायी जाती है.

ङोलियांगग्रॉंग युनाइटेड फ्रंट

वर्ष 2011 में मणिपुर में स्थापित यह गुट ङोलियांगग्रॉंग इंपुइ, चिरु और अन्य क्षेत्रीय अल्पसंख्यकों के हितों का प्रतिनिधित्व का दावा करता है. भारतीय सुरक्षा बलों के अलावा इसका मुख्य संघर्ष आइजक-मुइवा के एनएससीएन गुट से है. इस गिरोह का अध्यक्ष कामसन है और मुख्य कमांडर जैनचुइ कामेई है.

युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)

पूर्वोत्तर के इस सबसे हिंसक और ताकतवर उग्रवादी संगठन का गठन सात अप्रैल, 1979 को असम के सिबसागर में हुई थी और इसका उद्देश्य ‘संप्रभु समाजवादी असम’ की स्थापना करना घोषित किया गया था. अविभाजित उल्फा में उसके राजनीतिक इकाई की जिम्मेवारी अरबिंद राजखोवा की थी, जबकि उसके मिलिट्री इकाई को परेश बरुआ संभालता था. वर्ष 1986 में इस गुट ने अविभाजित एनएससीएन और म्यांमार के काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी से प्रशिक्षण और हथियारों के लिए संपर्क किया था. बाद में उसके तार पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आइएसआइ और अफगान लड़ाकों से भी जुड़े.

वर्ष 2011 के पांच फरवरी को उलफा के शीर्ष नेताओं के एक बड़े धड़े ने यह घोषणा की कि संगठन बिना किसी पूर्व शर्त के भारत सरकार से बातचीत के लिए तैयार है. इसकी पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए सरकार ने भी विभिन्न गिरफ्तार नेताओं और काडरों को जमानत देने और फरार कार्यकर्ताओं को निशाना न बनाने जैसी पहलें की थीं. लेकिन परेश बरुआ के नेतृत्व में संगठन के एक तबके ने सरकार से बातचीत के निर्णय को खारिज कर दिया. केंद्र सरकार, असम सरकार और उल्फा के एक गुट के साथ तीन सितंबर, 2011 को हुए समझौते में तीनों पक्षों ने अपनी संबंधित गतिविधियों को रोकने की घोषणा कर दी. अगस्त, 2012 में परेश बरुआ द्वारा अरबिंद राजखोवा को निष्कासित कर अभिजीत बर्मन को संगठन का मुखिया बनाने के निर्णय के साथ ही उल्फा का औपचारिक विभाजन हो गया.

नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड

तीन अक्तूबर, 1986 में रंजन दैमरी के नेतृत्व में एक अतिवादी संगठन बोडो सिक्यूरिटी बल के नाम से बनाया गया था, जिसका नाम 25 नवंबर, 1994 को बदलकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड कर दिया गया. मई, 2005 से इस संगठन और असम तथा केंद्र सरकारों के बीच युद्धविराम की स्थिति है, परंतु अभी तक कोई औपचारिक शांति-वार्ता शुरू नहीं हो सकी है. इस संगठन का उद्देश्य ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर के बोडो-बहुल क्षेत्रों को मिलाकर स्वतंत्र और संप्रभु बोडोलैंड की स्थापना है. रंजन दैमरी की जगह 2008 के दिसंबर महीने में धीरेन बोरो को गुट का अध्यक्ष बनाया गया था. दैमरी फिलहाल बांग्लादेश में है. इस घटनाक्रम को संगठन में विभाजन के रूप में भी देखा जाता है, पर फ्रंट ने ऐसी किसी भी स्थिति से इंकार किया है.

अन्य उग्रवादी संगठन

कामतापुर लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन, मणिपुर लिबरेशन फ्रंट, गारो लिबरेशन आर्मी, त्रिपुरा लिबरेशन फ्रंट समेत कई उग्रवादी समूह पूवरेत्तर के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय हैं.

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